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वाराणसी: जर्जर भवन में चल रहा राहत शिविर कार्य, शरणार्थियों को मिल रहा बासी खाना

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा और वरुणा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. बढ़ते जलस्तर को देखते हुए प्रशासन ने किनारे बसे गांवों के लोगों के लिए राहत शिविर लगवाया. वहीं लोगों को शिविर में ढंग का खाना नहीं मिल पा रहा.

जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर.
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Published : Sep 20, 2019, 5:14 PM IST

वाराणसी: इन दिनों जिले में गंगा और वरुणा अपने असल स्तर से काफी ऊपर है. गंगा खतरे के निशान से 35 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है तो वहीं सहायक नदी वरुणा ने भी तबाही मचा रखी है. वरुणा पार इलाके के 24 से ज्यादा इलाके बाढ़ से प्रभावित हैं. यहां रहने वाले गरीब तबके के लोग प्रशासन की तरफ से बनाए गए बाढ़ राहत शिविरों में शरण लेकर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन इन राहत शिविरों की सच्चाई क्या है, यह जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की..

जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर.

प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं चाक-चौबंद होने के बाद भी यहां तैनात अधिकारियों की लापरवाही के चलते शिविर में रुके लोगों के लिए बीमार होने का खतरा भी बढ़ रहा है.

जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर
वरुणा इलाके में बाढ़ का असर सरैया और इससे सटे इलाकों में सबसे ज्यादा है. हजारों की संख्या में घर पानी में हैं और लाखों लोग बेघर हो गए हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर के राहत शिविरों में 70 से 80 लोग एक बार में रोके जा रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि सरैया स्थित प्राथमिक विद्यालय में जो राहत शिविर बनाया गया है वह जर्जर भवन में संचालित हो रहा है.

जर्जर भवन जिसे नगर निगम ने आठ साल पहले खतरनाक घोषित कर दीवारों पर भवन जर्जर है लिखवा दिया था. उसी भवन के नीचे बाढ़ पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया है. जो कभी भी बड़े खतरे का सबब बन सकता है क्योंकि जिले में पिछले चार दिनों से बारिश हो रही है. शुक्रवार को धूप निकलने के बाद इस तरह के जर्जर भवन और भी बड़ा खतरा बन सकते हैं, इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं है.

परोसा जा रहा बासी खाना
यहां पर हालात और भी ज्यादा खराब है क्योंकि उमस और गर्मी की वजह से रखा हुआ खाना खाने से बीमारी का खतरा भी बना हुआ है. डायरिया होने के डर से प्रशासन रखा खाना न खाने की हिदायत भी देता, लेकिन यहां पर कल रात का बना खाना सुबह लोगों को परोसा जा रहा था. लोगों का कहना था कि खाना समय से न आने की वजह से लोग रात का खाना खाने को मजबूर है.

वाराणसी: इन दिनों जिले में गंगा और वरुणा अपने असल स्तर से काफी ऊपर है. गंगा खतरे के निशान से 35 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है तो वहीं सहायक नदी वरुणा ने भी तबाही मचा रखी है. वरुणा पार इलाके के 24 से ज्यादा इलाके बाढ़ से प्रभावित हैं. यहां रहने वाले गरीब तबके के लोग प्रशासन की तरफ से बनाए गए बाढ़ राहत शिविरों में शरण लेकर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन इन राहत शिविरों की सच्चाई क्या है, यह जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की..

जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर.

प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं चाक-चौबंद होने के बाद भी यहां तैनात अधिकारियों की लापरवाही के चलते शिविर में रुके लोगों के लिए बीमार होने का खतरा भी बढ़ रहा है.

जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर
वरुणा इलाके में बाढ़ का असर सरैया और इससे सटे इलाकों में सबसे ज्यादा है. हजारों की संख्या में घर पानी में हैं और लाखों लोग बेघर हो गए हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर के राहत शिविरों में 70 से 80 लोग एक बार में रोके जा रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि सरैया स्थित प्राथमिक विद्यालय में जो राहत शिविर बनाया गया है वह जर्जर भवन में संचालित हो रहा है.

जर्जर भवन जिसे नगर निगम ने आठ साल पहले खतरनाक घोषित कर दीवारों पर भवन जर्जर है लिखवा दिया था. उसी भवन के नीचे बाढ़ पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया है. जो कभी भी बड़े खतरे का सबब बन सकता है क्योंकि जिले में पिछले चार दिनों से बारिश हो रही है. शुक्रवार को धूप निकलने के बाद इस तरह के जर्जर भवन और भी बड़ा खतरा बन सकते हैं, इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं है.

परोसा जा रहा बासी खाना
यहां पर हालात और भी ज्यादा खराब है क्योंकि उमस और गर्मी की वजह से रखा हुआ खाना खाने से बीमारी का खतरा भी बना हुआ है. डायरिया होने के डर से प्रशासन रखा खाना न खाने की हिदायत भी देता, लेकिन यहां पर कल रात का बना खाना सुबह लोगों को परोसा जा रहा था. लोगों का कहना था कि खाना समय से न आने की वजह से लोग रात का खाना खाने को मजबूर है.

Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: इन दिनों वाराणसी में गंगा और वरुण आपने असल स्तर से काफी ऊपर है गंगा खतरे के निशान को पार कर लगभग खतरे के निशान से 35 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है तो इसके सहायक नदी वरुणा ने भी तबाही मचा रखी है. वरुणा पार इलाके के दो दर्जन से ज्यादा इलाके बाढ़ से प्रभावित हैं और यहां रहने वाले गरीब तबके के लोग प्रशासन की तरफ से बनाए गए बाढ़ राहत शिविरों में शरण लेकर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं लेकिन इन राहत शिविरों की सच्चाई क्या है, यह जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में ईटीवी भारत आपको बताएगा कि राहत शिविरों में किस तरह से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं लोग और प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं चाक-चौबंद होने के बाद भी यहां तैनात अधिकारियों की लापरवाही की वजह से शिविरों में रुके लोगों के लिए बीमार होने का खतरा भी बढ़ रहा है.


Body:वीओ-01 वरुणा इलाके में बाढ़ का असर सरैया और इससे सटे इलाकों में सबसे ज्यादा है हजारों की संख्या में घर पानी में हैं और लाखों लोग बेघर हो गए हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर गिने चुने राहत शिविरों में 70 से 80 लोग एक बार में रोके जा रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है. सरैया स्थित प्राथमिक विद्यालय में जो राहत शिविर बनाया गया है. वह विद्यालय में मौजूद जर्जर भवन में ही संचालित हो रहा है. जर्जर भवन जिसे नगर निगम ने 8 साल पहले खतरनाक घोषित कर इसकी दीवारों पर भवन जर्जर है लिखवा दिया था. उसी भवन के नीचे बाढ़ पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया है, जो कभी भी बड़े खतरे का सबब बन सकता है क्योंकि लगातार वाराणसी में 4 दिनों से बारिश जारी है और अब आज धूप निकलने के बाद इस तरह के जर्जर भवन और भी बड़ा खतरा बन सकते हैं इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं है.

बाईट- डॉक्टर, बाढ़ राहत शिविर में तैनात
बाईट- हाजी औकास अंसारी, क्षेत्रीय पार्षद


Conclusion:वीओ-02 बात यहीं पर खत्म नहीं होती इसके बाद भी यहां पर हालात और भी ज्यादा खराब है क्योंकि उमस और गर्मी की वजह से रखा हुआ खाना खाने से बीमारी का खतरा भी बना हुआ है. डायरिया होने के डर से प्रशासन रखा खाना ना खाने की हिदायत भी देता लेकिन यहां पर कल रात का बना चावल और दाल आज सुबह लोगों को परोसा जा रहा था, लोगों का कहना था कि खाना समय से ना आने की वजह से लोग रात का खाना खाने को मजबूर है हालांकि जब हमने लेखपाल से बात की तो उनका कहना था कि वह खाना पकाने के रखा था और इसे परोसा नहीं गया ना ही किसी ने खाया, जबकि ईटीवी भारत के कैमरे में साफ कैद है कि खाना परोसा भी गया और लोग खा पी रहे थे फिलहाल राहत कैंपों में इस तरह की लापरवाही निश्चित तौर पर खतरनाक साबित हो सकती है और इस और ध्यान देने की जरूरत है ताकि सुरक्षा की भावना से यहां पर शरण लिए लोग असुरक्षित महसूस ना करें.

बाईट- अहमद हुसैन, बाढ़ पीड़ित
बाईट- शिवमंगल मौर्या, लेखपाल

गोपाल मिश्र

9839809074
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