वाराणसीः भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की तपोभूमि काशी हिंदू विश्वविद्यालय का योगदान देश की आजादी से लेकर अब तक के विकास कार्यों में रहा है. ऐसे में हम बात करें विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति जब देश के दूसरे राष्ट्रपति बने थे. यह उपलब्धि विश्वविद्यालय की गरिमा को और भी बढ़ा देती है. आजादी से पहले शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर बीएचयू की महत्वता जगजाहिर है. इसके स्थापना व संचालन के दायित्व के साथ पंडित मदन मोहन मालवीय जी के गिरते स्वास्थ्य के बीच डॉक्टर सर्वपल्ली ने विश्वविद्यालय की कमान बतौर कुलपति 1939 से लेकर 1948 तक संभाला.
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विश्वविद्यालय में मालवीय भवन में ऐसे बहुत से चित्र हैं. जिसमें मालवीय जी के साथ डॉक्टर सर्वपल्ली उनके साथ दिखते हैं. इन चित्रों को सजोकर और आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन के रूप में मालवीय भवन में रखा गया है. उसके साथ ही बहुत से दस्तावेज भारत कला भवन में भी संजोकर रखा गया है. मालवीय भवन में ऐसी भी चित्र हैं जब कार्यक्रमों में डॉक्टर कृष्णन विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
मालवीय जी के आग्रह पर डॉ. कृष्णन ने विश्वविद्यालय की कमान संभाली और स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर देश की आजादी में शिक्षक छात्र का नेतृत्व किया. राधाकृष्णन जी जब तक कुलपति रहे उन्होंने वेतन लेने से इंकार कर दिया और इस वेतन को विश्वविद्यालय के विकास निर्माण के लिए लगा दिया.
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काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र बताते हैं. विश्वविद्यालय के निर्माण के समय से ही डॉक्टर सर्वपल्ली मालवीय जी की मदद करते थे. उसके साथ ही जब मालवीय जी का स्वास्थ्य लगातार गिरने लगा तो उन्होंने विश्वविद्यालय के संचालन के लिए सोचा कि मेरे बाद कौन कौन विश्वविद्यालय को आगे ले जाएगा. ऐसे में मालवीय जी के सामने बस एक ही नाम था और वह था सर्वपल्ली राधाकृष्णन. सर्वपल्ली जी उन दिनों हिंदू शास्त्र के हिंदू धर्म के बहुत बड़े परिवर्तक थे.
मालवीय जी ने राधाकृष्णन को पत्र लिखा और कहा कि आप आइए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की परंपरा को आगे बढ़ाइये परंतु राधाकृष्णन तैयार नहीं हुई. उन्होंने इनकार कर दिया फिर मालवीय जी ने दोबारा उनको पत्र लिखकर अनुरोध किया तो वह खुद को रोक नहीं पाए. इसी तरह 24 सितंबर 1939 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति के रूप में पड़ ग्रहण किया.