वाराणसी: होली से 5 दिन पहले काशी में यह पर्व मनाया जाता है, जो न सिर्फ परंपरा का निर्वहन है बल्कि बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के मधुर संबंधों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है. इस पर्व का नाम है रंगभरी एकादशी. रंगभरी एकादशी का यह पर्व काशी में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. मथुरा की होली जहां एक तरफ कृष्ण, राधा और गोपियों के लिए जानी जाती है तो काशी की रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाली होली को बाबा भोलेनाथ माता गौरा के गौने के रूप में जाना जाता है.
यह है मान्याता
काशी में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से मानी जाती है. ऐसी परंपरा है कि काशी में 40 दिनों तक चलने वाली होली के हुड़दंग की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है और इस दिन ही बाबा भोलेनाथ के विवाह का कार्यक्रम शुरू होता है. बसंत पंचमी को तिलक के बाद महाशिवरात्रि पर बाबा भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी के संग सात फेरे लेते हैं. माता गौरा शादी के बाद अपने मायके में परंपराओं का निर्वहन करते हुए आती है और फिर भोलेनाथ रंगभरी एकादशी को कैलाश यानी बाबा विश्वनाथ मंदिर से निकलकर महंत आवास पहुंचते हैं, जो माता गौरा का मायका माना जाता है.
यहां से भगवान शिव माता पार्वती और गोद में भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा रजत प्रतिमा को पालकी में रखा जाता है और भक्त इस पालकी को कंधे लेकर निकलते हैं. इस दौरान भोले के भक्त आराध्य को अबीर-गुलाल चढ़ाकर होली की शुरुआत करते हैं.
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रजत सिंहासन पर विराजमान होंगे शिव
इस बार की रंगभरी एकादशी कुछ अलग भी होगी क्योंकि विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान महंत आवास भी विस्तारीकरण की जद में आ गया. अब गोदौलिया इलाके का एक गेस्ट हाउस महंत आवास के रूप में जाना जाता है, यहीं से इस बार महादेव, माता पार्वती और भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा निकलेगी. भक्त होली खेलते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचेंगे. जहां पर बाबा विश्वनाथ के गर्भ गृह में उनके मुख्य शिवलिंग के ऊपर उस रजत सिंहासन पर विराजमान होगी.
बाबा की सपरिवार रजत प्रतिमा और महाआरती के बाद भक्त होली खेलकर अपने इस महापर्व की शुरुआत करेंगे. इस उत्सव को महंत परिवार 350 सालों से भी ज्यादा वक्त से करते आ रहे हैं और इस बार भी इसे धूमधाम से करने की तैयारी है.
रंगभरी एकादशी के बाद सर चढ़ बोलेगा होली का त्योहार
महंत परिवार के सदस्य हिमांशु शंकर त्रिपाठी बताते हैं कि, रंगभरी एकादशी कोई कार्यक्रम नहीं बल्कि एक उत्सव है जो काशी का हर व्यक्ति मनाना चाहता है. इस दिन से काशी में पूरी तरह से होली की खुमारी छा जाती है और अपने आराध्य को गुलाल चढ़ाकर लोग इसकी शुरुआत करते हैं. इस बार होली पर कई कुंटल फूलों से बना गुलाल वृंदावन और मथुरा से मंगवाया गया. सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ इस पूरे आयोजन की शुरुआत होगी और महाआरती कर भक्त दर्शन का लाभ ले सकेंगे.