वाराणसी: डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप यानी डीएलडब्ल्यू सीनियर ऑफिस सुपरीटेंडेंट के पद पर तैनात भैरव दत्त फुटबॉल कोच हैं. उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा के बल पर गांव की पगडंडियों और घरों में कैद लड़कियों को बाहर निकाल कर इस तरह तैयार किया कि वह आज नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अपने शहर ही नहीं, बल्कि यूपी का नाम रोशन करने की तैयारी कर रही हैं.
भैरव दत्त यूपी फुटबॉल टीम में बतौर कोच के अलावा इंडियन रेलवे में कुछ और सिलेक्टर की भूमिका निभा चुके भैरव दत्त की उम्र 58 वर्ष है. 2 साल में उनका रिटायरमेंट है, लेकिन जज्बा किसी युवा से कम नहीं है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के रहने वाले भैरव दत्त को तो विश्वास ही नहीं होता कि पहाड़ों की दुनिया से निकलकर वह मैदानी इलाके में पहुंचे और अपने खेल के जुनून को उन्होंने न सिर्फ पूरा किया, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन गए.
2012 में ट्रेनिंग सेंटर बनाने का लिया फैसला
बेहतरीन फुटबॉलर होने के बाद भी उन्हें नेशनल टीम में मौका नहीं मिल पाया. 2012 में उन्होंने खुद का ट्रेनिंग सेंटर बनाने का फैसला लिया. सरकारी नौकरी थी, लेकिन बिना किसी लालच के अपने घर के पास पहाड़ी गांव में उन्होंने खाली पड़ी जमीन पर महज तीन बच्चों को इकट्ठा कर फुटबॉल सिखाने की शुरुआत की. गांव में इधर-उधर घूमने वाले, जुआ खेलने वाले आवारागर्दी करके परिवार के लिए सरदर्द बने बच्चे जब मैदान में फुटबॉल के संग ड्रिबलिंग करते हुए आगे बढ़ने लगे तो गांव के और लोगों की सोच बदल गई.
लगभग 400 बच्चे सेंटर में ले रहे ट्रेनिंग
लोग जुड़ते गए और कारवां आगे बढ़ता गया, लेकिन भैरव दत्त यहीं नहीं रुके. उन्होंने लड़कों की जगह लड़कियों को ट्रेंड करने की ठानी और घर-घर जाकर 5 से 10 साल की बच्चियों को उनके घरों से बाहर निकाला. शुरुआत में बहुत से माता-पिता ने विरोध किया, लेकिन उनको समझा-बुझाकर लड़कियों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देने में जुट गए. जिसके बाद आज लगभग 400 बच्चे उनके इस ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग ले रहे हैं.
नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर लड़कियां खेल रही फुटबॉल
इनमें से 85 लड़कियां अपने परिवार से लड़कर फुटबॉल जैसे खेल में अपना करियर तलाश रही है. इस लिस्ट में 42 लड़कियां वर्तमान समय में नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर फुटबॉल खेल रही हैं. इनमें से ज्योति इंटरनेशनल लेवल पर अंडर 17 इंडियन फुटबॉल टीम का हिस्सा है और गोवा में चल रहे कैंप से अभी लौट कर आई है. ज्योति अंडर 17 वर्ल्ड कप की तैयारियों में जुटी है और भूटान, मंगोलिया जैसे देशों में भी खेल कर अपने गुरु का मान बढ़ा रही हैं. ज्योति के अलावा बहुत से बच्चे ऐसे हैं, जो लगातार नेशनल लेवल पर खेलकर अपने गुरु की उम्मीदों के साथ अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा कर रहे हैं.
7 साल की उम्र में पिता की मौत
भैरव दत्त बताते हैं कि 7 साल की उम्र में पिता की मौत के बाद मां ने संघर्षों से पाला. 13 साल की उम्र में होटल में काम करना शुरू किया. इसी दौरान कपड़े से फुटबॉल बनाकर पहाड़ों पर खेलता था. 10 साल तक संतोष ट्रॉफी में हिस्सा लिया. 1980 में डीएलडब्ल्यू में नौकरी मिल गई तो घरवालों की उम्मीदें बढ़ गई. घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है अब इसका ध्यान इस फुटबॉल से हट जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
5 साल तक उत्तर प्रदेश में रहे कोच
नौकरी के दौरान भैरव दत्त को पहले सुब्रतो कप, फिर डूरंड कप में खेलने का मौका मिला, लेकिन नेशनल टीम में मौका नहीं मिल पाया. 1990 में पटियाला से कोचिंग का कोर्स पूरा करने के बाद 5 साल तक उत्तर प्रदेश में कोच रहे. उन्होंने बताया कि इस बीच 2010 में घर बनवाया और पहाड़ी गांव में शिफ्ट हो गया. बस यहीं से शुरू हुआ गुरु बनने का सफर.
लड़कियां बढ़ा रही यूपी का मान
2012 में भैरव दत्त ने नए मकान के बाहर टहलते हुए खाली मैदान में बच्चों को गलत आदतों में लिप्त पाया, तो इनकी जिंदगी बदलने की ठानी. अपने खेल के बल पर इनको उससे जोड़ने की कोशिश शुरू की और धीरे-धीरे बच्चे जुड़ते गए. अपनी सैलरी के पैसों से इक्विपमेंट्स खरीदें और 2 साल तक उसकी ईएमआई खुद से चुकाई. आज हालात यह हैं कि भैरव दत्त की मेहनत रंग लाई है और उनकी सिखाई लड़कियां नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर खेलकर यूपी का मान बढ़ा रही हैं.