वाराणसी: खिलौना...देखने और सुनने में बस एक आम सी चीज, लेकिन इसका हम सबके जीवन में बहुत महत्व है. खिलौना देखते ही बाजार में उसको लेने की जिद्द करना और जिद्द पूरी नहीं होने पर रूठना हर बच्चे ने किया है. बच्चों के लिए तो खिलौने ही उनकी जिंदगी होते हैं. समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार शैक्षिक और आकर्षक दोनों प्रकार के खिलौनों की आवश्यकता होती है. वर्तमान में इनमें इनोवेशन की मांग भी बढ़ रही है. इसी को देखते हुए वर्तमान नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्ले आधारित गतिविधियों और शिक्षा पर बल दिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन टॉय फेयर के माध्यम से इंडस्ट्री को उम्मीद की नई किरण दिखाई हैं. इससे रोजगार बढ़ाने के साथ ही पारंपरिक खेलों को प्रोत्साहित किया जा सकेगा.
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'बढ़ रही है उम्मीद'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद टॉय फैक्ट्रीज को बड़ा मुनाफा होता हुआ नजर आ रहा है. टॉय फेस्टिवल के बाद से कारीगरों के पास ऑर्डर आने शुरू हो गए हैं. दुनिया में खिलौनों की मांग 5 फीसदी तक बढ़ी है, तो भारत में खिलौनों की मांग 10 से 15 फीसदी की गति से बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी को शिल्पियों का शहर कहा जाता है. यहां के लकड़ी के कारीगरों के पास पारंपरिक खेल खिलौनों को ऑर्डर आया है. इससे उनकी उम्मीद दोगुनी हो गई है. ईटीवी भारत की टीम ने उनसे खिलौनों को लेकर खास बातचीत की है.
'टॉय फेस्टिवल के बाद से मिल रहे ऑर्डर'
काशी में इस व्यवसाय से जुड़े बिहारी लाल अग्रवाल बताते हैं कि दिल्ली में लगा वर्चुअल टॉय फेस्टिवल हम सब के लिए वरदान की तरह काम कर रहा है. इससे लकड़ी के खिलौने और सामान बनाने वाले व्यवसायी प्रभावित हुए हैं. वर्चुअल टॉय फेस्टिवल ने इस व्यवसाय में जान डाल दी है. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के कारण अब वापस से लकड़ी के पुराने पारंपरिक खिलौनों, कलाकृतियों की मांग आने लगी है. उन्होंने बताया कि फेस्टिवल के बाद उन्हें लकड़ी के खिलौनों और गुल्ली-डंडे बनाने का ऑर्डर मिला है. इस ऑर्डर से अब उनकी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं.
'650 गुल्ली-डंडे का मिला है ऑर्डर'
उन्होंने बताया कि सबसे पहले हमें मुंबई की कंपनी से नई दिल्ली के निजी स्कूलों में आपूर्ति के लिए 650 सेट गुल्ली-डंडे का ऑर्डर मिला. इससे लगता है कि अब हमारे कारीगरों के दिन बदलने वाले हैं. इसके बाद हमें लगातार ऑर्डर मिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि ऑर्डर मिलने के बाद कारीगर पूरे जोश के साथ काम कर रहे हैं. अलग-अलग डिजाइन का गुल्ली-डंडे पर बनाया जा रहा है.
फिर से मिल रही पहचान
प्रधानमंत्री के पारंपरिक खेल खिलौनों को बढ़ावा देने के आह्वान के बाद वाराणसी में गुल्ली-डंडे के दिन लौट आए हैं. यही वजह है कि परंपराओं के शहर बनारस से यहां की इस विरासत को दूसरे शहर भेजने की तैयारी चल रही है. अब गुल्ली-डंडे को फिर से पहचान मिलने लगी है.