वाराणसी: जब कभी पुराने दोस्त अचानक से दुश्मन बनने लगते हैं तो सवाल उठना लाजमी है कि आखिर रिश्तों में ऐसी कौन सी कमी रह गई, जो दोस्त दुश्मन बनने लग गए. ऐसा ही इन दिनों भारत और नेपाल के सम्बन्धों को लेकर दिखाई दे रहा है. दोनों देशों के बीच नक्शे को लेकर तनातनी चल रही है. भारत का कहना है कि इस पूरे मसले पर विश्वास का संकट पैदा हो गया है. नेपाल ने कुल 395 वर्ग किलोमीटर के इलाके को अपने हिस्से में दिखाया है और अपने नए नक्शे में काला पानी के 60 वर्ग किलोमीटर को अपना बताया है, जबकि लिम्पियाधुरा के 395 वर्ग किलोमीटर पर नेपाल ने अपना दावा ठोंक दिया है. इस नए नक्शे को नेपाल की कैबिनेट में मंजूरी भी मिल गई है.
सीतामढ़ी में हुई गोलीबारी
भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद का मामला चल ही रहा था कि नेपाल के सुरक्षाकर्मियों ने सीतामढ़ी में भारतीय सीमा पर जबरदस्त गोलीबारी कर दी, जिसमें एक शख्स की मौत हो गई. दोनों देशों के खराब होते रिश्तों के बीच अब सवाल यह उठता है कि आखिर दो दोस्त अचानक से दुश्मन क्यों बनने लग गए? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने के लिए हम पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के सैकड़ों साल पुराने भारत नेपाल मैत्री स्थल पर पहुंचे, जहां आज भी इन दोनों देशों को अपनी इस दोस्ती पर गुमान है और उम्मीद भी है कि सब कुछ पहले जैसा ही सही हो जाएगा.
भारत-नेपाल के रिश्तों में चल रही तल्खियत के बीच ईटीवी भारत ने वाराणसी के उस स्थान पर पहुंचकर दोनों देशों के मधुर सम्बन्धों की पड़ताल की, जिसे नेपाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. सन् 1943 में भारत-नेपाल के मधुर सम्बन्धों के बीच वाराणसी के ललिता घाट पर गंगा किनारे नेपाल सरकार शाही परिवार की तरफ से पशुपतिनाथ मंदिर के प्रतिरूप की स्थापना कराई गई, जिसे साम्राज्येश्वर पशुपतिनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस पर आज भी नेपाल सरकार का ही राज है.
नेपाल दूतावास करता है मंदिर की देख-रेख
भारत में नेपाल दूतावास की तरफ से पशुपतिनाथ महादेव मंदिर की देख-रेख की जाती है. नेपाल सरकार की तरफ से इसका खर्च वहन किया जाता है. यहां पर पूजा-पाठ के अलावा संस्कृत शिक्षा के लिए संस्कृत पाठशाला और विधवा माताओं के लिए आश्रम की भी व्यवस्था है. वर्तमान में 40 नेपाली मूल के व्यक्ति, विद्यार्थी और 13 वृद्ध विधवा माताएं यहां पर रह रही हैं.
नेपाल की कृष्णा देवी हों या फिर हरि प्रिया, लगभग 40 सालों से काशी में रह रही हैं. नेपाल की होने के बावजूद वे भारत के बेहद करीब हैं. उनका कहना है कि नेपाल में पशुपतिनाथ हैं और काशी में विश्वनाथ, हमें तो दोनों में श्रद्धा है. लंबे वक्त से काशी में रहने की वजह से अब जीवन के अंतिम समय का इंतजार यह दोनों वृद्ध माताओं के साथ अन्य 11 और माताएं भी कर रही हैं. काशी में रहते हुए जीवन यापन के लिए रुई की बत्तियां बनाने का काम इन माताओं के द्वारा किया जाता है. नेपाल सरकार आज भी इनके देखरेख का खर्च वहन करती है.
नेपाल से आती है कर्मचारियों की तनख्वाह
नेपाल सरकार के अधीन आने वाली संपत्ति के रखरखाव से लेकर यहां कार्य करने वाले कर्मचारियों की तनख्वाह नेपाल से ही आती है. सब कुछ नेपाल सरकार के अधीन है और यहां की देखरेख और इस पूरी नेपाली संपत्ति की जिम्मेदारी वाराणसी में गोपाल प्रसाद अधिकारी के पास है.
'भारत और नेपाल के बीच सदियों पुराना रिश्ता'
साम्राज्येश्वर पशुपति नाथ महादेव मंदिर के महासचिव गोपाल प्रसाद अधिकारी का कहना है कि काशी मोक्ष की नगरी है. यहां शिव तारक मंत्र देते हैं. नेपाल और भारत का धार्मिक रिश्ता सदियों पुराना है. वृद्ध माताएं हो या नेपाल के विद्यार्थी, काशी में आना उनके लिए सौभाग्य की बात है. उन्होंने कहा कि भारत से हमारे रिश्ते बहुत पुराने हैं. नेपाल में कहा भी जाता है, 'यदि ज्ञान की कमी हो तो काशी चले जाओ'.
'जल्द दूर होंगी समस्याएं'
गोपाल प्रसाद अधिकारी का कहना है, 'हमारे विद्यार्थी यहां आकर शिक्षा ग्रहण करते हैं, माताएं यहां रहकर अपनी मृत्यु का इंतजार कर रही हैं. उनको उम्मीद है कि यहां उन्हें मोक्ष मिलेगा. यही वजह है कि आज कई सालों से हम अपने देश को छोड़कर वाराणसी यानी भारत में रह रहे हैं. सभी को विश्वास है कि दो समझदार देश आपस में बातचीत कर इस मसले को सुलझा लेंगे और जो भी दिक्कत परेशानी है, वह जल्द दूर होगी.'
'फिर से अच्छे होंगे दोनों देशों के सम्बन्ध'
मंदिर में मौजूद लोगों का कहना है कि भारत में हमें कोई डर नहीं लगता, हम जितना ज्यादा नेपाल में सुरक्षित हैं, उससे कहीं ज्यादा यहां सुरक्षित हैं. कुछ गलतफहमी हुई है और हमें पूरा विश्वास है कि यह समस्या जल्द दूर होगी और दोनों देशों के सम्बन्ध एक बार फिर से अच्छे हो जाएंगे.