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केरल के राज्यपाल आरिफ खान बोले- जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे, भारत ऋषि-मुनियों का देश

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Published : Nov 13, 2021, 10:41 PM IST

Updated : Nov 14, 2021, 10:59 PM IST

वाराणसी में आयोजित संस्कृति संसद के दूसरे दिन के प्रथम सत्र में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं.

वाराणसी में संस्कृित संसद का आयोजन.
वाराणसी में संस्कृित संसद का आयोजन.

वाराणसीः अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा की ओर से रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित संस्कृति संसद में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर बड़ा बयान दिया है. संस्कृति संसद के दूसरे दिन शनिवार को एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं.

आरिफ मोहम्मद खान, राज्यपाल-केरल.

आरिफ मोहम्मद ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति वह है जिसमें सुदृढ़ करने की प्रक्रिया निरंतर चलती है. यह प्रक्रिया भी सनातन है. भारत की संस्कृति पुरातन है मगर इसमें नई बनाने की क्षमता रखता है, जो मेरी संस्कृति, आपकी संस्कृति और पूरे राष्ट्र की संस्कृति है. इसे दुनिया मानती है. इसी संस्कृति के आधार पर भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है. भारत का यह मत है कि हम किसी को भी बाहर नहीं कर सकते. मानव सेवा ही माधव सेवा होती है. हम सब एक ही आत्मा के बंधन से बंधे हुए है. हमारी संस्कृति में विपरीत भक्ति की भी व्यवस्था है यानी जो निंदा करता है, उसे भी अपने साथ लेकर चलिए. धर्म और अर्धम के उलझे आदमी को शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द और संतों की जरूरत होती है.

आरिफ खान ने आगे कहा कि आदि शंकराचार्यजी ने शांति की स्थापना के लिए भारत के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए, जो चार वेदों के उपदेश से संचालित होते हैं. लेकिन वेद से नहीं बल्कि विचार से एकता सुदृढ़ होगी. विदेशों में बोलने वाले स्वामी विवेकानन्द के विचार सुनकर विश्व के लोगों ने उसे अपनाया, क्योंकि उनके विचार भारतीय संस्कृति से जुड़े थे. ऋषियों ने सिर्फ मानव कल्याण के लिए तपस्या कर यह प्राकृतिक सिद्धांत खोजा. हम अपनी संस्कृति पर गर्व करें अहंकार नहीं. लेकिन जरूरत इसकी भी है कि थोड़ी शर्म करें. गर्व इसलिए कि पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति को अंश विराजमान है. शर्म इसलिए कि हम अपनी संस्कृति को दुनिया में बताने में नाकाम हो रहे हैं. भारत विश्वगुरु था है और रहेगा, ये क्षमता उसे उसकी संस्कृति के माध्यम से मिलती है.

आरिफ खान ने कहा कि काशी में शंकराचार्य ने चाण्डाल का भी पैर छुआ है. विद्या और विनय ये दोनों मनुष्य के लिए सबसे बड़ा ज्ञान है. सभी जीवों में एक ही परमात्मा का निवास होता है. भारत को नई दिशा दिखाने के लिए दुनिया में संस्कृति नस्ल, भाषा, रूप-रंग से बांटी जाती है परंतु ऋषि-मुनियों व संतों ने इन सभी को आधार ना मानकर आत्मा को आधार बनाया है. भारतीय संस्कृति इतनी समावेशी है, जहां रावण के खिलाफ उसके दुष्ट व्यवहार के लिए कार्रवाई होती है. दुनिया ने इस संस्कृति को अपनी सोच के तौर पर नहीं, जरूरत के तौर पर स्वीकार किया.

इसे भी पढ़ें-देश के खिलाफ कार्य करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं को रहने नहीं देंगे : राजनाथ सिंह

एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि आधुनिक लोकतंत्र भले ही पश्चिम की देन है लेकिन भारत में आध्यात्मिक लोकतंत्र हजारों वर्ष पुराना है. इस आध्यात्मिक लोकतंत्र का मूल आधार आत्मा है और यही आत्मत्व सबको एक करती है. उन्होंने कहा कि भारत में उस समय से महिलाओं का सम्मान है, जब पश्चिम में महिलाओं में आत्मा को न मानने की परम्परा थी. उन्होंने कहा कि समभाव भारत की संस्कृति का मूल आधार है. इसे हमें मजबूत करना चाहिए.

वाराणसीः अखिल भारतीय संत समिति और गंगा महासभा की ओर से रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित संस्कृति संसद में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर बड़ा बयान दिया है. संस्कृति संसद के दूसरे दिन शनिवार को एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं.

आरिफ मोहम्मद खान, राज्यपाल-केरल.

आरिफ मोहम्मद ने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति वह है जिसमें सुदृढ़ करने की प्रक्रिया निरंतर चलती है. यह प्रक्रिया भी सनातन है. भारत की संस्कृति पुरातन है मगर इसमें नई बनाने की क्षमता रखता है, जो मेरी संस्कृति, आपकी संस्कृति और पूरे राष्ट्र की संस्कृति है. इसे दुनिया मानती है. इसी संस्कृति के आधार पर भारत पुनः विश्वगुरु बन सकता है. भारत का यह मत है कि हम किसी को भी बाहर नहीं कर सकते. मानव सेवा ही माधव सेवा होती है. हम सब एक ही आत्मा के बंधन से बंधे हुए है. हमारी संस्कृति में विपरीत भक्ति की भी व्यवस्था है यानी जो निंदा करता है, उसे भी अपने साथ लेकर चलिए. धर्म और अर्धम के उलझे आदमी को शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द और संतों की जरूरत होती है.

आरिफ खान ने आगे कहा कि आदि शंकराचार्यजी ने शांति की स्थापना के लिए भारत के चार कोनों में चार मठ स्थापित किए, जो चार वेदों के उपदेश से संचालित होते हैं. लेकिन वेद से नहीं बल्कि विचार से एकता सुदृढ़ होगी. विदेशों में बोलने वाले स्वामी विवेकानन्द के विचार सुनकर विश्व के लोगों ने उसे अपनाया, क्योंकि उनके विचार भारतीय संस्कृति से जुड़े थे. ऋषियों ने सिर्फ मानव कल्याण के लिए तपस्या कर यह प्राकृतिक सिद्धांत खोजा. हम अपनी संस्कृति पर गर्व करें अहंकार नहीं. लेकिन जरूरत इसकी भी है कि थोड़ी शर्म करें. गर्व इसलिए कि पूरी दुनिया में भारत की संस्कृति को अंश विराजमान है. शर्म इसलिए कि हम अपनी संस्कृति को दुनिया में बताने में नाकाम हो रहे हैं. भारत विश्वगुरु था है और रहेगा, ये क्षमता उसे उसकी संस्कृति के माध्यम से मिलती है.

आरिफ खान ने कहा कि काशी में शंकराचार्य ने चाण्डाल का भी पैर छुआ है. विद्या और विनय ये दोनों मनुष्य के लिए सबसे बड़ा ज्ञान है. सभी जीवों में एक ही परमात्मा का निवास होता है. भारत को नई दिशा दिखाने के लिए दुनिया में संस्कृति नस्ल, भाषा, रूप-रंग से बांटी जाती है परंतु ऋषि-मुनियों व संतों ने इन सभी को आधार ना मानकर आत्मा को आधार बनाया है. भारतीय संस्कृति इतनी समावेशी है, जहां रावण के खिलाफ उसके दुष्ट व्यवहार के लिए कार्रवाई होती है. दुनिया ने इस संस्कृति को अपनी सोच के तौर पर नहीं, जरूरत के तौर पर स्वीकार किया.

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एक प्रश्न के उत्तर में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जिन्ना के दादा मुसलमान नहीं थे और बाप भी पक्की उम्र में मुसलमान हुए हैं. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि आधुनिक लोकतंत्र भले ही पश्चिम की देन है लेकिन भारत में आध्यात्मिक लोकतंत्र हजारों वर्ष पुराना है. इस आध्यात्मिक लोकतंत्र का मूल आधार आत्मा है और यही आत्मत्व सबको एक करती है. उन्होंने कहा कि भारत में उस समय से महिलाओं का सम्मान है, जब पश्चिम में महिलाओं में आत्मा को न मानने की परम्परा थी. उन्होंने कहा कि समभाव भारत की संस्कृति का मूल आधार है. इसे हमें मजबूत करना चाहिए.

Last Updated : Nov 14, 2021, 10:59 PM IST
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