वाराणसी: नौ दिनों तक लगातार माता रानी की पूजा करने के बाद अब वह पल भी नजदीक आ गया है, जब माता को विदा करना होगा. इसे लेकर भक्तों में मायूसी है. इन नौ दिनों के अनुष्ठान को किस तरीके से पूरा करें, कैसे नवमी पर मां की विशेष आराधना करें और मां का अनुष्ठान किस तरह से पूर्ण करें इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने जानकारी दी.
ऐसे करें मां की पूजा
पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि माता का नौ दिन तक पूजन पाठ भक्त बड़े ही विधिवत और विधि विधान से करते हैं. आठ दिनों के पूजा पाठ के बाद नवमी विशेष महत्व रखती है. क्योंकि यह माता का अति प्रिय दिन है. इसे संधि पूजन के नाम से भी जाना जाता है. संधि पूजन यानि माता का अनुष्ठान पूर्ण होता है और पूर्णाहुति कर भक्त माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
इसके लिए सबसे पहले जरूरी होता है माता का विधिवत पूजन करना, जिसमें माता को पंचामृत स्नान कराने के बाद लाल चुनरी या पीले वस्त्र मां को चढ़ाए जाने चाहिए. इसके बाद माता रानी को लाल अड़हुल की माला अर्पित करनी चाहिए. क्योंकि माता रानी को यह फूल अत्यधिक पसंद है. पुष्प चढ़ाए जाने के बाद माता के आगे आज के दिन खीर, पूड़ी, हलवा, काला चना और विभिन्न तरह के पकवान तैयार कर भोग के लिए रखनी चाहिए. माता की विधिवत पूजन करने के बाद कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए.
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नवमी के दिन विशेष रूप से करें कन्या पूजन
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि कन्या पूजन वैसे तो नवरात्रि के नौ दिनों तक हर रोज होना चाहिए. जो लोग नौ दिनों में इसे रोज नहीं करते वह नवमी के दिन विशेष रूप से नौ कन्याओं का पूजन जरूर करें. कन्याओं को अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार श्रद्धा भाव से जो कुछ देना चाहें वह दें और उन्हें भोजन करवाने के बाद ब्राह्मण भोजन करवा कर खुद माता की महाआरती करें और फिर खुद प्रसाद ग्रहण करें. कुछ लोग पूर्णाहुति में हवन भी करवाते हैं. ऐसे में देवी की इस पूजन प्रक्रिया को पूरा करने के बाद हवन को पूरा करें और प्रसाद ग्रहण कर माता का आशीर्वाद प्राप्त करें.
सबसे जरूरी होता है जो लोग नौ दिन का व्रत रहते हैं. नौ दिन का व्रत रहने वाले लोगों को दशमी यानि मंगलवार को अपने व्रत का पारण करना होगा. माता रानी के आगे हाथ जोड़कर उनका विधिवत पूजन कर उन्हें विदाई दें और जो मिट्टी में जौ की खेती की है उसको धीरे से हाथों से ऊपर की तरफ उठाकर माता रानी का जो कलश है उस पर चावल चढ़ाकर उनको विदा करें. इसके बाद अपने व्रत को पूर्ण कर प्रसाद ग्रहण करें.
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इस बात का रखें ध्यान
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि नवमी पूजन में कन्या पूजन का विशेष महत्व है, लेकिन एक बात ध्यान देने योग्य है. नवमी में कन्या पूजन सिर्फ 1 वर्ष से 10 वर्ष की कन्याओं का ही होना चाहिए. धर्म शास्त्र में 1 वर्ष से कम और 10 वर्ष से ऊपर की कन्या का पूजन निषिद्ध बताया गया है. इसके अलावा नवमी पूजन दोपहर 12 बजे से पहले करना ही लाभप्रद होगा. मुख्य शास्त्रों में कहा गया है कि देवी स्थापना और देवी की पूर्णाहुति पूजा हमेशा मध्यान से पहले ही होनी चाहिए, यानी दोपहर 12 बजे से पहले.