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बनारस के मंदिरों में रहकर चंद्रशेखर ने लिख दी आजादी की कहानी!

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Published : Jul 24, 2020, 12:31 PM IST

देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वाले क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज 114 वीं जयंती मनाई जा रही है. इस अवसर पर जानते हैं उनका बनारस कनेक्शन..

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चंद्रशेखर आजाद की 114 वी जयंती आज.

वाराणसी: आज भारत मां के एक ऐसे पुत्र का जयंती है, जिसका नाम सुनते ही रोम-रोम देश के लिए मर मिटने को आतुर हो उठता है. उस जाबांज की कहानी सुनकर उसकी वीरता पर हर भारतीय को गर्व है. उस जाबांज का नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद. आज उस वीर सिपाही की 114 वी जयंती मनाई जा रही है. आइए जानते हैं आजाद और बनारस का कनेक्शन.

चंद्रशेखर आजाद की 114 वी जयंती आज.

मंदिरों में रहकर बनाते थे आजादी की रणनीति

धर्म और अध्यात्म के शहर काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. देश की आजादी में मंदिरों का बहुत ही बड़ा योगदान रहा. इन्हीं मंदिरों में चंद्रशेखर आजाद पुजारी के रूप में रहते थे. साथ ही वह देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ यहां के मठ मंदिर और अखाड़े हुआ करते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ मंदिर, अखाड़ों में अपना जीवन यापन करते थे और यहीं रहकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे.

अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में भी माहिर थे. यही वजह थी अंग्रेजी अवसर उनको पहचान नहीं पाते थे. कहते हैं कि बाल्यावस्था से बनारस में रहने के कारण आजाद की दिनचर्या भी बनारसी थी. यहां के अखाड़ों में चंद्रशेखर रियाज करते थे और शहर के वो पुराने अखाड़े आज भी जीवित हैं.

क्रांतिकारियों की कहानियों का उल्लेख करने वाले लोग कहते हैं कि आजाद गोस्वामी तुलसीदास और लाल कुटिया अखाड़ा में रहकर कभी पुजारी तो कभी पहलवान बनकर काशी में समय बिताया करते थे. चंद्रशेखर यहीं पर अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ आजादी के लिए क्रांतिकारी संगठन को मजबूत बनाने की योजनाएं बनाते थे.

जीवन परिचय

आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के मौजूदा अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में पंडित सीताराम तिवारी के घर हुआ था. आजाद की माता का नाम जगरानी देवी था. काकोरी कांड, अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स की हत्या और दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम विस्फोट जैसी घटनाओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आजाद प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1921 वीरगति को प्राप्त हुए थे.

बनारस के इन स्थानों पर हैं आजाद की मूर्ति

चंद्रशेखर आजाद और बनारस का संबंध यहां लगी मूर्तियां खुद बयां करती हैं. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्र संघ भवन, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, सेंट्रल जेल और लहुराबीर चौराहे पर आजाद पार्क पर आजाद की प्रतिमा स्थापित है. वहीं शिवपुर स्थित सेंट्रल जेल के अंदर चंद्रशेखर आजाद की आदम कद प्रतिमा और स्मारक का अनावरण स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 20 मई 2018 को किया था.

बीएचयू के इतिहास के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया पंडित चंद्रशेखर तिवारी संस्कृत की शिक्षा अध्ययन करने बनारस आए थे. आजाद काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनाथ मंदिर इत्यादि मंदिरों में रहते थे, फरारी के दिनों में आजाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुराने हॉस्टलों में छुपकर रहते थे.

वाराणसी: आज भारत मां के एक ऐसे पुत्र का जयंती है, जिसका नाम सुनते ही रोम-रोम देश के लिए मर मिटने को आतुर हो उठता है. उस जाबांज की कहानी सुनकर उसकी वीरता पर हर भारतीय को गर्व है. उस जाबांज का नाम है शहीद चंद्रशेखर आजाद. आज उस वीर सिपाही की 114 वी जयंती मनाई जा रही है. आइए जानते हैं आजाद और बनारस का कनेक्शन.

चंद्रशेखर आजाद की 114 वी जयंती आज.

मंदिरों में रहकर बनाते थे आजादी की रणनीति

धर्म और अध्यात्म के शहर काशी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. देश की आजादी में मंदिरों का बहुत ही बड़ा योगदान रहा. इन्हीं मंदिरों में चंद्रशेखर आजाद पुजारी के रूप में रहते थे. साथ ही वह देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे. स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का मुख्य ठिकाना काशी हिंदू विश्वविद्यालय, संस्कृत विश्वविद्यालय के साथ यहां के मठ मंदिर और अखाड़े हुआ करते थे. ऐसे में बहुत से क्रांतिकारी मठ मंदिर, अखाड़ों में अपना जीवन यापन करते थे और यहीं रहकर देश की आजादी के लिए रणनीति बनाते थे.

अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में भी माहिर थे. यही वजह थी अंग्रेजी अवसर उनको पहचान नहीं पाते थे. कहते हैं कि बाल्यावस्था से बनारस में रहने के कारण आजाद की दिनचर्या भी बनारसी थी. यहां के अखाड़ों में चंद्रशेखर रियाज करते थे और शहर के वो पुराने अखाड़े आज भी जीवित हैं.

क्रांतिकारियों की कहानियों का उल्लेख करने वाले लोग कहते हैं कि आजाद गोस्वामी तुलसीदास और लाल कुटिया अखाड़ा में रहकर कभी पुजारी तो कभी पहलवान बनकर काशी में समय बिताया करते थे. चंद्रशेखर यहीं पर अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ आजादी के लिए क्रांतिकारी संगठन को मजबूत बनाने की योजनाएं बनाते थे.

जीवन परिचय

आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के मौजूदा अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में पंडित सीताराम तिवारी के घर हुआ था. आजाद की माता का नाम जगरानी देवी था. काकोरी कांड, अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स की हत्या और दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में बम विस्फोट जैसी घटनाओं में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आजाद प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1921 वीरगति को प्राप्त हुए थे.

बनारस के इन स्थानों पर हैं आजाद की मूर्ति

चंद्रशेखर आजाद और बनारस का संबंध यहां लगी मूर्तियां खुद बयां करती हैं. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के छात्र संघ भवन, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, सेंट्रल जेल और लहुराबीर चौराहे पर आजाद पार्क पर आजाद की प्रतिमा स्थापित है. वहीं शिवपुर स्थित सेंट्रल जेल के अंदर चंद्रशेखर आजाद की आदम कद प्रतिमा और स्मारक का अनावरण स्वयं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 20 मई 2018 को किया था.

बीएचयू के इतिहास के प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया पंडित चंद्रशेखर तिवारी संस्कृत की शिक्षा अध्ययन करने बनारस आए थे. आजाद काशी विश्वनाथ मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर, काल भैरव मंदिर, बटुक भैरव मंदिर, बिर्दोपुर स्थित बैजनाथ मंदिर इत्यादि मंदिरों में रहते थे, फरारी के दिनों में आजाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुराने हॉस्टलों में छुपकर रहते थे.

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