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पुण्यतिथि विशेष: महामना मदन मोहन मालवीय ने रखी थी BHU की आधारशिला

देश को बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसा संस्थान देने वाले पंडित मदन मोहन मालवीय की आज पुण्यतिथि है. वह पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना के सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया.

महामना मदन मोहन मालवीय की आज है पुण्यतिथि.
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Published : Nov 12, 2019, 7:51 AM IST

वाराणसी: भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय या महामना मालवीय एक पत्रकार, समाज-सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे. पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. महामना का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में हुआ था. वह भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना के सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी बीएचयू की स्थापना.

उन्होंने पत्रकारिता, वकालत, मातृभाषा, समाज सुधारक और भारत माता की सेवा में अपना जीवन अर्पण किया. मालवीय जी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति और आत्मत्याग में अद्वितीय थे. वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे. स्वतंत्रता आंदोलन के बाद भी मालवीय जी सत्ता से दूर रहे. उन्होंने विश्वविद्यालय में ही अपना समय बिताया. 12 नवंबर 1946 को उनका देहांत हो गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी बीएचयू की स्थापना
भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की. इस विश्वविद्यालय की स्थापना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन 1915 के अंतर्गत हुई. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की शुरूआत 1904 ईस्वी में की गयी थी. मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी के दिन विश्वविद्यालय की 1916 में स्थापना की थी.

इसको काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी कहा जाता है. जनवरी 1916 में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर देश भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया. कहा जाता है वहां एक वृद्ध ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया था. विश्वविद्यालय की स्थापना में डॉक्टर एनी बेसेंट, दरभंगा के राजा रामेश्वर सिंह, काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा. बसंत पंचमी के दिन 4 जनवरी 1916 को रामनगर के समांतर महाराजा प्रभु नारायण सिंह द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ. उस वक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नर, राजे रजवाड़े, समांतर गवर्नर जनरल और अनेक वायसराय उपस्थित रहे.


विश्वविद्यालय में यह है खास
1300 एकड़ भूमि में स्थित यह विश्वविद्यालय देश के प्रति भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के त्याग और बलिदान की गाथा सुनाती है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 4 संस्थान, 16 संकाय, लगभग 132 विभाग, एक महिला महाविद्यालय, चार अंतर विषयक स्कूल हैं. वाराणसी में चार महाविद्यालय को काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्वीकृति है. विश्वविद्यालय द्वारा बच्चों के लिए तीन विद्यालय हैं. यह ऐसा विश्वविद्यालय है जहां गुरुकुल की परंपरा से लेकर साइंस एंड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई होती है. यहां पर ज्योतिष का ओपीडी भी चलता है, तो वहीं सर सुंदरलाल चिकित्सालय में लगभग प्रतिदिन पांच हजार मरीज आते हैं. विश्वविद्यालय में 30 हजार से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं. यह सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है. इसके बाद मिर्जापुर जिले में राजीव गांधी कैंपस है, जो 2600 एकड़ में फैला है.


बीएचयू में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना
बीएचयू में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना भी मालवीय जी ने किया था. हालांकि मालवीय जी इस निर्माण को पूरा होते नहीं देख पाए. मंदिर गुलाबी संगमरमर का बना हुआ है. महामना जी का उद्देश्य धर्म और अध्यात्म से जुड़े रहना था.


विश्वविद्यालय में संजोयी गयी है महामना की स्मृति
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन है, जो उसी अवस्था में रखा गया है जिस तरह मालवीय जी उस में रहते थे. मालवीय जी से जुड़ी बहुत सी फोटो वहां पर रखे हैं. उनका आवास है. जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली थी. उसके साथ ही सभागार भी है. यहां पर मालवीय जी प्रत्येक दिन गीता पढ़ते थे. इसके साथ ही भारत कला भवन में मालवीय जी से जुड़ी उनकी पुस्तकें, उनके दस्तावेज, पोशाक, खड़ाऊं, साफा के साथ भारत रत्न भी रखा गया है. देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भारत कला की म्यूजियम को देखने आते हैं.

इसे भी पढ़ें:- पुण्यतिथि विशेष: अकबर के नवरत्नों में से एक थे राजस्व प्रणाली के जनक 'राजा टोडरमल'

प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय 12 नवंबर 1946 को उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 73 वर्ष बीत गए हैं महामना जी को इस धरा से गए हुए. उनकी जो यह कृति कलश है काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महामना की तपोभूमि के रूप में यह विश्व प्रसिद्ध है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग, इंजीनियरिंग कॉलेज, विज्ञान संकाय सहित कृषि विज्ञान संकाय भी स्थापित हैं. उन्होंने ऐसे परिषद की स्थापना की, जिसमें गुरु और शिष्य एक साथ रह सकें, साथ-साथ ज्ञान का मंथन करें. इस विश्वविद्यालय का कण-कण उनके पुण्य को प्रतीत करती है. आज भी लगता है कि वह यहीं रहते हैं. स्वयं ही उनके मार्गदर्शन में यहां जो विद्या परंपरा है, आगे बढ़ रही है.


प्रो. विजय नाथ मिश्र ने बताया कि मालवीय जी ने बराबर इस बात पर जोर दिया कि पढ़ाई कर अपने अंदर धार्मिकता लाइए. विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग, संस्कृति विभाग, विज्ञान, कला, इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंस विभाग हैं.

वाराणसी: भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय या महामना मालवीय एक पत्रकार, समाज-सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे. पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. महामना का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में हुआ था. वह भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना के सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी बीएचयू की स्थापना.

उन्होंने पत्रकारिता, वकालत, मातृभाषा, समाज सुधारक और भारत माता की सेवा में अपना जीवन अर्पण किया. मालवीय जी सत्य, ब्रह्मचर्य, व्यायाम, देशभक्ति और आत्मत्याग में अद्वितीय थे. वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे. स्वतंत्रता आंदोलन के बाद भी मालवीय जी सत्ता से दूर रहे. उन्होंने विश्वविद्यालय में ही अपना समय बिताया. 12 नवंबर 1946 को उनका देहांत हो गया.

पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी बीएचयू की स्थापना
भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की. इस विश्वविद्यालय की स्थापना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन 1915 के अंतर्गत हुई. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की शुरूआत 1904 ईस्वी में की गयी थी. मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी के दिन विश्वविद्यालय की 1916 में स्थापना की थी.

इसको काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी कहा जाता है. जनवरी 1916 में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर देश भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया. कहा जाता है वहां एक वृद्ध ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया था. विश्वविद्यालय की स्थापना में डॉक्टर एनी बेसेंट, दरभंगा के राजा रामेश्वर सिंह, काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा. बसंत पंचमी के दिन 4 जनवरी 1916 को रामनगर के समांतर महाराजा प्रभु नारायण सिंह द्वारा काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ. उस वक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नर, राजे रजवाड़े, समांतर गवर्नर जनरल और अनेक वायसराय उपस्थित रहे.


विश्वविद्यालय में यह है खास
1300 एकड़ भूमि में स्थित यह विश्वविद्यालय देश के प्रति भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के त्याग और बलिदान की गाथा सुनाती है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 4 संस्थान, 16 संकाय, लगभग 132 विभाग, एक महिला महाविद्यालय, चार अंतर विषयक स्कूल हैं. वाराणसी में चार महाविद्यालय को काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्वीकृति है. विश्वविद्यालय द्वारा बच्चों के लिए तीन विद्यालय हैं. यह ऐसा विश्वविद्यालय है जहां गुरुकुल की परंपरा से लेकर साइंस एंड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई होती है. यहां पर ज्योतिष का ओपीडी भी चलता है, तो वहीं सर सुंदरलाल चिकित्सालय में लगभग प्रतिदिन पांच हजार मरीज आते हैं. विश्वविद्यालय में 30 हजार से अधिक विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते हैं. यह सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है. इसके बाद मिर्जापुर जिले में राजीव गांधी कैंपस है, जो 2600 एकड़ में फैला है.


बीएचयू में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना
बीएचयू में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना भी मालवीय जी ने किया था. हालांकि मालवीय जी इस निर्माण को पूरा होते नहीं देख पाए. मंदिर गुलाबी संगमरमर का बना हुआ है. महामना जी का उद्देश्य धर्म और अध्यात्म से जुड़े रहना था.


विश्वविद्यालय में संजोयी गयी है महामना की स्मृति
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन है, जो उसी अवस्था में रखा गया है जिस तरह मालवीय जी उस में रहते थे. मालवीय जी से जुड़ी बहुत सी फोटो वहां पर रखे हैं. उनका आवास है. जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली थी. उसके साथ ही सभागार भी है. यहां पर मालवीय जी प्रत्येक दिन गीता पढ़ते थे. इसके साथ ही भारत कला भवन में मालवीय जी से जुड़ी उनकी पुस्तकें, उनके दस्तावेज, पोशाक, खड़ाऊं, साफा के साथ भारत रत्न भी रखा गया है. देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भारत कला की म्यूजियम को देखने आते हैं.

इसे भी पढ़ें:- पुण्यतिथि विशेष: अकबर के नवरत्नों में से एक थे राजस्व प्रणाली के जनक 'राजा टोडरमल'

प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय 12 नवंबर 1946 को उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया. लगभग 73 वर्ष बीत गए हैं महामना जी को इस धरा से गए हुए. उनकी जो यह कृति कलश है काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महामना की तपोभूमि के रूप में यह विश्व प्रसिद्ध है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग, इंजीनियरिंग कॉलेज, विज्ञान संकाय सहित कृषि विज्ञान संकाय भी स्थापित हैं. उन्होंने ऐसे परिषद की स्थापना की, जिसमें गुरु और शिष्य एक साथ रह सकें, साथ-साथ ज्ञान का मंथन करें. इस विश्वविद्यालय का कण-कण उनके पुण्य को प्रतीत करती है. आज भी लगता है कि वह यहीं रहते हैं. स्वयं ही उनके मार्गदर्शन में यहां जो विद्या परंपरा है, आगे बढ़ रही है.


प्रो. विजय नाथ मिश्र ने बताया कि मालवीय जी ने बराबर इस बात पर जोर दिया कि पढ़ाई कर अपने अंदर धार्मिकता लाइए. विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग, संस्कृति विभाग, विज्ञान, कला, इंजीनियरिंग, मेडिकल साइंस विभाग हैं.

Intro:विशेष खबर

भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा पवित्र धार्मिक नगर वाराणसी में पतित पावनी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित विश्वविद्यालय भारत की धार्मिक राजधानी विद्या ज्ञान केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।
महामना का जन्म 25 दिसंबर 1861 को प्रयाग में हुआ था। वह भारत के पहले और अंतिम व्यक्ति थे, जिन्हे महामना के सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधारक मातृभाषा तथा भारत माता की सेवा में अपने जीवन अर्पण किया। मालवीय जी ने सत्य ब्रह्मचर्य व्यायाम देश भक्ति तथा आत्म त्याग के द्वितीय थे इन समर्थकों पर वह केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे।अपितु उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे। स्वतन्त्रा आंदोलन के बाद भी मालवीय जी सत्ता से दूर रहें। उन्होंने विश्वविद्यालय में ही अपना समय बिताया ऐसे में हिंदी तिथि के अनुसार 12 नवंबर 1946 को भारत माता के इस महान सपूत हमेशा के लिए भारत माता की गोद में सो गए।


Body:भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जिसका संक्षिप्त नाम बीएचयू स्थापना किया। इस विश्वविद्यालय की स्थापना बनारस हिंदू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16 सन 1915 के अंतर्गत हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रारंभ 1904 ईस्वी में किया। जबकि काशी नरेश महाराजा प्रभु नारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की बैठक हुई
जिसमें 1905 ई में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ।इसमें काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी कहा जाता है। जनवरी 1916 में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आई जनता के बीच अपने संकल्प को दोहराया।कहा का जाता है वही एक वृद्ध ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। विश्वविद्यालय की स्थापना में डॉक्टर एनी बेसेंट।दरभंगा के राजा महाराजा रामेश्वर सिंह काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

बसंत पंचमी के दिन 4 जनवरी 1916 को रामनगर के समांतर महाराजा प्रभु नारायण सिंह द्वारा भूमि में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उस वक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नर राजे रजवाड़े तथा समांतर गवर्नर जनरल एवं अनेक वायसराय उपस्थित रहे।

विश्वविद्यालय में यह है खास

धर्म और ज्ञान की नगरी में अर्धचंद्राकार 1300 एकड़ भूमि में निर्मित य विश्वविद्यालय स्वयं देश के प्रति भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के त्याग और बलिदान की गाथा सुनाती है। आज के दौर में यह हरा भरा प्रांगण सबको एकता और देशभक्ति का संदेश देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में चार संस्थान ,16 संकाय, लगभग 132 विभाग, एक महिला महाविद्यालय,चार अंतर विषयक स्कूल। काशी नगर में चार महाविद्यालय को काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्वीकृति है। विश्वविद्यालय द्वारा बच्चों के लिए 3 विद्यालयों हैं। यह ऐसा विश्वविद्यालय है जहां गुरुकुल की परंपरा से लेकर साइंस एंड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई होती है। यहां पर ज्योतिष का ओपीडी चलता है। तो वही सर सुंदरलाल चिकित्सालय में लगभग प्रतिदिन 5 हजार मरीजों को देखा जाता है। विश्वविद्यालय में 30 हजार विद्यार्थि शिक्षा ग्रहण करते हैं। 1700 योग्यता धारी शिक्षक 5000 समर्पित कर्मचारी। यह सब आपको केवल महामना की बगिया में देखने को मिल सकता है। सबसे बड़ा आवासीय विश्व विधालय है। इसके बाद मिर्जापुर जिले में राजीव गांधी कैंपस है जो 2600 एकड़ में फैला है।

बीएचयू में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना मालवीय जी ने किया था हालांकि मालवीय जी इस निर्माण को पूरा होते नहीं देख । विशालकाय यह मंदिर प्रांगण जिसमें बाबा विश्वनाथ की भव्य शिवलिंग है। मंदिर गुलाबी संगमरमर का बना हुआ है महामना जी का यह उद्देश्य था कि हमें धर्म और अध्यात्म से जुड़े रहना चाहिए इसीलिए उन्होंने छात्र शिक्षक और कर्मचारी को जो मिलता है वह भगवान शिव से मिलता है वह उनको अर्पण करते उद्देश्य उन्होंने विश्वविद्यालय में मंदिर की स्थापना किया।

विश्वविद्यालय में सँजोया है महामना की स्मृति।

महामना विश्वविद्यालय में रहते थे। लेकिन विश्वविद्यालय में खाना नहीं खाते थे। उनके एक मित्र के घर से उनका खाना आता था। ऐसे में आज भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन है। जो उसी अवस्था में रखा गया। जिस तरह मालवीय जी उस में रहते थे। मालवीय जी से जुड़ी बहुत सी फोटो वहां पर रखे हैं। उनका आवास है। जहां पर उन्होंने अंतिम सांस ली थी। उसके साथ ही वह सभागार है। जहां पर मालवीय जी प्रत्येक दिन गीता पढ़ते थे। इसके साथ ही भारत कला भवन में मालवीय जी से जुड़ी उनकी पुस्तक उनके दस्तावेज पोशाक, खड़ाऊ, साफा ,के साथ भारत रत्न भी रखा गया है। देश नहीं बल्कि विदेश के लोग भारत कला की म्यूजियम को देखने आते हैं।


Conclusion:महामना की तपोभूमि काशी हिंदू विश्वविद्यालय किस शिक्षक कर्मचारी और छात्र इस बात को अच्छे से जानते हैं कि आज भी महा मना अपने इस तपोभूमि में विचरण करते हैं।


प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पूजनीय पंडित मदन मोहन मालवीय 12 नवंबर 1946 को उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। लगभग 73 वर्ष बीत गए हैं महामना जी को इस धरा से गए हुए। लेकिन उनका जो यह कृति कलश है काशी हिंदू विश्वविद्यालय। महामना की तपोभूमि के रूप में यह संसार भर में विश्व प्रसिद्ध है। संपूर्ण भारतीय ज्ञान विज्ञान परंपरागत ज्ञान जो हजारों साल से भारत में चला रहा था।उसके साथ जो पश्चात अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली भारत में आई ज्ञान विज्ञान और यूरोपियन ज्ञान दोनों का सुंदर समन्वय करके. इस काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परंपरा को भी सहेज और संरक्षित किया. आपको काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक तरफ संस्कृत विभाग दिखेगा तो दूसरी तरफ इंजीनियरिंग कॉलेज उन्होंने स्थापित किया विज्ञान संकाय स्थापित किया कृषि विज्ञान संकाय स्थापित किया। दो विशाल परिषद है। पहला परिषद जो काशी नगर में स्थित है यह तेरह सौ एकड़ का है। दूसरा दक्षिण परिषद मिर्जापुर में वह सोलह सौ एकड़ से अधिक है। ऐसे हरे भरे परिषद की स्थापना की जिसमें गुरु और शिष्य एक साथ रह सके साथ साथ ज्ञान का मंथन करें। कैसे हम भारत को और विश्व मानवता को उनके कल्याण के लिए काम करें और भारत के यश को यहां के छात्र और कर्मचारी दूर-दूर तक फैला रहे हैं। विश्व गुरु की जो ख्याति भारत की रही हो वह ज्ञान के कारण ही रही है उस छाती को पाने के लिए मनाने उसकी स्थापना की और छात्र और गुरु जन उस प्रयास में लगे हैं। इसलिए सहज ही मालवीय जी का स्मरण करते हैं करना ही चाहिए इस विश्वविद्यालय का कण-कण उनके पुणे को प्रतीत करती है आज भी लगता है कि वह यहां रहते हैं स्वयं ही उनके मार्गदर्शन में यहां जो विद्या परंपरा है आगे बढ़ रही है। इसके साथ ही उन्होंने महिला महाविद्यालय की स्थापना की जिनके लिए दरवाजे बंद क्यों दरवाजों को भी खोल दिया। सब जाती संप्रदाय के लिए विश्वविद्यालय राष्ट्रिय को समर्पित कर दिया।

बाईट :-- प्रो राकेश उपाध्याय, भारत अध्यन केंद्र,बीएचयू।

प्रो विजय नाथ मिश्र ने बताया मालवीय जी ने बराबर इस बात पर जोर दिया कि पढ़ाई कर अपने अंदर धार्मिक ता ऐसी सोच चाहिए मनुष्यों का प्रेम करे पढ़ाई इसलिए करें क्योंकि जान का दीपक जब जलेगा युग कोई भी हो। महामना की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी। आपने विश्वविद्यालय की रचना देखी होगी ऐसा कोई इंसान नहीं बल्कि महाऋषि सोच सकता है। ऐसा व्यक्ति सो सकता है जो अपने यह कभी जीवन ना जिया हो। दूसरों के लिए जीवन जिया हो। उर्दू विभाग भी है संस्कृति विभाग भी है। विज्ञान भी है कला भी है। इंजीनियरिंग है मेडिकल साइंस। नर्सरी है डिलीट है। ला कॉलेज है अंग्रेजी डिपार्टमेंट है। यह नोखा प्रयोग। केवल महामना की सोचो सकती है। और मत पूछ हो जाता है जब हम एक दूसरे से लड़ाई करते हैं एक दूसरे से देश रखती हैं लेकिन मामला ने कहा था। हम आपस में भले अलग हो। हम आपस में बातचीत करके किसी भी विवाद को खाती कर सकते हैं। हम आपस में लड़ेंगे नहीं। हम परिवार की तरह ही बड़े हो सकते हैं। अलग-अलग बड़े नहीं हो सकते।

बाईट :-- प्रो विजय नाथ मिश्रा, बीएचयू,

संबंधित खबर ऑफिस एडिट किया जाएगा जो शैलेंद्र सर और गोपाल सर के निर्देशन में किया गया है। प्रोफ़ेसर राकेश उपाध्याय की पूरी बाइट भेजी गई है।

अशुतोष उपाध्याय
9005099684,7007459303
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