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रोडवेज बसों में नहींं रखा जा रहा मानकों का ध्यान, चालकों को सता रहा कोरोना का डर - वाराणसी समाचार

यूपी के वाराणसी में प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने वाले रोडवेज बसों के चालक-परिचालकों को कोरोना संक्रमित होने का डर सता रहा है. उनका कहना है कि बसों की न तो सफाई करवाई जा रही है और न ही उनको सेनिटाइज करवाया जा रहा है. इतना ही नहीं इन कोरोना वॉरियर्स का कहना है कि बसों में भी मानक के मुताबिक लोगों को नहीं बैठाया जाता है. ऐसे में उनके भी कोरोना संक्रमित होने का खतरा है.

चालकों को सता रहा कोरोना का डर
चालकों को सता रहा कोरोना का डर
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Published : Jun 2, 2020, 3:48 AM IST

वाराणसी: कोरोना संकट में सरकार जहां एक ओर प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए तमाम सुविधाएं देने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी और प्रवासी मजदूरों को घरों तक पहुंचाने वाले बस चालकों और परिचालकों को अपनी जान जोखिम में डालकर सरकार के इस वादे को पूरा करना पड़ रहा है. इन चालकों परिचालकों का कहना है कि बसों में ना तो साफ-सफाई हो रही है और ना तो उनका सेनिटाइज तक नहीं कराया जा रहा है. इसके साथ ही बसों के चालकों और परिचालकों को खाने में उनको कुछ सूखी पूरियां और अचार ही दिया जाता है. वह भी विभाग के द्वारा नहीं बल्कि समाजसेवियों के द्वारा उन्हें उपलब्ध कराया जाता है. इस बाबत जब रोडवेज के अधिकारियों से बातचीत की गई तो वह भी टालमटोल करते नजर आए.

चालकों को सता रहा कोरोना का डर.


सरकारी दावों से उलट है जमीनी हकीकत

दरअसल जिले में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक ले जाने के लिए रोडवेज बसों का इंतजाम किया गया है. ऐसे में इन बसों के चालक-परिचालकों की सुविधाओं को लेकर सरकार द्वारा तमाम दावे किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत इससे उलट है.

रोडवेज बस चालकों ने बताई हकीकत

वाराणसी के कैंट रेलवे जंक्शन पर ईटीवी भारत ने रोडवेज बसों के चालक और परिचालकों से बातचीत की. बातचीत में उन्होंने बताया कि बिंदपुर सीमा की रोडवेज बसों को सेनिटाइज तक नहीं किया जाता है, न ही साफ-सफाई की जाती है. वहीं अनुबंधित और प्राइवेट बस चलाने वाले चालक और परिचालकों की स्थिति तो और ज्यादा ही खराब है.

इन लोगों ने बताया कि उन्हें हर बार यह धमकी दी जाती है कि यदि वह नियम के अनुसार काम नहीं करेंगे तो उनकी संविदा समाप्त कर दी जाएगी. उन्होंने बताया कि हम सुबह से यहां आते हैं और हमारा नंबर आते-आते शाम हो जाती है, तब तक यहां न हमारे खाने की कोई व्यवस्था की जाती है और न ही रहने की.

संविदाकर्मियों की हालत और भी खराब

इतना ही नहीं इन संविदाकर्मियों ने यह भी बताया कि यदि हमारा नंबर आ गया और हम सवारी ले गए तब तो हमें उस दिन की तनख्वाह मिलती है अन्यथा मायूसी के साथ ही घर वापस लौटना पड़ता है. यदि हम किसी अधिकारी से शिकायत करने जाते हैं तो हमारी संविदा समाप्त कर देने की धमकी दी जाती है.
नहीं रखा जा रहा मानकों का ध्यान
बातचीत में रोडवेज बसों के चालकों ने बताया कि मानक के अनुसार छोटी बसों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ 17 से 18 यात्री और बड़ी बसों में 30 यात्रियों को बैठने के निर्देश हैं. लेकिन यहां पर छोटी बसों में 30 यात्री और बड़ी बसों में 70 से कम यात्रियों को नहीं बैठाया जाता. जब अंदर बैठने की सीट नहीं होती तो बाहर से आए यात्री हमारे साथ बैठ जाते हैं. जिससे हमें भी डर लगता है.
रोडवेज चालकों और परिचालकों को सता रहा कोरोना का डर
यहां बाहर से आने वाले यात्री, प्रवासी मजदूरों की सिर्फ थर्मल स्कैनिंग ही कराई जाती है, जिससे यह पता नहीं चलता कि कौन संक्रमित है और कौन संक्रमित नहीं है. ऐसे में चालकों-परिचालकों के मन में डर का होना लाजमी है. उनको प्रशासन द्वारा सुरक्षा प्रदान न करना रोडवेज विभाग के साथ-साथ सरकार के तमाम दावों को सवालों के घेरे में खड़ा करता है.

वाराणसी: कोरोना संकट में सरकार जहां एक ओर प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए तमाम सुविधाएं देने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी और प्रवासी मजदूरों को घरों तक पहुंचाने वाले बस चालकों और परिचालकों को अपनी जान जोखिम में डालकर सरकार के इस वादे को पूरा करना पड़ रहा है. इन चालकों परिचालकों का कहना है कि बसों में ना तो साफ-सफाई हो रही है और ना तो उनका सेनिटाइज तक नहीं कराया जा रहा है. इसके साथ ही बसों के चालकों और परिचालकों को खाने में उनको कुछ सूखी पूरियां और अचार ही दिया जाता है. वह भी विभाग के द्वारा नहीं बल्कि समाजसेवियों के द्वारा उन्हें उपलब्ध कराया जाता है. इस बाबत जब रोडवेज के अधिकारियों से बातचीत की गई तो वह भी टालमटोल करते नजर आए.

चालकों को सता रहा कोरोना का डर.


सरकारी दावों से उलट है जमीनी हकीकत

दरअसल जिले में श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से आने वाले प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक ले जाने के लिए रोडवेज बसों का इंतजाम किया गया है. ऐसे में इन बसों के चालक-परिचालकों की सुविधाओं को लेकर सरकार द्वारा तमाम दावे किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत इससे उलट है.

रोडवेज बस चालकों ने बताई हकीकत

वाराणसी के कैंट रेलवे जंक्शन पर ईटीवी भारत ने रोडवेज बसों के चालक और परिचालकों से बातचीत की. बातचीत में उन्होंने बताया कि बिंदपुर सीमा की रोडवेज बसों को सेनिटाइज तक नहीं किया जाता है, न ही साफ-सफाई की जाती है. वहीं अनुबंधित और प्राइवेट बस चलाने वाले चालक और परिचालकों की स्थिति तो और ज्यादा ही खराब है.

इन लोगों ने बताया कि उन्हें हर बार यह धमकी दी जाती है कि यदि वह नियम के अनुसार काम नहीं करेंगे तो उनकी संविदा समाप्त कर दी जाएगी. उन्होंने बताया कि हम सुबह से यहां आते हैं और हमारा नंबर आते-आते शाम हो जाती है, तब तक यहां न हमारे खाने की कोई व्यवस्था की जाती है और न ही रहने की.

संविदाकर्मियों की हालत और भी खराब

इतना ही नहीं इन संविदाकर्मियों ने यह भी बताया कि यदि हमारा नंबर आ गया और हम सवारी ले गए तब तो हमें उस दिन की तनख्वाह मिलती है अन्यथा मायूसी के साथ ही घर वापस लौटना पड़ता है. यदि हम किसी अधिकारी से शिकायत करने जाते हैं तो हमारी संविदा समाप्त कर देने की धमकी दी जाती है.
नहीं रखा जा रहा मानकों का ध्यान
बातचीत में रोडवेज बसों के चालकों ने बताया कि मानक के अनुसार छोटी बसों में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ 17 से 18 यात्री और बड़ी बसों में 30 यात्रियों को बैठने के निर्देश हैं. लेकिन यहां पर छोटी बसों में 30 यात्री और बड़ी बसों में 70 से कम यात्रियों को नहीं बैठाया जाता. जब अंदर बैठने की सीट नहीं होती तो बाहर से आए यात्री हमारे साथ बैठ जाते हैं. जिससे हमें भी डर लगता है.
रोडवेज चालकों और परिचालकों को सता रहा कोरोना का डर
यहां बाहर से आने वाले यात्री, प्रवासी मजदूरों की सिर्फ थर्मल स्कैनिंग ही कराई जाती है, जिससे यह पता नहीं चलता कि कौन संक्रमित है और कौन संक्रमित नहीं है. ऐसे में चालकों-परिचालकों के मन में डर का होना लाजमी है. उनको प्रशासन द्वारा सुरक्षा प्रदान न करना रोडवेज विभाग के साथ-साथ सरकार के तमाम दावों को सवालों के घेरे में खड़ा करता है.

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