वाराणसी: इन दिनों जिले में गंगा और वरुणा अपने असल स्तर से काफी ऊपर है. गंगा खतरे के निशान से 35 सेंटीमीटर ऊपर बह रही है तो वहीं सहायक नदी वरुणा ने भी तबाही मचा रखी है. वरुणा पार इलाके के 24 से ज्यादा इलाके बाढ़ से प्रभावित हैं. यहां रहने वाले गरीब तबके के लोग प्रशासन की तरफ से बनाए गए बाढ़ राहत शिविरों में शरण लेकर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन इन राहत शिविरों की सच्चाई क्या है, यह जानने की कोशिश ईटीवी भारत ने की..
प्रशासनिक स्तर पर व्यवस्थाएं चाक-चौबंद होने के बाद भी यहां तैनात अधिकारियों की लापरवाही के चलते शिविर में रुके लोगों के लिए बीमार होने का खतरा भी बढ़ रहा है.
जर्जर भवन में संचालित हो रहे राहत शिविर
वरुणा इलाके में बाढ़ का असर सरैया और इससे सटे इलाकों में सबसे ज्यादा है. हजारों की संख्या में घर पानी में हैं और लाखों लोग बेघर हो गए हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर के राहत शिविरों में 70 से 80 लोग एक बार में रोके जा रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि सरैया स्थित प्राथमिक विद्यालय में जो राहत शिविर बनाया गया है वह जर्जर भवन में संचालित हो रहा है.
जर्जर भवन जिसे नगर निगम ने आठ साल पहले खतरनाक घोषित कर दीवारों पर भवन जर्जर है लिखवा दिया था. उसी भवन के नीचे बाढ़ पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया है. जो कभी भी बड़े खतरे का सबब बन सकता है क्योंकि जिले में पिछले चार दिनों से बारिश हो रही है. शुक्रवार को धूप निकलने के बाद इस तरह के जर्जर भवन और भी बड़ा खतरा बन सकते हैं, इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं है.
परोसा जा रहा बासी खाना
यहां पर हालात और भी ज्यादा खराब है क्योंकि उमस और गर्मी की वजह से रखा हुआ खाना खाने से बीमारी का खतरा भी बना हुआ है. डायरिया होने के डर से प्रशासन रखा खाना न खाने की हिदायत भी देता, लेकिन यहां पर कल रात का बना खाना सुबह लोगों को परोसा जा रहा था. लोगों का कहना था कि खाना समय से न आने की वजह से लोग रात का खाना खाने को मजबूर है.