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वाराणसी: गंगा आरती के लिए देना होगा नगर निगम को शुल्क

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में धार्मिक आयोजन, पंडा समाज को अपनी धार्मिक गतिविधियों को संचालित करने पर नगर निगम टैक्स लगाने जा रहा है. वहीं पंडा समाज और गंगा आरती समितियां इसका विरोध कर रही हैं.

धार्मिक कार्यक्रम पर टैक्स.
धार्मिक कार्यक्रम पर टैक्स.
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Published : Jul 23, 2020, 7:41 PM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी आने वाला हर सैलानी गंगा घाट जरूर जाना चाहता है. सैलानियों के बल पर ही काशी के घाटों पर मौजूद पंडा और तीर्थ पुरोहितों की रोजी रोटी चलती है. इतना ही नहीं काशी में हर शाम होने वाली गंगा आरती देखने के लिए भी देश दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं. काशी के घाट पर धार्मिक आयोजन करने वालों की भीड़ भी हमेशा बनी रहती हैं, लेकिन अब काशी के धार्मिक आयोजन, पंडा समाज को अपनी धार्मिक गतिविधियों को संचालित करने को लेकर नगर निगम नई नीति के तहत सारी धार्मिक कार्यों पर टैक्स लगाने जा रहा है.

इस नए नियम के बाद नगर निगम ने तत्काल प्रभाव से यह आदेश पारित कर टैक्स लगाए जाने की घोषणा कर दी है. जिसके बाद पंडा समाज और गंगा आरती समितियां इसके विरोध में खड़ी हो गई हैं. दरअसल वाराणसी नगर निगम ने नदी किनारे रखरखाव संरक्षण एवं नियंत्रण उपविधि 2020 नियम की घोषणा करते हुए तत्काल प्रभाव से घाट किनारे होने वाले किसी भी धार्मिक आयोजन के लिए टैक्स लगाए जाने की घोषणा की है. घाटों पर पूजा-पाठ कराने वाले पुरोहित हो या गंगा आरती कराने वाले अर्चक या फिर कथा रुद्राभिषेक पर नगर निगम टैक्स वसूलेगा.

इस बारे में अपर नगर आयुक्त का कहना है कि हर चीज के लिए अलग-अलग कर निर्धारित किया है. टैक्स इतना ज्यादा नहीं है. नगर निगम के मुताबिक घाट किनारे बैठने वाले तीर्थ पुरोहितों से 100 रुपये और गंगा आरती कराने वाले आयोजकों से 500 रुपये वार्षिक शुल्क वसूला जाएगा. इसके साथ ही घाटों पर सांस्कृतिक आयोजन करवाने वाली किसी भी संस्था को 4000 देने होंगे, जबकि धार्मिक आयोजन के लिए 500 रुपये और सामाजिक आयोजन के लिए 200 रुपये का शुल्क वसूला जाएगा.

हालांकि इस नए आदेश के बाद घाटों व धार्मिक आयोजनों को टैक्स के दायरे में लाने का विरोध शुरू हो गया. गंगा आरती कराने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष का कहना है कि धार्मिक आयोजनों या धर्म के काम पर कभी टैक्स लगा ही नहीं है, लेकिन नगर निगम ऐसा क्यों कर रहा है समझ से परे है. वहीं पंडा समाज के लोग भी इस फैसले से नाराज हैं, उनका कहना है 100 रुपये टैक्स कोई बहुत ज्यादा नहीं होता जो सालाना है, लेकिन कभी भी धर्म के कार्य में कोई टैक्स नहीं लगता और जब पूरा देश इस समय महामारी से जूझ रहा है. तब इस तरह की घोषणा करके टेंशन बढ़ाने वाला काम नगर निगम ने करके हमें परेशान किया है.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी आने वाला हर सैलानी गंगा घाट जरूर जाना चाहता है. सैलानियों के बल पर ही काशी के घाटों पर मौजूद पंडा और तीर्थ पुरोहितों की रोजी रोटी चलती है. इतना ही नहीं काशी में हर शाम होने वाली गंगा आरती देखने के लिए भी देश दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं. काशी के घाट पर धार्मिक आयोजन करने वालों की भीड़ भी हमेशा बनी रहती हैं, लेकिन अब काशी के धार्मिक आयोजन, पंडा समाज को अपनी धार्मिक गतिविधियों को संचालित करने को लेकर नगर निगम नई नीति के तहत सारी धार्मिक कार्यों पर टैक्स लगाने जा रहा है.

इस नए नियम के बाद नगर निगम ने तत्काल प्रभाव से यह आदेश पारित कर टैक्स लगाए जाने की घोषणा कर दी है. जिसके बाद पंडा समाज और गंगा आरती समितियां इसके विरोध में खड़ी हो गई हैं. दरअसल वाराणसी नगर निगम ने नदी किनारे रखरखाव संरक्षण एवं नियंत्रण उपविधि 2020 नियम की घोषणा करते हुए तत्काल प्रभाव से घाट किनारे होने वाले किसी भी धार्मिक आयोजन के लिए टैक्स लगाए जाने की घोषणा की है. घाटों पर पूजा-पाठ कराने वाले पुरोहित हो या गंगा आरती कराने वाले अर्चक या फिर कथा रुद्राभिषेक पर नगर निगम टैक्स वसूलेगा.

इस बारे में अपर नगर आयुक्त का कहना है कि हर चीज के लिए अलग-अलग कर निर्धारित किया है. टैक्स इतना ज्यादा नहीं है. नगर निगम के मुताबिक घाट किनारे बैठने वाले तीर्थ पुरोहितों से 100 रुपये और गंगा आरती कराने वाले आयोजकों से 500 रुपये वार्षिक शुल्क वसूला जाएगा. इसके साथ ही घाटों पर सांस्कृतिक आयोजन करवाने वाली किसी भी संस्था को 4000 देने होंगे, जबकि धार्मिक आयोजन के लिए 500 रुपये और सामाजिक आयोजन के लिए 200 रुपये का शुल्क वसूला जाएगा.

हालांकि इस नए आदेश के बाद घाटों व धार्मिक आयोजनों को टैक्स के दायरे में लाने का विरोध शुरू हो गया. गंगा आरती कराने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के अध्यक्ष का कहना है कि धार्मिक आयोजनों या धर्म के काम पर कभी टैक्स लगा ही नहीं है, लेकिन नगर निगम ऐसा क्यों कर रहा है समझ से परे है. वहीं पंडा समाज के लोग भी इस फैसले से नाराज हैं, उनका कहना है 100 रुपये टैक्स कोई बहुत ज्यादा नहीं होता जो सालाना है, लेकिन कभी भी धर्म के कार्य में कोई टैक्स नहीं लगता और जब पूरा देश इस समय महामारी से जूझ रहा है. तब इस तरह की घोषणा करके टेंशन बढ़ाने वाला काम नगर निगम ने करके हमें परेशान किया है.

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