वाराणसीः जिले में स्थित सेवापुरी सब्जी अनुसंधान संस्थान सहंशापुर में कृषि वैज्ञानिकों ने तकनीक के सहारे ऐसी उपलब्धि हासिल की है जो स्वाद के साथ ही सेहत का भी ख्याल रखेंगी. यहां के वैज्ञानिकों ने तीन नई किस्म के तरबूज का ईजाद किया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान शहंशाहपुर वाराणसी में तरबूज की लाल नारंगी एवं पीले रंग की तीन नई किस्में विकास के अंतिम चरण में है. ये तरबूज मिठास के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर होंगी. इससे सेहत तो आम लोगों की बेहतर होगी ही साथ ही पूर्वांचल के किसानों की आर्थिक स्थिति में भी व्यापक सुधार होगा वहीं उनकी आय दुगुनी होगी.
वाराणसी जनपद के शहंशाहपुर सब्जी अनुसंधान संस्थान केंद्र लगभग डेढ़ सौ एकड़ में फैला हुआ है. इसमें विभिन्न प्रकार के सब्जियों और फलों का शोध कर नई किस्म के प्रजाति के बीज का इजाद किया जाता है. उल्लेखनीय है कि मानव स्वास्थ्य एवं पोषण सुरक्षा में गुणवत्ता युक्त सब्जियों और फलों का अहम योगदान है. विभिन्न सब्जियों में पाए जाने वाले पादप रसायन भिन्न-भिन्न रंगों से सम्बंधित हैं. ये मानव प्रतिरक्षा तंत्र में ए पादप रसायन अहम भूमिका निभाते हैं. तरबूज खनिजों का प्रमुख स्रोत माना जाता है और यदि इसके गुदो के रंग के अनुसार पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाए तो इसकी अहमियत और बढ़ जाती है.
छह साल के शोध के बाद मिली सफलता
वैज्ञानिक डॉक्टर केशव कांत के अनुसार तरबूज की लाल, नारंगी एवं पीले रंग की नई किस्मों के गहन शोध के बाद इस प्रकार की किस्मों को वैज्ञानिकों ने विकसित करने में सफलता लगभग 6 साल में हासिल की है. इसके साथ ही इन तरबूजों को वर्ष में तीन बार उगाकर वातावरण की अनुकूलता का भी अध्ययन किया जा चुका है.
तरबूजों की प्रजाति और इनके फायदे
1-वी आर डब्ल्यू 514 (VRW-514) ये प्रथम किस्म प्रजाति के तरबूज लाल रंग के होते हैं. इसका छिलका गहरा हरा एवं उसका गुदा अत्यधिक लाल रंग का है जो कि लाइकोपीन नामक पादप रसायन की अधिकता के कारण होता है इसी किस्म में 14- 15 डिग्री ब्रिक्स की मिठास होता है. इसका वजन 2 - 3 किलो ग्राम तथा तथा इस किस्म के तरबूज के गुदे बीज काफी कम होते हैं. यह छोटे परिवार के उपयोग के ध्यान में रखकर विकसित की गई प्रजाति है. इस किस्म की प्रजाति 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं.
2- वीआरडब्ल्यू -10 (VRW-10) ये दूसरी किस्म प्रजाति के तरबूज नारंगी रंग के होते हैं. ये तरबूज की दूसरी किस्म की प्रजाति है जिसका छिलका हरा होता है और गुदा नारंगी रंग का होता है. इस किस्म के प्रजाति में नर और मादा जननांग एक ही पुष्प में आते हैं, जिससे अन्य किस्मों की तुलना में फल लगने में काफी आसानी होती है. इसमें बीटा कैरोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो एक एंटी ऑक्सीडेंट है और कैंसर जैसी बीमारी एवं आँख के रोगों के लिए काफी लाभदायक है. इस प्रजाति में विटामिन ए काफी मात्रा में पाई जाती है.
3-वीआरडब्ल्यू 14 -1 (VRW-14- 1) ये तीसरी किस्म प्रजाति के तरबूज पीले रंग के होते हैं. इसकी पौधों की पतियों की धारिया पीले रंग की होती है और बाहरी छिलका एवं गुदा भी पीले रंग का होता है. इसमें ल्यूटी - जेथिन और वायोला- जेथिन नामक कैरोटीनोइड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो शरीर के अंदर प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में सहायक होती हैं
बरसात के बाद मिलेगा जायका
ये किस्में में बरसात के मौसम में भी अधिक उपज देती है. बरसात में तरबूज की खेती के लिए 1 से 15 अगस्त के बीच में इसकी बुवाई प्रो-ट्रे में कर लेनी चाहिए. पौधों को नियमित पानी देकर एवं कीटों से बचाकर लगभग 25 से 30 दिनो बाद खेत में नाली किनारे रोपाई कर देनी चाहिए. खेत को तैयार करने के दौरान जल निकासी का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि जल भराव की दशा में फसल के नष्ट होने का खतरा बना रहता है. पीले एवं नारंगी तरबूज में लाल तरबूज की अपेक्षा विटामिन ए और सी अधिक होता है. तरबूज पर शोध कर रहे वैज्ञानिक डॉ. केशव कांत गौतम के अनुसार विभिन्न रंगों के तरबूज पर शोध करने का मुख्य उद्देश्य यही था कि उपभोक्ताओं की थाली को पोषण के विभिन्न प्राकृतिक रंगों से भर दिया जाए ताकि प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने वाले फाइटो - केमिकल्स की उपलब्धता कम से कम स्रोतों से हो जाये.
विभिन्न रंगों के तरबूज में खनिज तत्वों की भरपूर मात्रा
वाराणासी सहंशापुर सब्जी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर जगदीश सिंह के अनुसार विभिन्न रंगों के तरबूज के उपयोग शरीर की खनिज तत्वों के आवश्यकताओं की पूर्ति होने के साथ ही इसमें पाए जाने वाले विभिन्न कैरोटिनायड्स मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होंगे. इसके साथ ही तरबूज की बेमौसमी खेती से किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी होगी. उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि बरसात में तरबूज की फसल लेने के लिए मल्च अनिवार्य रूप से प्रयोग करें. मल्च से फलों को सड़ने से बचाया जा सकता है. मल्च के उपयोग से कीट नियंत्रण खरपतवार नियंत्रण जल संरक्षण जल निकासी इत्यादि आसानी से हो जाता है. तरबूज की पीले रंग एवं नारंगी रंग की किस्में अपने आप में विशिष्ट हैं जिनका पंजीकरण भी होगा.