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वाराणसी: सावन का शनिवार है बेहद खास, अराधना से मिलती है विशेष कृपा - Shani-shiv katha

सावन के समय शिव को जल चढ़ाने का विशेष महत्व है. इसके साथ ही सावन में पड़ने वाले शनिवार की भी अपनी मान्यता है. पुराणों में लिखा है कि भगवान शिव ने शनि पर कृपा करते हुए यह वरदान दिया कि जो शिव की आराधना करेगा, वह शनि की दृष्टि से बचेगा. यही वजह है कि सावन में शनि की उपासना का विशेष महत्व है.

सावन शनिवार विशेष
सावन शनिवार विशेष
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Published : Jul 25, 2020, 2:28 PM IST

Updated : Jul 25, 2020, 5:41 PM IST

वाराणसी: सावन और शिव दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव पर चढ़ाया गया एक लोटा जल आपको समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है और सावन के सोमवार पर यदि शिव को जल अर्पित किया तो फिर आपके वारे न्यारे हो जाते हैं. वहीं बहुत कम लोग जानते हैं कि शिव को सावन के शनिवार को जल अर्पित करने से शनि की विशेष कृपा मिलती है. इसका शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है.

पत्नी ने दिया था श्राप

दरअसल एक कथा के मुताबिक कर्मफल दाता शनि भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं. एक बार वह शिव की भक्ति में लीन थे, इस समय उनकी अर्धांगिनी पुत्र की चाहत के साथ उनके पास पहुंची लेकिन बार-बार पत्नी के ध्यान आकर्षित करने के बाद भी शनिदेव ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तक नहीं. जिसके बाद उनकी अर्धांगिनी इतनी नाराज हुई कि उन्होंने भगवान शनि को श्राप दे दिया कि आपकी दृष्टि जिस पर पड़ेगी वह भस्म हो जाएगा.

भगवान शिव ने दिया था आशीर्वाद

इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि भगवान शनि देव को लेकर जुड़ी यह कथा पुराणों में वर्णित है. शास्त्रों में कहा गया है कि जब उस वक्त भगवान शनि की दृष्टि से लोग भस्म होने लगे तो हाहाकार मच गया. देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की तब भगवान शिव ने शनि पर कृपा करते हुए यह वरदान दिया कि जो शिव की आराधना करेगा, वह शनि की दृष्टि से बचेगा. यही वजह है कि सावन के शनिवार का शनि उपासना के साथ शिव की कृपा पाने के लिए विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव के 11वें अवतार के रूप में प्रभु हनुमान की पूजा भी होती है. इसलिए भगवान शिव के साथ लोग हनुमान जी का पूजन भी करते हैं. हनुमान जी के पूजन से सारे कष्टों का नाश और शनि की कृपा से बचने का उपाय मिलता है, लेकिन यदि सावन का पवित्र महीना हो और भगवान शिव की आराधना के साथ शनिदेव की आराधना की जाए तो शनि के प्रकोप और शनि की साढ़े साती और अढैया से राहत मिलती है.

सावन में शिव को जल चढ़ाने का विशेष महत्व

सावन के मौके पर भगवान शिव को जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व माना गया है. ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि सावन ही नहीं भगवान शिव को जल अर्पित करने का वह तो हमेशा होता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि इससे जुड़ी एक कथा शास्त्रों में वर्णित है. जब समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला तब ब्रह्मा विष्णु दोनों ने इसके निस्तारण से इंकार कर दिया तब देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई देवताओं ने कहा की है परमपिता परमेश्वर पूरी सृष्टि समुद्र मंथन से निकले विष की वजह से जल रही है. गर्मी बढ़ गई है, तापमान चरम पर है. आप कुछ कीजिए, तब भगवान शिव ने उस विष को पीकर पूरी सृष्टि को बचाया विष पीने के बाद भगवान नीलकंठ कहलाए और देवताओं से अलग हट उन्हें महादेव से नाम से जाना गया.

विष की गर्मी की वजह से महादेव का शरीर जलने लगा. उसके बाद देवताओं ने पवित्र नदियों के जल से भगवान को शीतल कर उनके शरीर के ताप को कम किया तभी से कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत हुई और सावन के महीने में भक्त भगवान शिव पर अलग-अलग नदियों के जल चढ़ाकर उन्हें शीतलता प्रदान करते हैं. इसके अतिरिक्त एक कथा और है इस कथा के मुताबिक जब श्रावण मास के पहले चातुर्मास की शुरुआत होती है. तब भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में नीर के रूप में विश्राम करते हैं. भगवान विष्णु का चातुर्मास के दौरान जल तत्व में परिवर्तित होना. यह संदेश देता है कि जल का महत्व सिर्फ इंसान के लिए जीवन के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक रूप में भी काफी है. यही वजह है कि भगवान विष्णु और शिव का मिलन सावन में होता है पानी के रूप में परिवर्तित हुए विष्णु और शिव का भी विशेष महत्व सावन में माना जाता है. दोनों देवताओं के दर्शन पूजन से विशेष लाभ मिलता है.

वाराणसी: सावन और शिव दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव पर चढ़ाया गया एक लोटा जल आपको समस्त पापों से मुक्ति दिलाता है और सावन के सोमवार पर यदि शिव को जल अर्पित किया तो फिर आपके वारे न्यारे हो जाते हैं. वहीं बहुत कम लोग जानते हैं कि शिव को सावन के शनिवार को जल अर्पित करने से शनि की विशेष कृपा मिलती है. इसका शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है.

पत्नी ने दिया था श्राप

दरअसल एक कथा के मुताबिक कर्मफल दाता शनि भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं. एक बार वह शिव की भक्ति में लीन थे, इस समय उनकी अर्धांगिनी पुत्र की चाहत के साथ उनके पास पहुंची लेकिन बार-बार पत्नी के ध्यान आकर्षित करने के बाद भी शनिदेव ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तक नहीं. जिसके बाद उनकी अर्धांगिनी इतनी नाराज हुई कि उन्होंने भगवान शनि को श्राप दे दिया कि आपकी दृष्टि जिस पर पड़ेगी वह भस्म हो जाएगा.

भगवान शिव ने दिया था आशीर्वाद

इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि भगवान शनि देव को लेकर जुड़ी यह कथा पुराणों में वर्णित है. शास्त्रों में कहा गया है कि जब उस वक्त भगवान शनि की दृष्टि से लोग भस्म होने लगे तो हाहाकार मच गया. देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की तब भगवान शिव ने शनि पर कृपा करते हुए यह वरदान दिया कि जो शिव की आराधना करेगा, वह शनि की दृष्टि से बचेगा. यही वजह है कि सावन के शनिवार का शनि उपासना के साथ शिव की कृपा पाने के लिए विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव के 11वें अवतार के रूप में प्रभु हनुमान की पूजा भी होती है. इसलिए भगवान शिव के साथ लोग हनुमान जी का पूजन भी करते हैं. हनुमान जी के पूजन से सारे कष्टों का नाश और शनि की कृपा से बचने का उपाय मिलता है, लेकिन यदि सावन का पवित्र महीना हो और भगवान शिव की आराधना के साथ शनिदेव की आराधना की जाए तो शनि के प्रकोप और शनि की साढ़े साती और अढैया से राहत मिलती है.

सावन में शिव को जल चढ़ाने का विशेष महत्व

सावन के मौके पर भगवान शिव को जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व माना गया है. ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि सावन ही नहीं भगवान शिव को जल अर्पित करने का वह तो हमेशा होता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि इससे जुड़ी एक कथा शास्त्रों में वर्णित है. जब समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला तब ब्रह्मा विष्णु दोनों ने इसके निस्तारण से इंकार कर दिया तब देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई देवताओं ने कहा की है परमपिता परमेश्वर पूरी सृष्टि समुद्र मंथन से निकले विष की वजह से जल रही है. गर्मी बढ़ गई है, तापमान चरम पर है. आप कुछ कीजिए, तब भगवान शिव ने उस विष को पीकर पूरी सृष्टि को बचाया विष पीने के बाद भगवान नीलकंठ कहलाए और देवताओं से अलग हट उन्हें महादेव से नाम से जाना गया.

विष की गर्मी की वजह से महादेव का शरीर जलने लगा. उसके बाद देवताओं ने पवित्र नदियों के जल से भगवान को शीतल कर उनके शरीर के ताप को कम किया तभी से कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत हुई और सावन के महीने में भक्त भगवान शिव पर अलग-अलग नदियों के जल चढ़ाकर उन्हें शीतलता प्रदान करते हैं. इसके अतिरिक्त एक कथा और है इस कथा के मुताबिक जब श्रावण मास के पहले चातुर्मास की शुरुआत होती है. तब भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में नीर के रूप में विश्राम करते हैं. भगवान विष्णु का चातुर्मास के दौरान जल तत्व में परिवर्तित होना. यह संदेश देता है कि जल का महत्व सिर्फ इंसान के लिए जीवन के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक रूप में भी काफी है. यही वजह है कि भगवान विष्णु और शिव का मिलन सावन में होता है पानी के रूप में परिवर्तित हुए विष्णु और शिव का भी विशेष महत्व सावन में माना जाता है. दोनों देवताओं के दर्शन पूजन से विशेष लाभ मिलता है.

Last Updated : Jul 25, 2020, 5:41 PM IST
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