वाराणसी: देवा दी देव महादेव के अति प्रिय महीने सावन की शुरुआत होने के बाद आज पहला सोमवार है. सावन के पहले सोमवार पर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में बोल बम के जयकारे हर तरफ सुनाई दे रहे हैं. काशी का कण-कण शंकर के पूजन और आराधना में लगा हुआ है. सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार पहला मौका है जब विश्वनाथ धाम के भव्य स्वरूप के साथ ही भक्तों को सड़क मार्ग के अलावा गंगा द्वार से भी प्रवेश दिया जा रहा है. दोनों रास्तों से भक्तों की जबरदस्त भीड़ देखने को मिल रही है और लगातार दर्शन-पूजन के लिए भक्त बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंच रहे हैं.
सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार के निर्देश पर भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की गई है. एक तरफ जहां रेड कारपेट बिछाकर भक्तों का स्वागत किया जा रहा है, वहीं जगह-जगह पर शिव भक्त और कांवरियों पर पुष्प वर्षा भी की जा रही है. यहां तक कि मैदागिन और गोदौलिया सेठ मंदिर जाने वाले मार्ग पर नो व्हीकिल जोन होने की वजह से ई-रिक्शा का प्रबंध किया गया है, जो बुजुर्ग और दिव्यांगों को मंदिर तक पहुंचा रहा है.
दरअसल, कोरोना महामारी का संक्रमण कम होने के दो साल बाद सावन के मौके पर धर्म नगरी वाराणसी में भक्तों को बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने का सौभाग्य मिला है. कांवड़ यात्रा भी दो साल बाद शुरू हुई है, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद इंतजार कर रहे कांवड़ियां बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे हैं. द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन के लिए रविवार रात से ही भक्त स्टील की बैरिकेडिंग में रेड कारपेट पर कतारबद्ध हो गए थे. आज भोर की मंगला आरती के बाद बाबा के दरबार के पट भक्तों के झांकी दर्शन के लिए खुले तो विश्वनाथ धाम से लेकर गंगा तट तक का इलाका हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा. यह पहला ऐसा सावन है जब श्रद्धालु ललिता घाट पर गंगा स्नान कर जलाभिषेक के लिए बाबा विश्वनाथ के दरबार में सीधे पहुंच रहे हैं. मंदिर प्रशासन का अनुमान है कि आज बाबा विश्वनाथ के दरबार में 6 लाख से ज्यादा श्रद्धालु हाजिरी लगाएंगे.
महादेव की नगरी काशी में सावन के प्रत्येक सोमवार को उनका अलग-अलग स्वरूप में शृंगार किया जाता है. लिंग पुराण के अनुसार शिव का प्रथम प्राकट्य ज्योतिर्लिंग रूप में हुआ है. सावन के पहले सोमवार को महादेव अपने भक्तों के कल्याणार्थ मानवाकृत रूप में विराजमान होकर दर्शन देंगे. बाबा विश्वनाथ का यह विशिष्ट स्वरूप उनके मंदिर के गर्भगृह में रात 9 बजे के शृंगार दर्शन में भक्तों को उपलब्ध होगा. श्रीकाशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. राम नारायण द्विवेदी के अनुसार सावन के महीने में शिवलिंग का जलाभिषेक कर ऊं नम: शिवाय का जाप करने मात्र से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और भोलेनाथ अपने भक्त का कल्याण करते हैं.
बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन के लिए श्री काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. पुलिस कमिश्नर ए. सतीश गणेश खुद भोर से ही गोदौलिया क्षेत्र में मौजूद हैं. कड़ी निगरानी में रहने वाले विश्वनाथ धाम के बाहर 1200 से ज्यादा पुलिस और पीएसी के जवान तैनात किए गए हैं. दशाश्वमेध घाट से विश्वनाथ धाम तक 250 महिला-पुरुष पुलिसकर्मी सादे कपड़े में तैनात किए गए हैं. किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) के 25 कमांडो तैनात किए गए हैं. गंगा में निगरानी के लिए NDRF की 11वीं बटालियन के जवान, जल पुलिस और पीएसी बाढ़ राहत दल की एक कंपनी तैनात की गई है. विश्वनाथ धाम की ओर आने वाले प्रमुख मार्गों की निगरानी के लिए ड्रोन की मदद ली जा रही है.
मैदागिन से गोदौलिया होते हुए रामापुरा और इसी प्रकार रामापुरा, गोदौलिया से मैदागिन तक संपूर्ण मंदिर मार्ग सावन के प्रत्येक रविवार रात 8 बजे से मंगलवार सुबह 8 बजे तक नो-व्हीकल जोन घोषित किया गया है. इसके तहत मैदागिन से गोदौलिया, रामापुरा तक और रामापुरा से गोदौलिया होकर मैदागिन तक किसी प्रकार के छोटे-बड़े वाहन को नहीं जाने दिया जाएगा. यह मार्ग केवल पैदल यात्रियों के आने-जाने के लिए मुक्त रखा गया है.
काशी अद्भुत नगरी है. इस नगरी की अद्भुत परंपराओं को आज भी जीवित करने का प्रयास लोगों के द्वारा किया जा रहा है. ऐसी ही लगभग 90 साल पुरानी परंपरा आज भी काशी में निभाई गई. यह परंपरा आज के समय में महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि 1932 में देश में पड़े सूखे और अकाल के बाद काशी में इस परंपरा की शुरुआत की गई थी. आज एक बार फिर से उत्तर प्रदेश सूखे की चपेट में आने की आशंका के बीच किसानों के माथे पर बल लाने का काम कर रहा है. इस कारण इस पुरानी परंपरा को निभाते हुए यादव बंधुओं ने आज सावन के पहले सोमवार पर बाबा विश्वनाथ से बारिश कर लोगों को राहत देने की प्रार्थना की है.
प्रतापगढ़ के बेलखनाथ धाम में दर्शन को उमड़े भक्त
प्रतापगढ़ शहर से 18 किलोमीटर दूर सई नदी के किनारे बाबा बेलखरनाथ धाम स्थित है.सावन के पहले सोमवार को बड़ी संख्या में भक्तों ने बाबा का दर्शन और पूजन किया. मान्यता है कि सावन मास में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं भोलेनाथ पूरी करते है. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस धाम का निर्माण राजपूतों ने कराया था. ऐसा दावा भी किया जाता है कि काशी क्षेत्र में 3 शिवलिंगों की उत्पत्ति स्वयं हुई थी. इनमें एक शिवलिंग गाजीपुर जिले के गौतमेश्वर में, दूसरा सोमेश्वर महादेव प्रयागराज में व तीसरा बिल्केश्वर यानी बेलखरनाथ धाम प्रतापगढ़ में स्थापित है. मंदिर के पुजारी ने बताया कि पहले यहां जंगल था. ग्रामीण शिवलिंग पर हथियार की धार रखते थे. एक दिन शिवलिंग से रक्त की धार निकली. इलाके के ओझा को भोले बाबा ने सपने में दर्शन दिए और इसके बाद मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. कहा जाता है कि सुबह मंदिर बनता था और शाम को गिर जाता था. ओझा ने 12 साल कठोर तपस्या की तब जाकर मंदिर का निर्माण पूरा हो सका.
मेरठ के औघड़नाथ मंदिर में भी भक्तों ने सावन के पहले सोमवार पर भोलेबाबा का पूजन-अर्चन किया. मंदिर के पुजारी सारंग त्रिपाठी ने बताया कि सुबह तीन बजे से ही भक्त बाबा के दर्शन को आने लगे. भोर में बाबा की मंगला आरती के बाद दर्शन और पूजन शुरू हुआ.
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