वाराणसीः दिवाली पर्व की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. सभी लोग अपने-अपने तरीके से इस पर्व को मनाने के लिए घरों की साज-सज्जा और अन्य तैयारियों में जुटे हुए हैं. वहीं ग्रामीण अंचलों में भी इस पर्व को लेकर खासा उल्लास देखने को मिल रहा हैं. शहर की चकाचौंध से दूर गांवों में लोग पारंपरिक तरीके से दिवाली का पर्व मनाते हैं. इन दिनों गांवों में मिट्टी के घरों पर लिपाई-पुताई और रंगाई का काम जोरों पर चल रहा है. इसके साथ ही बच्चे भी अपने घरौंदे बनाते नजर आ रहे हैं.
गांव की दिवाली सुकून देने वाली
ईटीवी भारत से बातचीत में तोहापुर गांव में रहने वाली नीतू ने बताया कि गांव की दिवाली सुकूनियत वाली होती है. यहां शहर की चका-चौंध नहीं होती. शहर में लोग अनेक तरीके के झालर और सजावटी समान के साथ अपना पर्व मनाते हैं, लेकिन हम लोग अपने मिट्टी के घर को लीप-पोत कर दिवाली का पर्व मनाते हैं. इस पर्व पर बच्चे घरौंदा बनाते हैं. बच्चों के लिए बाजार से खिलौने और मिठाई खरीद कर लेकर आते हैं. पकवान बनाकर अपने परिवार के साथ दिवाली का त्योहार मनाते हैं.
बच्चों की खुशी के लिए बनाते हैं घरौंदा
संजू देवी ने बताया कि दिवाली पर्व का पूरे साल इंतजार रहता है. हम सब घरों की साफ-सफाई कराने के साथ बच्चों के लिए घरौंदा भी बनाते हैं, जिसमें छोटे छोटे घर बनाए जाते हैं और बच्चों के लिए खिलौने खरीदकर ले आते हैं. उन्होंने बताया कि दीवाली पर्व पर दीया-बत्ती जलाने के साथ अनेक पकवान बनाने का भी विधान है. हम सभी कचौड़ी, पूरी, खीर, गोइठा, सूरन की सब्जी बनाते हैं और पूरे परिवार के साथ पर्व का आनंद उठाते हैं.
हमारा त्योहार होता है अच्छा
गांव में रहने वाले बच्चों ने बताया कि हमारी दिवाली गरीबों वाली दिवाली होती है, लेकिन हमारा त्योहार अच्छा होता है. यहां शहर की तरह चकाचौंध तो नहीं होती, लेकिन हम सब मिट्टी के घर और खिलौने बनाते हैं.
गांव में संरक्षित हैं पुरानी परंपराएं
गौरतलब हो कि गांवों में आज भी पुरानी परंपराओं को सहेज कर पर्व मनाए जाते हैं. दिवाली भी उनमें से एक है. इस दिन मिट्टी के बने घरों पर लिपाई-पुताई का काम होता है. शुद्ध गेरुआ रंग से उस पर कलाकृति की जाती है. इसके बाद मिट्टी के दीयों में दीप जलाकर स्वदेशी तरीके से दिवाली का पर्व मनाया जाता है.