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'पीसा की मीनार' से भी ज्यादा झुका है काशी का यह मंदिर

काशी के कण-कण में शिव का वास है... यहां कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो अपने आप में अद्भुत हैं... ऐसा ही एक मंदिर मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के बीच में स्थित है, जो 400 साल से भी ज्यादा पुराना है....इस मंदिर का नाम है - रत्नेश्वर महादेव मंदिर... यह मंदिर पीसा की मीनार से भी ज्यादा झुका हुआ है. किसने, कब और क्यों इस मंदिर का निर्माण कराया, जानने के लिए पढ़ें ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट...

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर की कहानी.
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Published : Dec 10, 2020, 10:22 PM IST

Updated : Jan 15, 2021, 9:47 PM IST

वाराणसी : शिव की नगरी काशी धरती पर उन पुराने जीवंत शहरों में गिनी जाती है, जिसका वर्णन पुराणों और शास्त्रों में मिलता है. कल-कल बहती मां गंगा यहां उत्तरवाहिनी होती है. यहां शिव विराजते हैं और कण-कण में उनका वास है. काशी के कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो उसे दुनिया में अलग बनाते हैं. ऐसा ही एक पवित्र और अद्भुत मंदिर मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के बीच स्थित है. अद्भुत डिजाइन से बनाई गई इटली की पीसा की मीनार भले ही 4 डिग्री झुकी हो और इसकी ऊंचाई 54 मीटर हो, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 400 साल पुराना यह मंदिर, जिसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, 9 डिग्री झुका हुआ है और इसकी ऊंचाई 40 मीटर है, जो अपने आप में अद्भुत और आश्चर्यजनक है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.

जुड़ी है कई दंत कथाएं

काशी के पौराणिक 400 साल पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर से कई दंत कथाएं जुड़ी हैं. वास्तुकला का अद्भुत और अलौकिक उदाहरण इस मंदिर में देखने को मिलता है. पुराणों में वर्णित जिन दंत कथाओं का जिक्र है, उसमें सबसे ज्यादा प्रचलित महारानी अहिल्याबाई होल्कर और उनकी दासी रत्नाबाई की कहानी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा कहा जाता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने जब मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था तो उससे प्रभावित होकर उनकी दासी रत्नाबाई ने उसके ठीक सामने एक दूसरे शिव मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन अंतर बस इतना था कि अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट के ऊपर था और रत्नाबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट की तलहटी में मां गंगा के नजदीक था.

स्पेशल रिपोर्ट...

लगभग 40 फीट ऊंचा गुजरात शैली पर बने इस भव्य मंदिर को बनवाने में जब रत्नाबाई को दिक्कत आने लगी तो उन्होंने कुछ पैसे महारानी अहिल्याबाई होल्कर से उधार भी लिए. इस पर महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर को देखने की इच्छा जाहिर की. मंदिर देखकर वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने इसका नाम न देने का आग्रह रत्नाबाई से किया, लेकिन रत्नाबाई नहीं मानी और इस मंदिर का नाम उन्होंने अपने नाम पर रत्नेश्वर महादेव रखा, जिसकी जानकारी होने पर अहिल्याबाई होल्कर नाराज हो गईं और यह श्राप दिया कि इस मंदिर में पूजा-पाठ सिर्फ 2 महीने ही हो पाएगा. इसके बाद यह मंदिर 10 महीनों तक तो मिट्टी और पानी में डूबा रहता है और केवल 2 महीने ही इसमें पूजा होती है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.

दूसरी कथा

दूसरी कथा यह भी है कि इस मंदिर को काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन काशी करवट का असली मंदिर भगवान विश्वनाथ मंदिर के नजदीक नेपाली कपड़ा इलाके में है. पश्चिम बंगाल व अन्य इलाके के आने वाले लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर के नाम से जानते है. एक दंतकथा यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण मातृऋण को चुकाने के लिए करवाया गया था, लेकिन मां के ऋण का भुगतान कभी नहीं किया जा सकता. इसलिए यह खुद-ब-खुद टेढ़ा हो गया और अब तक उसी तरह ही है. फिलहाल अलग-अलग दंत कथाएं इस मंदिर से जुड़ी हैं और कौन सही है और कौन गलत, यह तो शास्त्र ही बता सकते हैं, लेकिन मंदिर की अद्भुत निर्माण शैली और उसके झुकाव को देखकर यह मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लोगों को अपनी ओर खींचता है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.


घाटों के कटाव से हो सकता है टेढ़ा

भले ही मंदिर से जुड़ी कई दंत कथाएं हों, इसकी तुलना पीसा की मीनार से होती हो, लेकिन इसके टेढ़ा होने की एक बड़ी वजह गंगा किनारे होना और 10 महीने तक पानी और बालू में इसका डूबा होना हो सकता है. घाट पर रहने वाले पुराने और स्थानीय लोगों का कहना है कि गंगा धीरे-धीरे घाटों को छोड़ रही है, जिसकी वजह से तमाम घाट टेढ़े मेढ़े हो रहे हैं. घाट पर कई मंदिर और कई इमारतें भी टेढ़ी हो रही हैं. समय के साथ यह मंदिर भी इस वजह से ही टेढ़ा होता जा रहा है, क्योंकि घाट नीचे से खोखले हो रहे हैं, लेकिन यह कहना कि किसी श्राप या किसी दंतकथा की वजह से यह टेढ़ा है तो ऐसा गलत हो सकता है. हां, यह जरूर है कि उस वक्त की निर्माण शैली और इस्तेमाल किए गए केमिकल की वजह से मंदिर में अब तक कोई नुकसान देखने को नहीं मिला है.

वाराणसी : शिव की नगरी काशी धरती पर उन पुराने जीवंत शहरों में गिनी जाती है, जिसका वर्णन पुराणों और शास्त्रों में मिलता है. कल-कल बहती मां गंगा यहां उत्तरवाहिनी होती है. यहां शिव विराजते हैं और कण-कण में उनका वास है. काशी के कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो उसे दुनिया में अलग बनाते हैं. ऐसा ही एक पवित्र और अद्भुत मंदिर मणिकर्णिका घाट और सिंधिया घाट के बीच स्थित है. अद्भुत डिजाइन से बनाई गई इटली की पीसा की मीनार भले ही 4 डिग्री झुकी हो और इसकी ऊंचाई 54 मीटर हो, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 400 साल पुराना यह मंदिर, जिसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, 9 डिग्री झुका हुआ है और इसकी ऊंचाई 40 मीटर है, जो अपने आप में अद्भुत और आश्चर्यजनक है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.

जुड़ी है कई दंत कथाएं

काशी के पौराणिक 400 साल पुराने रत्नेश्वर महादेव मंदिर से कई दंत कथाएं जुड़ी हैं. वास्तुकला का अद्भुत और अलौकिक उदाहरण इस मंदिर में देखने को मिलता है. पुराणों में वर्णित जिन दंत कथाओं का जिक्र है, उसमें सबसे ज्यादा प्रचलित महारानी अहिल्याबाई होल्कर और उनकी दासी रत्नाबाई की कहानी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसा कहा जाता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने जब मणिकर्णिका घाट पर तारकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था तो उससे प्रभावित होकर उनकी दासी रत्नाबाई ने उसके ठीक सामने एक दूसरे शिव मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन अंतर बस इतना था कि अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट के ऊपर था और रत्नाबाई द्वारा बनवाया गया मंदिर गंगा घाट की तलहटी में मां गंगा के नजदीक था.

स्पेशल रिपोर्ट...

लगभग 40 फीट ऊंचा गुजरात शैली पर बने इस भव्य मंदिर को बनवाने में जब रत्नाबाई को दिक्कत आने लगी तो उन्होंने कुछ पैसे महारानी अहिल्याबाई होल्कर से उधार भी लिए. इस पर महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर को देखने की इच्छा जाहिर की. मंदिर देखकर वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने इसका नाम न देने का आग्रह रत्नाबाई से किया, लेकिन रत्नाबाई नहीं मानी और इस मंदिर का नाम उन्होंने अपने नाम पर रत्नेश्वर महादेव रखा, जिसकी जानकारी होने पर अहिल्याबाई होल्कर नाराज हो गईं और यह श्राप दिया कि इस मंदिर में पूजा-पाठ सिर्फ 2 महीने ही हो पाएगा. इसके बाद यह मंदिर 10 महीनों तक तो मिट्टी और पानी में डूबा रहता है और केवल 2 महीने ही इसमें पूजा होती है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.

दूसरी कथा

दूसरी कथा यह भी है कि इस मंदिर को काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन काशी करवट का असली मंदिर भगवान विश्वनाथ मंदिर के नजदीक नेपाली कपड़ा इलाके में है. पश्चिम बंगाल व अन्य इलाके के आने वाले लोग इस मंदिर को मातृऋण मंदिर के नाम से जानते है. एक दंतकथा यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण मातृऋण को चुकाने के लिए करवाया गया था, लेकिन मां के ऋण का भुगतान कभी नहीं किया जा सकता. इसलिए यह खुद-ब-खुद टेढ़ा हो गया और अब तक उसी तरह ही है. फिलहाल अलग-अलग दंत कथाएं इस मंदिर से जुड़ी हैं और कौन सही है और कौन गलत, यह तो शास्त्र ही बता सकते हैं, लेकिन मंदिर की अद्भुत निर्माण शैली और उसके झुकाव को देखकर यह मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लोगों को अपनी ओर खींचता है.

ratneshwar mahadev temple varanasi
रत्नेश्वर महादेव मंदिर.


घाटों के कटाव से हो सकता है टेढ़ा

भले ही मंदिर से जुड़ी कई दंत कथाएं हों, इसकी तुलना पीसा की मीनार से होती हो, लेकिन इसके टेढ़ा होने की एक बड़ी वजह गंगा किनारे होना और 10 महीने तक पानी और बालू में इसका डूबा होना हो सकता है. घाट पर रहने वाले पुराने और स्थानीय लोगों का कहना है कि गंगा धीरे-धीरे घाटों को छोड़ रही है, जिसकी वजह से तमाम घाट टेढ़े मेढ़े हो रहे हैं. घाट पर कई मंदिर और कई इमारतें भी टेढ़ी हो रही हैं. समय के साथ यह मंदिर भी इस वजह से ही टेढ़ा होता जा रहा है, क्योंकि घाट नीचे से खोखले हो रहे हैं, लेकिन यह कहना कि किसी श्राप या किसी दंतकथा की वजह से यह टेढ़ा है तो ऐसा गलत हो सकता है. हां, यह जरूर है कि उस वक्त की निर्माण शैली और इस्तेमाल किए गए केमिकल की वजह से मंदिर में अब तक कोई नुकसान देखने को नहीं मिला है.

Last Updated : Jan 15, 2021, 9:47 PM IST
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