वाराणसी: धर्म का कार्य करने के लिए किसी सिंहासन या उच्च पद की आवश्यकता नहीं होती, अपितु दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है. बहुत से लोग बड़े पदों पर नहीं हैं. लेकिन, फिर भी धर्म कार्य कर रहे हैं. इसलिए हम यह समझते हैं कि धर्म कार्यों में सिद्धि के लिए किसी संसाधनों की नहीं, अपितु संकल्प की आवश्यकता होती है. यह विचार मंगलवार को ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने श्रीविद्यामठ केदारघाट वाराणसी में आयोजित विद्वत् सपर्या सभा के अवसर पर व्यक्त किए.
उन्होंने काशी नगरी एवं विद्वज्जनों की प्रशंसा करते हुए कहा कि काशी में एक ज्योति है, इसी कारण लोग काशी को सर्वप्रकाशिका कहते हैं. यहां वह ज्योति ज्ञान की ही ज्योति है, जिसका प्रचार-प्रसार यहा के विद्वानों द्वारा हो रहा है. इसलिए यह नगरी सर्वप्रकाशिका के रूप में विख्यात है. उन्होंने कहा कि हम लोग ब्रह्मलीन शंकराचार्य जी महाराज के आदेशानुसार यहां पर बैठे हैं. उनका जो भी आदेश होता है, उसका पालन ही हमारे जीवन का उद्देश्य है. पूर्व में भी श्रीविद्यामठ में शास्त्रार्थ सभा आयोजित होती रही है और आगे भी होती ही रहेगी.
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सभा में प्रो. राजाराम त्रिपाठी द्वारा रचित महेश्वर सूत्र महिमा और दुर्गायन ग्रंथ का विमोचन शंकराचार्य महाराज ने किया. इस बीच काशी विद्वत् परिषद के पूर्व अध्यक्ष स्व. आचार्य पं रामयत्न शुक्ल जी का स्मरण भी किया गया. कार्यक्रम में प्रमुख रूप से प्रो. कमलेश झा, प्रो. राजनाथ त्रिपाठी, प्रो. राजाराम शुक्ला, सदा शिव कुमार द्विवेदी, उमेश चन्द्र दुबे, जय प्रकाश त्रिपाठी, धर्मदत्त चतुर्वेदी, कमलाकांत त्रिपाठी, शत्रुघन त्रिपाठी, गोप बंधु मिश्रा आदि विद्वानों ने अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया.