वाराणसी : कल यानी 21 सितंबर 2021 मंगलवार से पितृपक्ष शुरू हो रहा है. सनातन धर्म में इस पितृपक्ष का काफी महत्व है, इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पिंडदान और दान पुण्य करते हैं. पितृपक्ष का पखवारा अश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक 15 दिनों तक रहता है. हालांकि लेकिन इस बार यह 16 दिनों का होगा. काशी विद्वत परिषद के महामंत्री ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक तृतीया तिथि की वृद्धि की वजह से इस बार पितृपक्ष 15 के बाजाय 16 दिन का होगा.
ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक पितृपक्ष अपने आप में एक विशेष फल और आशीर्वाद प्रदान करने वाला पखवारा माना जाता है. यह 15 दिनों का एक ऐसा काल होता है, जिस दौरान पितृ अपने लोक को छोड़कर धरती लोक पर वास करते हैं. 15 दिनों तक अपने स्वजनों बीच पितरों की मौजूदगी होती है. पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मणों को दिए जाने वाले भोजन जल और तर्पण के जरिए प्रदान किए जाने वाले तिल, पिंड और जल इत्यादि से पितृ अपने को संतुष्ट करते हैं. इसलिए 15 दिनों का यह पखवारा बेहद महत्वपूर्ण और सनातन धर्म में खास माना जाता है.
इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि बहुत से लोग पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत मानते हैं, लेकिन इस बार पितृपक्ष की शुरुआत 21 सितंबर यानी प्रतिपदा से हो रही है. प्रतिपदा का पहला श्राद्ध 21 सितंबर को जबकि अंतिम श्राद्ध 6 अक्टूबर अमावस्या को संपन्न होगा. वैसे तो पितृ पक्ष का यह पखवारा 15 दिन का होता है लेकिन इस बार तृतीया तिथि 2 दिन मान्य हो रही है. 23 व 24 सितंबर को तृतीया तिथि का मान होने की वजह से इस बार पितृ पक्ष का यह पखवारा 16 दिन का माना जाएगा. चतुर्थी तिथि का श्राद्ध भी 24 सितंबर को ही संपन्न होगा.
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इन तिथियों पर होता है इनका श्राद्ध
पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि पितृपक्ष का यह पखवारा अलग-अलग तिथि के अनुसार मृत्यु लोक को प्राप्त करने वाले पितरों के लिए समर्पित होता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण तीन तिथियां मानी जाती हैं पितृ पक्ष की चतुर्थी तिथि को उन लोगों के श्राद्ध कर्म करने का विधान है. जिनकी मृत्यु किसी अस्त्र-शस्त्र से हुई हो. इसके अलावा मातृ नवमी के दिन सुहागिन महिलाओं का श्राद्ध कर्म संपन्न कराया जाता है, यानी जो महिलाएं पति के रहते हुए पर लोग सिधारी हैं. उनका श्राद्ध कर्म इस दिन संपन्न होता है. इसके अतिरिक्त अंतिम दिन अमावस्या को उन पूर्वजों और पितरों का श्राद्ध कर्म संपन्न कराया जाता है जिनकी तिथियां अज्ञात होती हैं. बहुत से लोगों को अपने पितरों की मृत्यु की तिथि के बारे में नहीं पता होता. ऐसी स्थिति में अंतिम दिन अमावस्या को अज्ञात तिथियों पर मृत्यु लोक पाए पितरों का श्राद्ध कर्म संपन्न होता है.
यह है विधान
पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक 15 दिन के इस पखवारे में सबसे महत्वपूर्ण श्राद्ध कर्म हुआ तर्पण करना माना जाता है. तर्पण पितरों को जल देने से लेकर पिंड दान करने तक की वह प्रक्रिया है. जिसके जरिए पितरों को संतुष्टि मिलती है और इस दौरान साल भर की गई गलतियों की क्षमा याचना भी पितरों से की जाती है. प्रतिदिन रोज सुबह स्नान करने के बाद कुशा के आसन पर विराजमान होकर जनेऊ धारी लोगों को अपने जनेऊ को असभ्य यानी उल्टा करने के बाद श्राद्ध कर्म को पूर्ण करना चाहिए. निर्धारित तिथि पर ब्राह्मण भोज कराने के साथ यथाशक्ति दान धर्म करना पितरों को संतुष्ट करता है और पितरों का आशीर्वाद मिलने से घर में आई बाधाएं दूर होती हैं और सुख संपन्नता बनी रहती है. इसलिए पितृपक्ष का यह पखवारा बेहद महत्वपूर्ण होता है. जिसे किसी भी हालत में पितरों के निमित्त संपन्न होना चाहिए.