वाराणसी: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे और बड़ी-बड़ी बातें. हर दिन बेटियों को सम्मान देने की बात हो या किसी विशेष दिन पर उनके अधिकारों को लेकर लड़ने का वादा, यह सारी बातें बेमतलब समझ में आती है. क्योंकि आज भी उत्तर प्रदेश के शहरों में बेटियों की कोख में ही हत्या कर दी जाती हैं. पुलिस, स्वास्थ्य महकमा हो या फिर सरकार, सभी इस पर मौन साधे हुए हैं. आंकड़े गवाह हैं कि किस तरीके से बेटियों की मौत का प्रतिशत बढ़ रहा है. वाराणसी में किस तरह बेटियों का संरक्षण हो रहा है. लिंग परीक्षण, गर्भपात जैसे जघन्य अपराध पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है उसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की हकीकत : आज भी कोख में मरने को मजबूर हैं बेटियां
घर-परिवार से लेकर समाज के माहौल तक, आज भी बेटियों के जन्म को लेकर न तो सकारात्मकता दिखती है और न ही दिली स्वीकार्यता. कभी भ्रूण हत्या तो कभी बेटियों को कूड़े के ढेर में छोड़ देने की असंवेदनशील और अमानवीय घटनाएं सामने आती रहती हैं. वाराणसी में गर्भपात पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है इसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.
वाराणसी: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे और बड़ी-बड़ी बातें. हर दिन बेटियों को सम्मान देने की बात हो या किसी विशेष दिन पर उनके अधिकारों को लेकर लड़ने का वादा, यह सारी बातें बेमतलब समझ में आती है. क्योंकि आज भी उत्तर प्रदेश के शहरों में बेटियों की कोख में ही हत्या कर दी जाती हैं. पुलिस, स्वास्थ्य महकमा हो या फिर सरकार, सभी इस पर मौन साधे हुए हैं. आंकड़े गवाह हैं कि किस तरीके से बेटियों की मौत का प्रतिशत बढ़ रहा है. वाराणसी में किस तरह बेटियों का संरक्षण हो रहा है. लिंग परीक्षण, गर्भपात जैसे जघन्य अपराध पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है उसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.