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रिसर्चः अब क्यूआर कोड और लोगो बताएगा असली हैंडलूम बनारसी साड़ियों की पहचान

धर्म नगरी वाराणसी अपने खान-पान और पहनावे के लिए भी जानी जाती है. देश ही नहीं बल्कि विदेशों से आने वाले पर्यटक बनारसी पान, गंगा घाट और वाराणसी साड़ी जरूर लेते हैं.

क्यूआर कोड और लोगो बताएगा बनारसी साड़ियों की पहचान
क्यूआर कोड और लोगो बताएगा बनारसी साड़ियों की पहचान
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Published : Jul 23, 2021, 9:54 PM IST

वाराणसीः काशी की प्रसिद्धि किसी परिचय की मोहताज नहीं है. यहां पर आने वाले लोग बनारसी पान, गंगा घाट और बनारसी साड़ी जरूर लेते हैं. ऐसे में बनारसी साड़ी खरीदने वाले पर्यटकों के लिए एक अच्छी ख़बर है. अब वो अगर बनारसी साड़ी खरीदते हैं, तो उसकी सौ फीसदी विश्वसनीयता भी बनी रहेगी. ये पूरी तरह से हथकरघा में बनाया गया है. इसके लिए वाराणसी की आईआईटी बीएचयू (IIT-BHU) ने एक नई तकनीकी इजात की है.

हथकरघा साड़ी में नई तकनीक

वाराणसी के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (आईआईटी-बीएचयू) के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक शोध टीम ने हथकरघा साड़ी में एक नई तकनीक बनाई है. ये तकनीकी साड़ी में ही इनबिल्ट है. जो इस प्वाइंटर से समझा जा सकता है-

  • साड़ी का विवरण युक्त बुना हुआ क्यूआर कोड
  • हथकरघा चिह्न लोगो
  • रेशम चिह्न
  • बनारस भौगोलिक संकेत (जीआई लोगो)
    अब आसान होगी बनारसी साड़ियों की पहचान

आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं के मुताबिक साड़ी में इनबिल्ट वीविंग लोगो हस्तनिर्मित हथकरघा साड़ी की शुद्धता को प्रमाणित करेगा. यह ग्राहकों को सही हथकरघा साड़ी चुनने के साथ ही हथकरघा और उसके उत्पादों के दुरुपयोग को रोकने के लिए विश्वास दिलाएगा. हथकरघा उद्योग में साड़ियों पर क्यूआर कोड और लोगो का उपयोग करके विश्वास-निर्माण के उपायों के लिए आईआईटी (बीएचयू) और अंगिका सहकारी समिति द्वारा एक रिसर्च किया गया.

बनारसी साड़ी
बनारसी साड़ी

हथकरघा उद्योग में आधुनिक दृष्टिकोण

ईटीवी भारत से ऑनलाइन बातचीत में डॉक्टर प्रभाष भारद्वाज, प्रोफेसर, मैकेनिकल इंजीनियरिंग ने बताया कि वाराणसी हथकरघा उद्योग को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना होगा. वर्तमान समय में अधिकांश ग्राहकों के पास मोबाइल फोन है. डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत के साथ, लोगों को तकनीक की अधिक आदत हो रही है. वाराणसी में मेरे शोधार्थी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, इस उद्योग में आईटी आधारित अनुप्रयोगों को शामिल करने की बहुत संभावनाएं हैं. वर्तमान में, हमारी शोध टीम ने क्यूआर कोड तकनीक और साड़ी पर लोगो बुनाई की तकनीक तैयार की है. साड़ी निर्माता अपनी फर्म और निर्माण के विवरण के साथ साड़ी पर क्यूआर कोड बुन सकता है. जब भी ग्राहक किसी उत्पाद के बारे में जानना चाहता है, तो उसे अपने मोबाइल में स्कैनर का उपयोग करना होता है. वह क्यूआर कोड में सभी विवरण दर्ज करवाएगा, जैसे निर्माता का स्थान, निर्माण की तारीख. इन उपायों से ग्राहकों में विश्वास पैदा होगा और बिक्री में बढ़ोतरी होगी.

इसे भी पढ़ें- अब प्रेग्नेंट महिलाओं को नहीं जाना पड़ेगा अस्पताल, घर पर ही सुन सकेंगे गर्भ में पल रहे शिशु की धड़कन

अंगिका सहकारी समिति, वाराणसी के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा और डिजाइनर अंगिका ने पहली बार इस क्यूआर कोड की तकनीक को साड़ियों में लगाना शुरू किया है. उन्होंने कहा कि जीआई चिह्नों और हथकरघा चिह्नों के समुचित उपयोग के अभाव में ग्राहक हथकरघा पर बुनी साड़ियों और हैंडलूम से बनी साड़ियों में अंतर नहीं कर पाता. इसलिए, हम अपनी साड़ियों में इस क्यूआर कोड और हैंडलूम मार्क लॉग को इनबिल्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. यह हमारे स्थानीय और विदेशी ग्राहकों को हथकरघा उत्पाद और पावरलूम उत्पादों के बीच अंतर करने में मदद करेगा. टीम ने इनबिल्ट क्यूआर कोड और हथकरघा चिह्न लोगो के साथ सफलतापूर्वक एक साड़ी बनाई है.

साड़ियों के बीच अंतर में मिलेगी जानकारी

बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर एम.कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बनारस हैंडलूम उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहै है. जिसमें मार्केटिंग प्रमुख है. उनके अध्ययन के अनुसार अधिकांश ग्राहकों को हथकरघा और पावरलूम साड़ी के बीच अंतर के बारे में जानकारी नहीं है. हथकरघा चिह्न और जीआई चिह्न के बारे में केवल सीमित संख्या में ही ग्राहक जानते हैं. उनके अध्ययन से यह भी पता चलता है कि ग्राहक इस बात से अनजान हैं कि विक्रेता साड़ियों पर असली हैंडलूम मार्क प्रदान कर रहे हैं या उत्पादों के साथ डुप्लिकेट हैंडलूम चिह्न दे रहे हैं. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए साड़ियों पर ही लोगो और क्यूआर कोड की तकनीक का इजाद किया गया है. उन्होंने बताया कि पूरी तरह से डिज़ाइन की गई साड़ी में 6.50 मीटर लंबाई होती है, जिसमें 1 मीटर ब्लाउज के टुकड़े शामिल होते हैं. साड़ी का हिस्सा पूरा होने के बाद, ब्लाउज के बुनने से पहले सादे कपड़े का एक हिस्सा 6-7 इंच का होता है. इस पैच में क्यू आर कोड और अन्य तीन लॉग डिज़ाइन किए गए हैं. इन लॉग डिजाइनों को जगह-जगह लगाने से कपड़े की मजबूती और खूबसूरती कम नहीं होगी और साड़ी का लुक बरकरार रहेगा. हथकरघा में जो भी साड़ी बना हुआ है उससे इस बार कोर्ट से सबसे पहले हम ये पता करेंगे कि जो साड़ी है वो पावर लूम से बना है या हथकरघा से. इसके लिए हम लोगों ने एक बार कोड बनाया है. इसमें साड़ी के बारे में सारा विवरण आपको पता चल जाएगा. उसके बाद हम कई तरह के यहां पर लोगों बनाए हैं. जो ये बताएगा साड़ी में सिल्क है तो वह कितना प्रतिशत है. इसके साथ ही अगर कोई इसकी कॉपी करता है, तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है. ये बहुत ही अच्छी तकनीक है. इससे लोगों को असली साड़ी मिलेगी.

वाराणसीः काशी की प्रसिद्धि किसी परिचय की मोहताज नहीं है. यहां पर आने वाले लोग बनारसी पान, गंगा घाट और बनारसी साड़ी जरूर लेते हैं. ऐसे में बनारसी साड़ी खरीदने वाले पर्यटकों के लिए एक अच्छी ख़बर है. अब वो अगर बनारसी साड़ी खरीदते हैं, तो उसकी सौ फीसदी विश्वसनीयता भी बनी रहेगी. ये पूरी तरह से हथकरघा में बनाया गया है. इसके लिए वाराणसी की आईआईटी बीएचयू (IIT-BHU) ने एक नई तकनीकी इजात की है.

हथकरघा साड़ी में नई तकनीक

वाराणसी के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय (आईआईटी-बीएचयू) के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग (औद्योगिक प्रबंधन) की एक शोध टीम ने हथकरघा साड़ी में एक नई तकनीक बनाई है. ये तकनीकी साड़ी में ही इनबिल्ट है. जो इस प्वाइंटर से समझा जा सकता है-

  • साड़ी का विवरण युक्त बुना हुआ क्यूआर कोड
  • हथकरघा चिह्न लोगो
  • रेशम चिह्न
  • बनारस भौगोलिक संकेत (जीआई लोगो)
    अब आसान होगी बनारसी साड़ियों की पहचान

आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ताओं के मुताबिक साड़ी में इनबिल्ट वीविंग लोगो हस्तनिर्मित हथकरघा साड़ी की शुद्धता को प्रमाणित करेगा. यह ग्राहकों को सही हथकरघा साड़ी चुनने के साथ ही हथकरघा और उसके उत्पादों के दुरुपयोग को रोकने के लिए विश्वास दिलाएगा. हथकरघा उद्योग में साड़ियों पर क्यूआर कोड और लोगो का उपयोग करके विश्वास-निर्माण के उपायों के लिए आईआईटी (बीएचयू) और अंगिका सहकारी समिति द्वारा एक रिसर्च किया गया.

बनारसी साड़ी
बनारसी साड़ी

हथकरघा उद्योग में आधुनिक दृष्टिकोण

ईटीवी भारत से ऑनलाइन बातचीत में डॉक्टर प्रभाष भारद्वाज, प्रोफेसर, मैकेनिकल इंजीनियरिंग ने बताया कि वाराणसी हथकरघा उद्योग को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाना होगा. वर्तमान समय में अधिकांश ग्राहकों के पास मोबाइल फोन है. डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत के साथ, लोगों को तकनीक की अधिक आदत हो रही है. वाराणसी में मेरे शोधार्थी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, इस उद्योग में आईटी आधारित अनुप्रयोगों को शामिल करने की बहुत संभावनाएं हैं. वर्तमान में, हमारी शोध टीम ने क्यूआर कोड तकनीक और साड़ी पर लोगो बुनाई की तकनीक तैयार की है. साड़ी निर्माता अपनी फर्म और निर्माण के विवरण के साथ साड़ी पर क्यूआर कोड बुन सकता है. जब भी ग्राहक किसी उत्पाद के बारे में जानना चाहता है, तो उसे अपने मोबाइल में स्कैनर का उपयोग करना होता है. वह क्यूआर कोड में सभी विवरण दर्ज करवाएगा, जैसे निर्माता का स्थान, निर्माण की तारीख. इन उपायों से ग्राहकों में विश्वास पैदा होगा और बिक्री में बढ़ोतरी होगी.

इसे भी पढ़ें- अब प्रेग्नेंट महिलाओं को नहीं जाना पड़ेगा अस्पताल, घर पर ही सुन सकेंगे गर्भ में पल रहे शिशु की धड़कन

अंगिका सहकारी समिति, वाराणसी के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा और डिजाइनर अंगिका ने पहली बार इस क्यूआर कोड की तकनीक को साड़ियों में लगाना शुरू किया है. उन्होंने कहा कि जीआई चिह्नों और हथकरघा चिह्नों के समुचित उपयोग के अभाव में ग्राहक हथकरघा पर बुनी साड़ियों और हैंडलूम से बनी साड़ियों में अंतर नहीं कर पाता. इसलिए, हम अपनी साड़ियों में इस क्यूआर कोड और हैंडलूम मार्क लॉग को इनबिल्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. यह हमारे स्थानीय और विदेशी ग्राहकों को हथकरघा उत्पाद और पावरलूम उत्पादों के बीच अंतर करने में मदद करेगा. टीम ने इनबिल्ट क्यूआर कोड और हथकरघा चिह्न लोगो के साथ सफलतापूर्वक एक साड़ी बनाई है.

साड़ियों के बीच अंतर में मिलेगी जानकारी

बनारस हथकरघा उद्योग के विकास पर काम कर रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग के रिसर्च स्कॉलर एम.कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बनारस हैंडलूम उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहै है. जिसमें मार्केटिंग प्रमुख है. उनके अध्ययन के अनुसार अधिकांश ग्राहकों को हथकरघा और पावरलूम साड़ी के बीच अंतर के बारे में जानकारी नहीं है. हथकरघा चिह्न और जीआई चिह्न के बारे में केवल सीमित संख्या में ही ग्राहक जानते हैं. उनके अध्ययन से यह भी पता चलता है कि ग्राहक इस बात से अनजान हैं कि विक्रेता साड़ियों पर असली हैंडलूम मार्क प्रदान कर रहे हैं या उत्पादों के साथ डुप्लिकेट हैंडलूम चिह्न दे रहे हैं. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए साड़ियों पर ही लोगो और क्यूआर कोड की तकनीक का इजाद किया गया है. उन्होंने बताया कि पूरी तरह से डिज़ाइन की गई साड़ी में 6.50 मीटर लंबाई होती है, जिसमें 1 मीटर ब्लाउज के टुकड़े शामिल होते हैं. साड़ी का हिस्सा पूरा होने के बाद, ब्लाउज के बुनने से पहले सादे कपड़े का एक हिस्सा 6-7 इंच का होता है. इस पैच में क्यू आर कोड और अन्य तीन लॉग डिज़ाइन किए गए हैं. इन लॉग डिजाइनों को जगह-जगह लगाने से कपड़े की मजबूती और खूबसूरती कम नहीं होगी और साड़ी का लुक बरकरार रहेगा. हथकरघा में जो भी साड़ी बना हुआ है उससे इस बार कोर्ट से सबसे पहले हम ये पता करेंगे कि जो साड़ी है वो पावर लूम से बना है या हथकरघा से. इसके लिए हम लोगों ने एक बार कोड बनाया है. इसमें साड़ी के बारे में सारा विवरण आपको पता चल जाएगा. उसके बाद हम कई तरह के यहां पर लोगों बनाए हैं. जो ये बताएगा साड़ी में सिल्क है तो वह कितना प्रतिशत है. इसके साथ ही अगर कोई इसकी कॉपी करता है, तो उस पर कार्रवाई की जा सकती है. ये बहुत ही अच्छी तकनीक है. इससे लोगों को असली साड़ी मिलेगी.

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