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बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की हकीकत : आज भी कोख में मरने को मजबूर हैं बेटियां

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Published : Apr 15, 2021, 4:43 AM IST

Updated : Apr 15, 2021, 11:34 AM IST

घर-परिवार से लेकर समाज के माहौल तक, आज भी बेटियों के जन्म को लेकर न तो सकारात्मकता दिखती है और न ही दिली स्वीकार्यता. कभी भ्रूण हत्या तो कभी बेटियों को कूड़े के ढेर में छोड़ देने की असंवेदनशील और अमानवीय घटनाएं सामने आती रहती हैं. वाराणसी में गर्भपात पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है इसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

वाराणसी: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे और बड़ी-बड़ी बातें. हर दिन बेटियों को सम्मान देने की बात हो या किसी विशेष दिन पर उनके अधिकारों को लेकर लड़ने का वादा, यह सारी बातें बेमतलब समझ में आती है. क्योंकि आज भी उत्तर प्रदेश के शहरों में बेटियों की कोख में ही हत्या कर दी जाती हैं. पुलिस, स्वास्थ्य महकमा हो या फिर सरकार, सभी इस पर मौन साधे हुए हैं. आंकड़े गवाह हैं कि किस तरीके से बेटियों की मौत का प्रतिशत बढ़ रहा है. वाराणसी में किस तरह बेटियों का संरक्षण हो रहा है. लिंग परीक्षण, गर्भपात जैसे जघन्य अपराध पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है उसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने दी जानकारी
ईटीवी भारत की टीम ने बेटियों की हक के लिए लड़ने वाली संस्था के संचालक डॉक्टर संतोष ओझा से बातचीत की. उन्होंने बताया कि बनारस में 242 अल्ट्रासाउंड सेंटर का संचालन होता है, जिनमें से 87 अल्ट्रासाउंड सेंटर बंद हो गए हैं. उन्होंने बताया कि बनारस में हकीकत के आंकड़े कुछ और ही हैं और सरकारी कागजें कुछ और कहती हैं. कहने को एक हजार बेटों पर 913 बेटियां हैं, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर महज 813, 814 बेटियां ही बची हुई हैं और इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. सरकार भले ही बेटीयों के संरक्षण की बात कर रही हैं, लेकिन इनके मातहतों द्वारा बेटियों को सुरक्षित करने के लिए कोई कवायद नहीं की जाती हैं.
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
7 सालों से नहीं हुईं कोई कार्रवाई
उन्होंने बताया कि सुनकर यह हैरानी होगी कि बीते 7 सालों में बनारस में एक भी अल्ट्रासाउंड सेंटर या अस्पताल में लिंग परीक्षण और अन्य गर्भपात को लेकर के किसी भी प्रकार की कोई छापेमारी नहीं की गई है, न ही कोई कार्रवाई की गई है. इसका सीधा तात्पर्य यही है कि यहां का स्वास्थ्य विभाग मानता है कि बनारस में ऐसी किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, जबकि हकीकत में हर दूसरे तीसरे दिन बेटी दम तोड़ती है. अब तो जमाना और आगे बढ़ गया है पोर्टेबल मशीन जननी के घर जाती है और वहीं पर उनका लिंग परीक्षण करती है. इसके बाद उसके आगे की प्लानिंग तय की जाती है कि किस अस्पताल में जाना है और गर्भपात कराना है. आज भी बड़े पैमाने पर बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है.
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर
समय-समय पर टीमें करती हैं जांच
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने बताया कि वाराणसी में एसडीएम के सानिध्य में अलग-अलग टीमें गठित की गई हैं, जो इस प्रकार के मामलों की जांच करती हैं. कोई शिकायत आती है तो उस पर त्वरित कार्रवाई की जाती है. यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाती है. इसको लेकर टीमों के द्वारा समय-समय पर वाराणसी के अल्ट्रासाउंड सेंटर और अस्पतालों का निरीक्षण भी किया जाता है.
सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

वाराणसी: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे और बड़ी-बड़ी बातें. हर दिन बेटियों को सम्मान देने की बात हो या किसी विशेष दिन पर उनके अधिकारों को लेकर लड़ने का वादा, यह सारी बातें बेमतलब समझ में आती है. क्योंकि आज भी उत्तर प्रदेश के शहरों में बेटियों की कोख में ही हत्या कर दी जाती हैं. पुलिस, स्वास्थ्य महकमा हो या फिर सरकार, सभी इस पर मौन साधे हुए हैं. आंकड़े गवाह हैं कि किस तरीके से बेटियों की मौत का प्रतिशत बढ़ रहा है. वाराणसी में किस तरह बेटियों का संरक्षण हो रहा है. लिंग परीक्षण, गर्भपात जैसे जघन्य अपराध पर किस प्रकार से नियंत्रण पाया जा रहा है उसको लेकर के ईटीवी भारत की टीम ने धरातलीय वास्तविकता जानने की कोशिश की.

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने दी जानकारी
ईटीवी भारत की टीम ने बेटियों की हक के लिए लड़ने वाली संस्था के संचालक डॉक्टर संतोष ओझा से बातचीत की. उन्होंने बताया कि बनारस में 242 अल्ट्रासाउंड सेंटर का संचालन होता है, जिनमें से 87 अल्ट्रासाउंड सेंटर बंद हो गए हैं. उन्होंने बताया कि बनारस में हकीकत के आंकड़े कुछ और ही हैं और सरकारी कागजें कुछ और कहती हैं. कहने को एक हजार बेटों पर 913 बेटियां हैं, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर महज 813, 814 बेटियां ही बची हुई हैं और इस ओर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. सरकार भले ही बेटीयों के संरक्षण की बात कर रही हैं, लेकिन इनके मातहतों द्वारा बेटियों को सुरक्षित करने के लिए कोई कवायद नहीं की जाती हैं.
सांकेतिक तस्वीर
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7 सालों से नहीं हुईं कोई कार्रवाई
उन्होंने बताया कि सुनकर यह हैरानी होगी कि बीते 7 सालों में बनारस में एक भी अल्ट्रासाउंड सेंटर या अस्पताल में लिंग परीक्षण और अन्य गर्भपात को लेकर के किसी भी प्रकार की कोई छापेमारी नहीं की गई है, न ही कोई कार्रवाई की गई है. इसका सीधा तात्पर्य यही है कि यहां का स्वास्थ्य विभाग मानता है कि बनारस में ऐसी किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, जबकि हकीकत में हर दूसरे तीसरे दिन बेटी दम तोड़ती है. अब तो जमाना और आगे बढ़ गया है पोर्टेबल मशीन जननी के घर जाती है और वहीं पर उनका लिंग परीक्षण करती है. इसके बाद उसके आगे की प्लानिंग तय की जाती है कि किस अस्पताल में जाना है और गर्भपात कराना है. आज भी बड़े पैमाने पर बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है.
सांकेतिक तस्वीर
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समय-समय पर टीमें करती हैं जांच
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वीबी सिंह ने बताया कि वाराणसी में एसडीएम के सानिध्य में अलग-अलग टीमें गठित की गई हैं, जो इस प्रकार के मामलों की जांच करती हैं. कोई शिकायत आती है तो उस पर त्वरित कार्रवाई की जाती है. यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की जाती है. इसको लेकर टीमों के द्वारा समय-समय पर वाराणसी के अल्ट्रासाउंड सेंटर और अस्पतालों का निरीक्षण भी किया जाता है.
सांकेतिक तस्वीर
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Last Updated : Apr 15, 2021, 11:34 AM IST
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