वाराणसी : धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी परंपराओं का भी शहर है. यही वजह है कि यहां पर लगभग 400 वर्ष से भी पुरानी रामलीला का आयोजन आज भी किया जाता है. प्रसिद्ध गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा ने परंपरा को कायम रखते हुए मुकुट पूजा से लीला का शुभारंभ कर दिया. गोस्वामी तुलसीदास रामलीला समिति के सभापति व संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्र ने रामलीला के पात्रों का मुकुट पूजा कर औपचारिक शुरुआत कर दी है. रामलीला 11 अक्टूबर से 21 अक्टूबर तक चलेगी.
आम लोगों के लिए नहीं होगी यह रामलीला
वैश्विक महामारी को देखते हुए अपने टि्वटर हैंडल से प्रोफेसर मिस्र ने जानकारी दी थी कि इस बार रामलीला आम दर्शनार्थियों के लिए नहीं होगी. महंत संकटमोचन विशंभरनाथ मिश्र ने अपने ट्विटर हैंडल से मुकुट पूजन के साथ ही यह भी लिखा कि अखाड़ा श्री गोस्वामी तुलसीदास की रामलीला का शुभारंभ आज हुआ. अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास की लीला को हम प्रार्थना मानते हैं. भगवान श्री राम के जीवन को उसके माध्यम से देखने का अवसर भी मिलता है. हमारे पर्व और हमारी परंपरा ही हमारी थाती है. इसे बचाने और संरक्षित करना ही सही मायने में काशी वासी होने की पहचान है. यदि यह नहीं बचा, तो बनारस और बनारसीपन को बचाना मुश्किल हो जाएगा.
तुलसीदास ने इसी घाट पर की थी रामचरित मानस की रचना
प्रोफेसर मिश्र ने बताया कि रामलीला का प्रारंभ श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की तपस्थली तुलसी घाट से होगी. यहीं पर तुलसीदास ने रामचरितमानस की पंक्तियों की रचना की थी. आज भी घाट पर हनुमान जी का मंदिर है. जहां पर तुलसीदास जी पूजा किया करते थे. उनकी खड़ाऊ आज भी सुरक्षित और संरक्षित रखा गया है. बनारस की तुलसी घाट पर ही कृष्ण लीला का आयोजन किया जाता है, जिसमें से नाग नथैया बनारस के लक्खा मेला में शुमार है.