वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले को लेकर लगातार सरगर्मी बनी हुई है. एक तरफ जहां पूरे मामले को न्यास परिषद की बैठक में उठाने की तैयारी की गई है तो वही साधु-संत एकजुट होकर ज्ञानवापी में वजू खाने में मिले शिवलिंग पर जलाभिषेक करने को लेकर यहां पहुंचने की तैयारी में हैं. इन सबके बीच ईटीवी भारत ने वाराणसी में मुस्लिम धर्मगुरु और शाही इमाम व मुफ्ती ए बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी से खास बातचीत की. उन्होंने सभी मुद्दों पर खुलकर अपनी बातें रखीं और इस पूरे मामले को राजनीति से प्रेरित बताया. उनका साफ तौर पर कहना था कि वहां पर मस्जिद थी और जो वजू खाने में मिला पत्थर है वह शिवलिंग नहीं स्पष्ट तौर पर फव्वारा ही है.
ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत करते हुए मुफ्ती ए बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि यह 2024 की तैयारियां हैं, मैं तो इससे अलग कुछ नहीं मानता हूं. बनारस ही नहीं पूरे मुल्क में क्या-क्या चल रहा है, आप देख सकते हैं. यह सब उसी का एक हिस्सा मैं समझता हूं. नफरत की जो राजनीति इस समय चल रही है उसी से प्रभावित होकर यह सारे प्लान बनाए जा रहे हैं, उसके अलावा यह सब कुछ नहीं है.
अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि जहां तक उस हिस्से की बात है जिसको उन लोगों ने शिवलिंग बतलाया और हम फव्वारा कह रहे हैं हकीकत यही है कि वह फव्वारा ही है. इस तरीके का फव्वारा चाहे जितनी मस्जिदें हैं, पुरानी उन जगहों पर आपको मिलेगा. बनारस में 3 मस्जिदें हैं शाही, ये तीनों मस्जिदें औरंगजेब की बनवाई हुई थीं. उन तीनों जगहों में यह फव्वारा आपको मिलेगा. इसके अलावा बनारस के अलावा आप और अन्य जगहों पर चले जाइए जहां पर वजू करने के लिए हौद बनाया जाता था और पानी को चलता फिरता बनाए रखने के लिए फव्वारे की जरूरत पड़ती थी. पानी जमे नहीं इसलिए फव्वारा बनाया जाता था और बकायदा आज की डेट में ऐसे लोग जिंदा हैं जो इस बात को खुलकर कह रहे हैं कि हमने उसको चलते हुए देखा है. यह तो उसमें कोई शक है ही नहीं जहां तक आपने यह बात कही कि मामला कोर्ट में चल रहा है.
वहीं, कमीशन की कार्यवाही के वीडियो वायरल होने को लेकर उन्होंने कहा कि वीडियो वायरल हुआ है यह ताज्जुब की बात है. कोर्ट को इस पर एक्शन लेना चाहिए. इस तरीके की हरकत क्यों हुई और जो भी लोग इसमें शामिल हैं. कोर्ट को उनको तलब करके उनके खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए. यह बहुत ही अफसोस नाक और हैरतअंगेज तरीके से हुआ है. हम इसकी निंदा करते हैं और बिल्कुल गलत काम हुआ है यह.
वहीं, नोमानी ने कहा कि सिर्फ बनारस की यह मस्जिद नहीं बाकी कई मस्जिदों और कई जगहों को लेकर भी मेरे कान में बहुत सी चीजें सुनने में आ रही हैं. मैंने शुरू में कहा था कि यह सुनियोजित तरीके से यह प्लान बनाया जा रहा है. यह सब उसी प्रोग्राम का एक हिस्सा है. यह सब ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है. हमें इस बात की खुशी है. इस तरह का माहौल बनाने वाले मुट्ठी भर लोग हैं और बहुसंख्यक जो हैं वह शांतिप्रिय तरीके से ऐसी चीजों को पसंद नहीं करते. यह ज्यादा दिन चलेगा नहीं.
अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा मैंने उस फव्वारे को चलते हुए नहीं देखा है, लेकिन उस फव्वारे के बीच में जो पाइप होता है, मैंने उसको देखा है. उनका कहना था कि जो वीडियो लीक हुए हैं. मैं यह कोर्ट से गुजारिश करता हूं कि ऐसी हरकत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए जो इंसाफ के मुताबिक फैसला है, वह कोर्ट को देना चाहिए.
वही स्वामी निश्चलानंद सरस्वती की तरफ से मुस्लिम समुदाय को लेकर दिए गए बयान पर अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि मैं यही बात पलट कर उनसे कहना चाहता हूं जो आपके पूर्वजों ने गलतियां की थी वह आप सुधार लीजिए. बहुत से बुद्ध मंदिर हैं जिनको तोड़कर मंदिर बनाए गए. आज भी हिंदुस्तान में बहुत सारे ऐसे धर्मस्थल और मस्जिद हैं उनका ढांचा तो मस्जिद का है लेकिन उसको मंदिर की शक्ल दी जा रही है. मैं पूछता हूं क्या वह सब हवाले करेंगे और क्या वह गलती को स्वीकार करेंगे. अगर वह करते हैं तो हम भी इस पर गौर करेंगे.
राजनैतिक बयानबाजी पर उनका कहना था कि मेरी नसीहत यही है. हमेशा से जिस मजहब के लोग हो मुस्लिम हो या हिंदू जब से यह माहौल चला है बहुत से लोग इसमें कूदने की कोशिश कर रहे हैं. अपने आप को हीरो बनाने के लिए, कोई अपने आपको इतिहासकार बता रहा है, कोई कुछ बता रहा है, बयानबाजी की वजह से अलग माहौल पैदा हो रहा है. मैं उन सभी लोगों से गुजारिश करता हूं मामला कोर्ट में है और कोर्ट अपना काम कर रही है, जब तक कोर्ट कार्यवाही कर रही है, किसी को भी किसी तरीके की बयानबाजी और एक्टिविटी से बचना चाहिए ताकि किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे.
वहीं, 1936 में अंग्रेजों के आदेश पर उनका साफ तौर पर कहना था कि ऐसी बात मैं पहली बार सुन रहा हूं कि नॉन मुस्लिम को हवाले करने की बात कही गई थी. सन् 1937 का हाईकोर्ट का फैसला है, नीचे से ऊपर तक सुन्नी वक्फ करार दिया है. आसपास की जमीन को मस्जिद की मिल्कीयत बताया गया है इसलिए उनके हवाले करने की बात गलत है.
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