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तुलसीदासजी ने शुरू किया था काशी का पारंपरिक अखाड़ा, महिलाओं को भी मिली थी एंट्री

काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. इस अखाड़े में पुरुष पहलवानी करते थे, लेकिन संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विशम्भर नाथ मिश्रा ने समाज के मिथक को तोड़ते हुए महिलाओं को इस अखाड़े में एंट्री दिलाई.

अखाड़े में महिला नहीं कर सकती थी कुश्ती.
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Published : Aug 5, 2019, 11:40 PM IST

वाराणसी: काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े में सैकड़ों वर्ष बाद महिलाओं को एंट्री मिली थी. गौरतलब है कि इस अखाड़े में गोस्वामी तुलसीदास जी भी रियाज किया करते थे. तुलसी घाट पर स्टेटस अखाड़े में पहले पुरुष पहलवानी करते हुए दिखते थे, लेकिन संकट मोचन के महंत प्रो. विशम्भर नाथ मिश्रा ने समाज के मिथक को तोड़ते हुए महिलाओं को इस अखाड़े में एंट्री दिलाई थी.

अखाड़े में महिला नहीं कर सकती थी कुश्ती.

'स्टेटस अखाड़े' में महिला नहीं कर सकती थी कुश्ती

संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ का कहना है कि अखाड़े की स्थापना रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. इस अखाड़े में कभी भी जाति और धर्म का भेदभाव नहीं किया गया. बल्कि सभी धर्म के लोगों को पुष्टि करने का मौका मिलता था. विडंबना यह थी कि अखाड़े में महिला कुश्ती नहीं कर सकती थी.

पढ़ें- आज है नाग पंचमी, जाने क्यों होती है छोटे गुरु-बड़े गुरु की पूजा...

प्रो. विशम्भर नाथ के प्रयासों से महिलाओं ने अखाड़े में कुश्ती शुरू की

संकट मोचन के महंत की मां ने तुलसी अखाड़े में महिलाओं के कुश्ती लड़ने की बात कही, लेकिन लोगों को यह लगा कि जो परंपरा चलती आ रही है, इससे उसको ठेस पहुंचेगी और लोग नाराज होंगे. हालांकि सबके साथ बैठकर बात करने से महिलाओं को भी इस अखाड़े में उतारने की अनुमति दी गई.

तुलसीदास बलवान और पहलवानी करने वाले इंसान थे

संकट मोचन के महंत प्रो. विशम्भर नाथ बताते हैं कि लोग तुलसीदास जी को बहुत ही कमजोर शरीर की तस्वीरों में देखते हैं, लेकिन वक्त असल जिंदगी में काफी बलवान और पहलवानी करने वाले इंसान थे. उन्होंने न सिर्फ अखाड़ा स्थापित किया, बल्कि दंगल की इस प्रथा को एक नया आयाम भी दिया.

वाराणसी: काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े में सैकड़ों वर्ष बाद महिलाओं को एंट्री मिली थी. गौरतलब है कि इस अखाड़े में गोस्वामी तुलसीदास जी भी रियाज किया करते थे. तुलसी घाट पर स्टेटस अखाड़े में पहले पुरुष पहलवानी करते हुए दिखते थे, लेकिन संकट मोचन के महंत प्रो. विशम्भर नाथ मिश्रा ने समाज के मिथक को तोड़ते हुए महिलाओं को इस अखाड़े में एंट्री दिलाई थी.

अखाड़े में महिला नहीं कर सकती थी कुश्ती.

'स्टेटस अखाड़े' में महिला नहीं कर सकती थी कुश्ती

संकट मोचन मंदिर के महंत विशम्भर नाथ का कहना है कि अखाड़े की स्थापना रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी. इस अखाड़े में कभी भी जाति और धर्म का भेदभाव नहीं किया गया. बल्कि सभी धर्म के लोगों को पुष्टि करने का मौका मिलता था. विडंबना यह थी कि अखाड़े में महिला कुश्ती नहीं कर सकती थी.

पढ़ें- आज है नाग पंचमी, जाने क्यों होती है छोटे गुरु-बड़े गुरु की पूजा...

प्रो. विशम्भर नाथ के प्रयासों से महिलाओं ने अखाड़े में कुश्ती शुरू की

संकट मोचन के महंत की मां ने तुलसी अखाड़े में महिलाओं के कुश्ती लड़ने की बात कही, लेकिन लोगों को यह लगा कि जो परंपरा चलती आ रही है, इससे उसको ठेस पहुंचेगी और लोग नाराज होंगे. हालांकि सबके साथ बैठकर बात करने से महिलाओं को भी इस अखाड़े में उतारने की अनुमति दी गई.

तुलसीदास बलवान और पहलवानी करने वाले इंसान थे

संकट मोचन के महंत प्रो. विशम्भर नाथ बताते हैं कि लोग तुलसीदास जी को बहुत ही कमजोर शरीर की तस्वीरों में देखते हैं, लेकिन वक्त असल जिंदगी में काफी बलवान और पहलवानी करने वाले इंसान थे. उन्होंने न सिर्फ अखाड़ा स्थापित किया, बल्कि दंगल की इस प्रथा को एक नया आयाम भी दिया.

Intro:वाराणसी। रण की नगरी काशी में तुलसी घाट पर अखाड़े में सैकड़ों वर्ष बाद महिलाओं को एंट्री मिली थी। गौरतलब है कि गोस्वामी तुलसीदास स्वामी जी भी रियाज़ किया करते थे। तुलसी घाट पर स्टेटस अखाड़े में पहले से पुरुष पहलवानी कुश्ती करते हुए दिखते थे लेकिन संकट मोचन के महंत ने समाज की मिथक को तोड़ते हुए महिलाओं को इस अखाड़े में एंट्री दिलाई थी


Body:VO1: संकट मोचन के महंत विशंभर नाथ का कहना है कि अखाड़े की स्थापना रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। इस अखाड़े में कभी भी जाति और धर्म का भेदभाव नहीं किया गया बल्कि सभी धर्म के लोगों को पुष्टि करने का मौका मिलता था लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि इस अखाड़े में महिला कुछ दिन नहीं कर सकती थी संकट मोचन के महंत की मां ने तो प्रसिद्ध तुलसी अखाड़े में कुश्ती लड़ने की बात कुछ साल पहले महिलाओं ने कही लेकिन लोगों को यह लगा कि जो परंपरा चलती आ रही है उसको ठेस पहुंचेगी और लोग नाराज होंगे हालांकि सबके साथ बैठ कर बात करने से महिलाओं को भी इस अखाड़े में उतारने की अनुमति दी गई और तब से देश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ को लेकर जिस तरह की बातें सामने आती है उनको भी बढ़ावा मिला और महिलाओं को यहां से कुश्ती लड़ने का एक मौका तुलसीदास जी का शुरू किया गया एक प्रयास महिलाओं के लिए भी बेहद रोमांचक साबित हो रहा है।


Conclusion:संकट मोचन के महंत बताते हैं कि लोग तुलसीदास जी को बहुत ही कमजोर शरीर की तस्वीरों में देखते हैं लेकिन वक्त असल जिंदगी में काफी बलवान फर्स्टपोस्ट और पहलवानी करने वाले इंसान थे उन्होंने न सिर्फ अखाड़ा स्थापित किया बल्कि दंगल की इस प्रथा को एक नया आयाम भी दिया।
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