ETV Bharat / state

गंगा किनारे बसी है काशी, फिर भी आबादी क्यों है प्यासी - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

काशी की एक बड़ी आबादी लगातार पानी के संकट से जूझ रही है. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि शहर के लोगों को रोजमर्रा की जरूरत भर के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है. हालांकि ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा जैसी तमाम योजनाएं चल रही हैं, लेकिन लोग आज भी पानी की किल्लत झेल रहे हैं.

स्पेशल रिपोर्ट.
स्पेशल रिपोर्ट.
author img

By

Published : Oct 13, 2020, 5:27 AM IST

Updated : Oct 13, 2020, 9:39 AM IST

वाराणसी: गंगा किनारे बसा बनारस पानी की किल्लत से जूझ रहा है. यहां की बड़ी आबादी प्यास बुझाने के लिए हर रोज संघर्ष कर रही है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते यहां विकास के हजार दावे किए जा रहे हैं, लेकिन दावे हकीकत से जुदा हैं. हालात यह हैं कि शहर के लोगों को रोजमर्रा की जरूरत भर के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा. यहां भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है. यहां सरकारी नलों के बाहर लोगों को घंटों पानी भरने के लिए इंतजार करना पड़ता है. इतना ही नहीं लोग दूर-दराज से पानी भर कर अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं. पानी की किल्लत बनारस के तमाम इलाकों में बनी हुई है, लेकिन जिम्मेदारों की आंखो का पानी सूख चुका है. यही वजह है कि आज तक बनारसवासियों को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

गंगा किनारे बड़ी आबादी प्यासी
गंगा किनारे बसी काशी को देखकर शायद ही कोई सोचता हो कि बनारस में पानी की समस्या नहीं होगी. हम आपको इसकी सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आप भी कहेंगे कि क्या यही सच है? बनारस में गंगा किनारे लगभग तीन लाख से ज्यादा की आबादी बसती है. गंगा किनारे सटे इलाकों में संकरी गलियों में रहने वाले लोग अभी भी पानी की समस्या से हर रोज जूझ रहे हैं. सरकारी नलों से पानी भरने के लिए लोग घंटों कतार में खड़े रहते हैं. हालांकि घरों में सरकारी नल के कनेक्शन तो हैं, लेकिन पानी नहीं पहुंचता है. प्रेशर ना होने की वजह से घरों के बाहर लगे सरकारी नलों में ही पानी आकर रुक जाता है. कुछ इलाके तो ऐसे भी हैं जहां कई सालों से पानी नहीं आया. हर रोज पानी के इंतजार में लोगों की आंखों का पानी सूखता जा रहा है, लेकिन हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं.

बनारस के पुराने इलाके चौक, ब्रह्मनाल, गढ़वासी टोला, शीतला गली, पशुपतेश्वर, रामघाट, मीर घाट, ललिता घाट समेत शहर के अन्य इलाकों में पांडेयपुर, सारनाथ, कचहरी, राजा बाजार, सरैया, कज्जाकपुरा समेत कई अन्य इलाकों में पानी की जटिल समस्या है. इन समस्याओं को दूर करने के लिए नगर निगम और जलकल विभाग लंबे-लंबे दावे कर रहा है, लेकिन स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही, जिसकी वजह से लोगों के आगे अपनी प्यास बुझाने का बड़ा संकट गहराता जा रहा है.

अधिकारियों ने माना, है पानी की किल्लत
नगर आयुक्त गौरांग राठी का कहना है कि समस्या को दूर करने का प्रयास जारी है. अमृत योजना के तहत करोड़ों रुपये की योजनाएं संचालित हो रही हैं और जल्द ही पीने के पानी की दिक्कत को दूर किया जाएगा. हालांकि ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा में तमाम योजनाएं चल रही हैं. साल 2019 में वाटर ओवरहेड टैंक में गड़बड़ी और बिछाई गई नई पाइप लाइन में तमाम दिक्कतें उजागर हुई. बाद में संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और जांच में इन्हें ठीक करने की कवायद शुरू हुई है. नगर आयुक्त ने माना कि पाइप लाइन बेहद पुरानी होने की वजह से मुख्य सप्लाई सेंटर से जल निकासी में समस्या आई है. खराब पाइप लीकेज की वजह से अंतिम छोर में रहने वाले लोगों तक पानी नहीं पहुंचता है. इस समस्या के निराकरण को दूर करने की कवायद चल रही है, लेकिन यह कब तक दूर होगी इसका जवाब नगर आयुक्त के पास नहीं था.

दो हिस्सों में बंटी है बनारस के पानी की व्यवस्था
दरअसल, वाराणसी में पानी की व्यवस्था अंग्रेजी शासनकाल से वैसी ही है जैसी बनाई गई थी. पुरानी पाइप लाइन होने की वजह से लीकेज की समस्या का निवारण अब तक नहीं खोजा जा सका है. बनारस को पीने के पानी के लिहाज से दो भागों में बांटा गया है. ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा. इन दो हिस्सों में बांटे जाने के बाद शहर के 15 लाख उपभोक्ताओं को रोजाना जलापूर्ति करने का दावा जल संस्थान करता है. जलकल के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो सिंस वरुणा क्षेत्र में 466 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन अंग्रेजों के समय बिछाई गई, जो इस वक्त भी संचालित हो रही है, जबकि ट्रांस वरुणा क्षेत्र में 150 किलोमीटर पुरानी पाइप लाइन बिछी हुई है. जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत लगभग ढाई सौ किलोमीटर नई पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा किया गया है. लीकेज में हर रोज 120 एमएलडी पानी बर्बाद होता है.

आंकड़ों में हाल

  • कुल आबादी 20 लाख
  • कुल ओवरहेड टैंक 40
  • काम के ओवरहेड टैंक 8
  • बनारस में कुल 15 लाख उपभोक्ता मौजूद है
  • जलकल रोज 600 एमएलडी पानी की सप्लाई करता है
  • जरूरत 750 एमएलडी पानी की हर रोज है
  • 150 एमएलडी पानी की जरूरत को जल संस्थान अभी पूरा नहीं कर पा रहा है
  • 300 एमएलडी पानी की सप्लाई ओवरहेड टैंकों से की जाती है - वाटर ट्यूबेल से 155 एमएलडी पानी की सप्लाई होती है
  • गंगा से 145 एमएलडी पानी की जरूरत को पूरा किया जाता है.
  • लीकेज की वजह से रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बादी घरों तक पहुंचने से पहले ही हो जाती है
  • सप्लाई के बाद वाटर टैंक के जरिए सिंस और ट्रांस वरुणा में लोगों की प्यास बुझाने के लिए भी व्यवस्था है
  • सिंस वरुणा में 17 और ट्रांस वरुणा में 23 ओवरहेड टैंक बनाए गए हैं
  • इनके संचालन की जिम्मेदारी जल निगम की है लेकिन आज तक 23 ओवरहेड टैंक शुरू ही नहीं हो सके हैं

2019 में पूरे हुए इन ओवरहेड टैंक की टेस्टिंग में ही इनमें खामियां हैं जिसमें कार्यदाई संस्था पर एफआईआर हुई और इन्हें ठीक करने की तैयारी भी हुई लेकिन अब तक यह सिर्फ सफेद हाथी बने खड़े हैं.

वाराणसी: गंगा किनारे बसा बनारस पानी की किल्लत से जूझ रहा है. यहां की बड़ी आबादी प्यास बुझाने के लिए हर रोज संघर्ष कर रही है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते यहां विकास के हजार दावे किए जा रहे हैं, लेकिन दावे हकीकत से जुदा हैं. हालात यह हैं कि शहर के लोगों को रोजमर्रा की जरूरत भर के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा. यहां भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है. यहां सरकारी नलों के बाहर लोगों को घंटों पानी भरने के लिए इंतजार करना पड़ता है. इतना ही नहीं लोग दूर-दराज से पानी भर कर अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं. पानी की किल्लत बनारस के तमाम इलाकों में बनी हुई है, लेकिन जिम्मेदारों की आंखो का पानी सूख चुका है. यही वजह है कि आज तक बनारसवासियों को पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट.

गंगा किनारे बड़ी आबादी प्यासी
गंगा किनारे बसी काशी को देखकर शायद ही कोई सोचता हो कि बनारस में पानी की समस्या नहीं होगी. हम आपको इसकी सच्चाई से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आप भी कहेंगे कि क्या यही सच है? बनारस में गंगा किनारे लगभग तीन लाख से ज्यादा की आबादी बसती है. गंगा किनारे सटे इलाकों में संकरी गलियों में रहने वाले लोग अभी भी पानी की समस्या से हर रोज जूझ रहे हैं. सरकारी नलों से पानी भरने के लिए लोग घंटों कतार में खड़े रहते हैं. हालांकि घरों में सरकारी नल के कनेक्शन तो हैं, लेकिन पानी नहीं पहुंचता है. प्रेशर ना होने की वजह से घरों के बाहर लगे सरकारी नलों में ही पानी आकर रुक जाता है. कुछ इलाके तो ऐसे भी हैं जहां कई सालों से पानी नहीं आया. हर रोज पानी के इंतजार में लोगों की आंखों का पानी सूखता जा रहा है, लेकिन हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं.

बनारस के पुराने इलाके चौक, ब्रह्मनाल, गढ़वासी टोला, शीतला गली, पशुपतेश्वर, रामघाट, मीर घाट, ललिता घाट समेत शहर के अन्य इलाकों में पांडेयपुर, सारनाथ, कचहरी, राजा बाजार, सरैया, कज्जाकपुरा समेत कई अन्य इलाकों में पानी की जटिल समस्या है. इन समस्याओं को दूर करने के लिए नगर निगम और जलकल विभाग लंबे-लंबे दावे कर रहा है, लेकिन स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही, जिसकी वजह से लोगों के आगे अपनी प्यास बुझाने का बड़ा संकट गहराता जा रहा है.

अधिकारियों ने माना, है पानी की किल्लत
नगर आयुक्त गौरांग राठी का कहना है कि समस्या को दूर करने का प्रयास जारी है. अमृत योजना के तहत करोड़ों रुपये की योजनाएं संचालित हो रही हैं और जल्द ही पीने के पानी की दिक्कत को दूर किया जाएगा. हालांकि ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा में तमाम योजनाएं चल रही हैं. साल 2019 में वाटर ओवरहेड टैंक में गड़बड़ी और बिछाई गई नई पाइप लाइन में तमाम दिक्कतें उजागर हुई. बाद में संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और जांच में इन्हें ठीक करने की कवायद शुरू हुई है. नगर आयुक्त ने माना कि पाइप लाइन बेहद पुरानी होने की वजह से मुख्य सप्लाई सेंटर से जल निकासी में समस्या आई है. खराब पाइप लीकेज की वजह से अंतिम छोर में रहने वाले लोगों तक पानी नहीं पहुंचता है. इस समस्या के निराकरण को दूर करने की कवायद चल रही है, लेकिन यह कब तक दूर होगी इसका जवाब नगर आयुक्त के पास नहीं था.

दो हिस्सों में बंटी है बनारस के पानी की व्यवस्था
दरअसल, वाराणसी में पानी की व्यवस्था अंग्रेजी शासनकाल से वैसी ही है जैसी बनाई गई थी. पुरानी पाइप लाइन होने की वजह से लीकेज की समस्या का निवारण अब तक नहीं खोजा जा सका है. बनारस को पीने के पानी के लिहाज से दो भागों में बांटा गया है. ट्रांस वरुणा और सिंस वरुणा. इन दो हिस्सों में बांटे जाने के बाद शहर के 15 लाख उपभोक्ताओं को रोजाना जलापूर्ति करने का दावा जल संस्थान करता है. जलकल के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो सिंस वरुणा क्षेत्र में 466 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन अंग्रेजों के समय बिछाई गई, जो इस वक्त भी संचालित हो रही है, जबकि ट्रांस वरुणा क्षेत्र में 150 किलोमीटर पुरानी पाइप लाइन बिछी हुई है. जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के तहत लगभग ढाई सौ किलोमीटर नई पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा किया गया है. लीकेज में हर रोज 120 एमएलडी पानी बर्बाद होता है.

आंकड़ों में हाल

  • कुल आबादी 20 लाख
  • कुल ओवरहेड टैंक 40
  • काम के ओवरहेड टैंक 8
  • बनारस में कुल 15 लाख उपभोक्ता मौजूद है
  • जलकल रोज 600 एमएलडी पानी की सप्लाई करता है
  • जरूरत 750 एमएलडी पानी की हर रोज है
  • 150 एमएलडी पानी की जरूरत को जल संस्थान अभी पूरा नहीं कर पा रहा है
  • 300 एमएलडी पानी की सप्लाई ओवरहेड टैंकों से की जाती है - वाटर ट्यूबेल से 155 एमएलडी पानी की सप्लाई होती है
  • गंगा से 145 एमएलडी पानी की जरूरत को पूरा किया जाता है.
  • लीकेज की वजह से रोज 120 एमएलडी पानी की बर्बादी घरों तक पहुंचने से पहले ही हो जाती है
  • सप्लाई के बाद वाटर टैंक के जरिए सिंस और ट्रांस वरुणा में लोगों की प्यास बुझाने के लिए भी व्यवस्था है
  • सिंस वरुणा में 17 और ट्रांस वरुणा में 23 ओवरहेड टैंक बनाए गए हैं
  • इनके संचालन की जिम्मेदारी जल निगम की है लेकिन आज तक 23 ओवरहेड टैंक शुरू ही नहीं हो सके हैं

2019 में पूरे हुए इन ओवरहेड टैंक की टेस्टिंग में ही इनमें खामियां हैं जिसमें कार्यदाई संस्था पर एफआईआर हुई और इन्हें ठीक करने की तैयारी भी हुई लेकिन अब तक यह सिर्फ सफेद हाथी बने खड़े हैं.

Last Updated : Oct 13, 2020, 9:39 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.