वाराणसी: रामचरितमानस को लेकर इन दिनों विवाद राजनीतिक गलियारे में काफी चर्चा में हैं. समाजवादी पार्टी में चुनावी वक्त के दौरान शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य की तरफ से तुलसीदास व रामचरितमानस पर उठाए गए सवाल में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का समर्थन भी कहीं न कहीं से इसे और मजबूत कर दिया. इसके बाद इस विवाद में संघ प्रमुख मोहन भागवत का आना और सारे विवाद के पीछे जातिगत आधार पर ब्राह्मणों को दोष दे देना, मामले को दूसरी तरफ ले गया.
एक तरफ जहां पिछड़े और दलितों के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाने के चक्कर में नेताओं ने ब्राह्मणों को निशाने पर लिया, तो वहीं संघ प्रमुख के आगे आते ही विपक्ष ने कहीं न कहीं से ब्राह्मणों को साधने की तैयारी भी करनी शुरू कर दी. इसी वजह से अपनी गलती का एहसास कहिए या फिर 2024 से पहले डैमेज कंट्रोल करने की प्लानिंग सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपनी गलती को मान कर रामचरितमानस विवाद पर एक अलग ही स्टैंड ले लिया और पहुंच गए काशी के उस पवित्र स्थान पर जिसे तुलसीदास की कर्मभूमि कहा जाता है.
इस बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर हेमंत मालवीय ने कहा कि 'जिस तरह से संघ प्रमुख ने ब्राह्मणों को लेकर बयान दिया, उसके बाद विपक्ष खासतौर पर समाजवादी पार्टी ने अपनी स्ट्रेटजी को चेंज कर दिया'. उन्होंने एक तरफ जहां दलित और पिछड़ों को साधने के लिए रामचरितमानस विवाद को सही बताकर अखिलेश यादव ने अपने पार्टी के नेता का समर्थन किया, तो बाद में संघ प्रमुख के बयान के बाद उन्होंने ब्राह्मणों को साधने के लिए अपने को सही दिखा कर काशी आने का निर्णय कर लिया.
बनारस में संकट मोचन मंदिर में पहुंचना भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है, क्योंकि संकट मोचन मंदिर तुलसीदास की कर्मभूमि है और जिस तुलसीदास और उनके द्वारा रचित ग्रंथ पर उठाए गए सवाल से लोगों में नाराजगी थी, उसे दूर करने के लिए अखिलेश ने यह बड़ा दांव खेला है. बता दें कि संकट मोचन मंदिर वही स्थान है, जिसे तुलसीदास की कर्मभूमि के नाम से जाना जाता है. यह वर्णित है कि तुलसीदास ने तुलसी घाट और संकट मोचन मंदिर वाले घनघोर जंगल स्थान पर ही रामचरितमानस की रचना की और इसी स्थान पर उन्हें पवन पुत्र हनुमान के दर्शन भी हुए, जो साक्षात यहां संकटमोचन महाराज के रूप में विद्यमान हैं.
यही वजह है कि इस स्थान को तुलसीदास के नाम से जाना जाता है. अखिलेश यादव वाराणसी में जब पहुंचे, तो उन्होंने बनारस की गलियों में घूमने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया. साथ ही बनारस आने के तुरंत बाद वह सीधे संकट मोचन मंदिर पहुंचे, जबकि विश्वनाथ मंदिर का दर्शन उन्होंने अगले दिन किए. काशी आने के तुरंत बाद संकट मोचन मंदिर जाना कहीं न कहीं से कई सवाल खड़े करता है. सवाल इसलिए भी क्योंकि यह स्थान उन्हीं तुलसीदास का है, जिनके रामचरितमानस को लेकर विवाद चल रहा है.
इस बारे में काशी विद्यापीठ समाजशास्त्र विभाग की सीनियर प्रोफेसर डॉ. अमिता सिंह ने कहा कि 'गलती का एहसास इसी को कहते हैं, क्योंकि अखिलेश यादव ने जिस तरह स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ दिया और रामचरितमानस में लिखी 'ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी, यह सब सकल ताड़ना के अधिकारी' चौपाई को उस वक्त लिखी हिंदी के अनुसार गलत बताया और इस पर अडिग रहते हुए लगातार अपने पार्टी के नेता का साथ दिया जाना कहीं न कहीं से अखिलेश यादव को भी परेशान कर रहा है, क्योंकि उनके पिता मुलायम सिंह यादव पर भी राम भक्तों पर गोली चलाने के आरोप लग चुके हैं और उसके बाद समाजवादी पार्टी के साथ हिंदुत्व के मामले में क्या हुआ यह सभी को पता है'.
उन्होंने कहा कि 'शायद यही वजह है कि 2024 के चुनावों से पहले अखिलेश यादव रामचरितमानस पर दिए गए बयान के समर्थन में खड़े होने के बाद परेशान दिखाई दे रहे थे. उनको इस बात की भी चिंता थी कि कहीं उनके साथ भी उनके पिता की तरह ही रामचरितमानस के खिलाफ खड़े होने के बुरे परिणाम सामने ना आने लगे'. यही वजह है कि उनका काशी आना हुआ और संकट मोचन में जाकर उन्होंने दर्शन पूजन किया. संकट मोचन मंदिर के महंत से मुलाकात की और तो और वहां प्रसाद भी ग्रहण किया. यह सब साफ तौर पर यह इशारा करता है कि अखिलेश अपनी गलती को सुधारने के लिए बनारस पहुंचे और संकट मोचन मंदिर में दर्शन पूजन किया.
डॉ. अमिता सिंह का कहना है कि रामचरितमानस पूरे भारतवर्ष और विश्व में रहने वाले सनातन धर्म के लोगों के आस्था का प्रतीक है. सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के लिए रामचरितमानस मार्गदर्शक के रूप में काम करती है और उस पर दिया गया बयान कहीं न कहीं से अखिलेश यादव को 2024 में बड़ी परेशानी में डाल सकता है. यही वजह है कि इस गलती पर वह पर्दा डालकर उसे सुधारने के लिए तुलसीदास की शरण में पहुंचे. फिलहाल यह प्लान काम करेगा या नहीं यह तो नहीं पता, लेकिन निश्चित तौर पर उनका यह काशी दौरा रामचरितमानस के विवाद पर हुए नुकसान की भरपाई से जोड़कर देखा जा सकता है.