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काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का महाव्रत 24 नवंबर से, जानिए मान्यता और स्तुति के बारे में...

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है. इस महाव्रत का समापन नौ दिसंबर को होगा. चलिए जानते हैं इस बारे में...

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
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Published : Nov 22, 2021, 5:13 PM IST

वाराणसी: माता अन्नपूर्णा का आशीष पाने के लिए 17 दिवसीय महाव्रत अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि यानी 24 नवंबर से शुरू होगा. इस महाव्रत का समापन 17वें दिन अगहन माह के शुक्ल पक्ष 9 दिसंबर दिन शुक्रवार को होगा.

यह व्रत 17 वर्ष, 17 महीने, 17 दिन का होता है. परंपरा के अनुसार इस व्रत के प्रथम दिन प्रातः मंदिर के महंत स्वयं अपने हाथों से 17 गांठ के धागे भक्तों को देते हैं. कहते हैं कि माता अन्नपूर्णा का यह महाव्रत करने वाले जातक को कभी धन-धान्य और सौभाग्य की कमी नहीं रहती.


माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में भक्त 17 गांठ वाला धागा धारण करते हैं. इसमें महिलाएं बाएं व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं. इसमें अन्न का सेवन वर्जित होता है. केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है, वह भी बिना नमक का.

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.

17 दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान का उद्यापन 9 दिसम्बर को होगा. उसी दिन धान की बालियों से मां अन्नपूर्णा के गर्भ गृह समेत मंदिर परिसर को सजाया जाएगा. प्रसाद स्वरूप ही धान की बाली भक्तों को मिलेंगी.

ये भी पढ़ेंः जेपी नड्डा बोले-जिन्ना और पाकिस्तान की बात करने वालों को घर बैठाने का काम करें बूथ अध्यक्ष...

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.

पहली फसल अर्पित करते हैं किसान
मान्यता है की पूर्वांचल के किसान अपनी फसल की पहली धान की बाली मां को अर्पित करते है और उसी बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं. वे मानते हैं कि इससे फसल में बढ़ोत्तरी होती है. महंत शंकर पूरी बताते हैं कि माता अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है.

ये है धार्मिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार काशी नगरी में अकाल पड़ा था. तब माता पार्वती ने श्री अन्नपूर्णा के रूप में काशी नरेश भगवान विश्वनाथ को भिक्षा दी थी. तब मां ने यह भी आशीष दिया था कि जिस भी घर में उनका पूजन और व्रत होगा वहां हमेशा धन-धान्य रहेगा. इसी मान्यता के चलते इस महाव्रत को किया जा रहा है.

माता अन्नपूर्णेश्वरी की स्तुति

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥

नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥

कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥

दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥

उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥

आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥

देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥

चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥

क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
- श्री शङ्कराचार्य कृतं

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वाराणसी: माता अन्नपूर्णा का आशीष पाने के लिए 17 दिवसीय महाव्रत अगहन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि यानी 24 नवंबर से शुरू होगा. इस महाव्रत का समापन 17वें दिन अगहन माह के शुक्ल पक्ष 9 दिसंबर दिन शुक्रवार को होगा.

यह व्रत 17 वर्ष, 17 महीने, 17 दिन का होता है. परंपरा के अनुसार इस व्रत के प्रथम दिन प्रातः मंदिर के महंत स्वयं अपने हाथों से 17 गांठ के धागे भक्तों को देते हैं. कहते हैं कि माता अन्नपूर्णा का यह महाव्रत करने वाले जातक को कभी धन-धान्य और सौभाग्य की कमी नहीं रहती.


माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में भक्त 17 गांठ वाला धागा धारण करते हैं. इसमें महिलाएं बाएं व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं. इसमें अन्न का सेवन वर्जित होता है. केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है, वह भी बिना नमक का.

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.

17 दिन तक चलने वाले इस अनुष्ठान का उद्यापन 9 दिसम्बर को होगा. उसी दिन धान की बालियों से मां अन्नपूर्णा के गर्भ गृह समेत मंदिर परिसर को सजाया जाएगा. प्रसाद स्वरूप ही धान की बाली भक्तों को मिलेंगी.

ये भी पढ़ेंः जेपी नड्डा बोले-जिन्ना और पाकिस्तान की बात करने वालों को घर बैठाने का काम करें बूथ अध्यक्ष...

काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.
काशीपुराधीश्वरी माता अन्नपूर्णेश्वरी का 17 दिवसीय महाव्रत 24 नवंबर से शुरू हो रहा है.

पहली फसल अर्पित करते हैं किसान
मान्यता है की पूर्वांचल के किसान अपनी फसल की पहली धान की बाली मां को अर्पित करते है और उसी बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं. वे मानते हैं कि इससे फसल में बढ़ोत्तरी होती है. महंत शंकर पूरी बताते हैं कि माता अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन दैविक, भौतिक सुख प्रदान करता है.

ये है धार्मिक मान्यता

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार काशी नगरी में अकाल पड़ा था. तब माता पार्वती ने श्री अन्नपूर्णा के रूप में काशी नरेश भगवान विश्वनाथ को भिक्षा दी थी. तब मां ने यह भी आशीष दिया था कि जिस भी घर में उनका पूजन और व्रत होगा वहां हमेशा धन-धान्य रहेगा. इसी मान्यता के चलते इस महाव्रत को किया जा रहा है.

माता अन्नपूर्णेश्वरी की स्तुति

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥

नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥

कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥

दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥

उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥

आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥

देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥

चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥

क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
- श्री शङ्कराचार्य कृतं

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