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बनारसी साड़ी और पान से ज्यादा फेमस हैं यहां की गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, बनावट है बिल्कुल अलग - बनारसी की फेमस गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दिवाली के मौके पर बनारसी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का काफी महत्व है. यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार की जाती हैं. इन मूर्तियों की सप्लाई भी कोलकाता, मद्रास और महाराष्ट्र तक की जाती है.

प्रसिद्ध हैं वाराणसी की गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां.
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Published : Oct 22, 2019, 2:28 PM IST

वाराणसी: वैसे तो आपने बनारसी साड़ी और बनारसी पान के बारे में सुना होगा. यह दो चीजें बनारस में सबसे ज्यादा फेमस हैं. वहीं दिवाली के मौके पर बनारस में बनारसी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का काफी महत्व है. यह मूर्तियां दिवाली के मौके पर सालों से परंपरा के साथ पौराणिकता को समेट कर आगे बढ़ रही हैं. इन मूर्तियों की सप्लाई कोलकाता, मद्रास और महाराष्ट्र तक की जाती है.

जानकारी देते संवाददाता.
प्लास्टर ऑफ पेरिस और चाइना की बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां दिवाली के मौके पर हर किसी को भाती हैं, लेकिन बनारस में ऐसी मिट्टी की मूर्तियों को बनाया जाता है, जो केसरिया रंग में रंगी प्रतिमाएं पीली वाली प्रतिमाओं के नाम से जानी जाती हैं. गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों में लोहे की तीलियों पर मिट्टी से बनाए गए सुंदर डिजाइन दिखाई देते हैं. अपने आप में अनोखी यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं और कच्ची मिट्टी पर ही गेरुआ रंग लगाकर इनकों पूजा के लिए तैयार किया जाता है.

यह मूर्तियां सिर्फ बनारस में बनती हैं, इसलिए इनकी डिमांड पूरे देश में रहती है. कच्ची मिट्टी से तैयार होने की वजह से यह शुद्ध होती हैं और पूजा के लिए शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप भी होती हैं. यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है.

बनारस में तैयार होने वाली इन मूर्तियों में गणेश जी की जो डिजाइन है, वही सेम डिजाइन मुंबई के सिद्धिविनायक गणेश की है. यह डिजाइन ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है. दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लोग इन मूर्तियों को अपने यहां और बनारस में भी पूजते हैं और महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं.
-मनोज प्रजापति, मूर्तिकार

शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप कच्ची मिट्टी से तैयार इन तीली वाली प्रतिमाओं की ही पूजा करना शास्त्रों में बताया गया है, जिसकी वजह से हम ऐसी प्रतिमाओं की स्थापना कर उनको दीपावली पर पूजते हैं और घर में धन-धान्य और हंसी-खुशी के माहौल की भगवान से कामना करते हैं.
-राजीवन द्रविण, खरीददार

वाराणसी: वैसे तो आपने बनारसी साड़ी और बनारसी पान के बारे में सुना होगा. यह दो चीजें बनारस में सबसे ज्यादा फेमस हैं. वहीं दिवाली के मौके पर बनारस में बनारसी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों का काफी महत्व है. यह मूर्तियां दिवाली के मौके पर सालों से परंपरा के साथ पौराणिकता को समेट कर आगे बढ़ रही हैं. इन मूर्तियों की सप्लाई कोलकाता, मद्रास और महाराष्ट्र तक की जाती है.

जानकारी देते संवाददाता.
प्लास्टर ऑफ पेरिस और चाइना की बनी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां दिवाली के मौके पर हर किसी को भाती हैं, लेकिन बनारस में ऐसी मिट्टी की मूर्तियों को बनाया जाता है, जो केसरिया रंग में रंगी प्रतिमाएं पीली वाली प्रतिमाओं के नाम से जानी जाती हैं. गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों में लोहे की तीलियों पर मिट्टी से बनाए गए सुंदर डिजाइन दिखाई देते हैं. अपने आप में अनोखी यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं और कच्ची मिट्टी पर ही गेरुआ रंग लगाकर इनकों पूजा के लिए तैयार किया जाता है.

यह मूर्तियां सिर्फ बनारस में बनती हैं, इसलिए इनकी डिमांड पूरे देश में रहती है. कच्ची मिट्टी से तैयार होने की वजह से यह शुद्ध होती हैं और पूजा के लिए शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप भी होती हैं. यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड पश्चिम बंगाल, दक्षिण भारत, पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है.

बनारस में तैयार होने वाली इन मूर्तियों में गणेश जी की जो डिजाइन है, वही सेम डिजाइन मुंबई के सिद्धिविनायक गणेश की है. यह डिजाइन ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है. दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लोग इन मूर्तियों को अपने यहां और बनारस में भी पूजते हैं और महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं.
-मनोज प्रजापति, मूर्तिकार

शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप कच्ची मिट्टी से तैयार इन तीली वाली प्रतिमाओं की ही पूजा करना शास्त्रों में बताया गया है, जिसकी वजह से हम ऐसी प्रतिमाओं की स्थापना कर उनको दीपावली पर पूजते हैं और घर में धन-धान्य और हंसी-खुशी के माहौल की भगवान से कामना करते हैं.
-राजीवन द्रविण, खरीददार

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: वैसे तो आपने बनारस में बनारसी साड़ी और बनारसी पान के बारे में सुना होगा यह दो चीजें बनारस में सबसे ज्यादा फेमस है लेकिन अगर हम आपसे यह कहें कि दिवाली के मौके पर बनारस में मिलने वाली बनारसी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां पूरे देश में एक अलग पहचान रखती हैं तो शायद थोड़ा आश्चर्य जरूर होगा, क्योंकि बनारसी मूर्तियां सुनने में ही अजीब लगता है लेकिन दिवाली के मौके पर आज हम बनारस की उस परंपरा और शास्त्रीय चीजों से आपको अवगत कराने जा रहे हैं, जो आज से नहीं बल्कि सालों से परंपरा के साथ पौराणिकता को समेट कर आगे बढ़ रही हैं. सबसे खास बात यह है कि बनारस में तैयार होने वाली है बनारसी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां सिर्फ और सिर्फ बनारस में ही तैयार होती हैं और यहां से कोलकाता से लेकर मद्रास और महाराष्ट्र तक इनकी सप्लाई की जाती है.


Body:वीओ-01 दरअसल बदलते दौर के साथ प्लास्टर ऑफ पेरिस और चाइना की बनी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां दिवाली के मौके पर हर किसी को भाती हैं, लेकिन बनारस में इनसे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यहां पर बनने वाली बनारसी मूर्तियां से बनारस ही नहीं बल्कि देशभर में सप्लाई की जाती हैं. बनारस के लक्सा और जददू मंडी इलाके में कुछ परिवार ही इन मूर्तियों को तैयार करते हैं सबसे बड़ी बात यह है कि इन मूर्तियों को दूर से देख कर ही आप यह समझ जाएंगे कि अब बनारस में तैयार गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा है केसरिया रंग में रंगी यह प्रतिमाएं पीली वाली प्रतिमाओं के नाम से जानी जाती हैं, क्योंकि इनमें गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमाओं में लोहे की तीलियों पर मिट्टी से बनाए गए सुंदर डिजाइन दिखाई देते हैं अपने आप में अनोखी यह मूर्तियां मिट्टी से तैयार होती हैं और कच्ची मिट्टी पर ही गिरोह और रंग कर इनको पूजा के लिए तैयार किया जाता है. इसे तैयार करने वाले मूर्ति कारों का कहना है कि यह मूर्तियां सिर्फ बनारस में बनती हैं इसलिए इनकी डिमांड पूरे देश में रहती है. कच्ची मिट्टी से तैयार होने की वजह से यह शुद्ध होती हैं और पूजा के लिए शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप भी होती हैं. यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड पश्चिम बंगाल दक्षिण भारत और पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा है.


Conclusion:वीओ-02 सबसे बड़ी बात यह है कि बनारस में तैयार होने वाली इन मूर्तियों में गणेश जी की जो डिजाइन है. वही सेम डिजाइन मुंबई के सिद्धिविनायक गणेश की है यह डिजाइन ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित है इस वजह से बनारस में रहने वाले बड़ी संख्या में दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के लोग इन मूर्तियों को अपने यहां और बनारस में भी पूजते हैं और महाराष्ट्र दक्षिण भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदारों को भी भेजते हैं. लोगों का कहना है कि शास्त्री मान्यताओं के अनुरूप कच्ची मिट्टी से तैयार इन तीली वाली प्रतिमाओं की ही पूजा करना शास्त्रों में बताया गया है. जिसकी वजह से हम ऐसी प्रतिमाओं की स्थापना कर उनको दीपावली पर पूछते हैं और घर में धन-धान्य और हंसी खुशी के माहौल की भगवान से कामना करते हैं.

बाईट- मनोज प्रजापति, मूर्तिकार
बाईट- राजीवन द्रविण, खरीददार

गोपाल मिश्र

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