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Navratra 2019: महासप्तमी के दिन ऐसे करें मां कालरात्रि की पूजा, भय और बाधाओं का होता है नाश

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Published : Oct 5, 2019, 9:29 AM IST

नवरात्र के सातवें दिन महासप्‍तमी होती है. इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्‍वरूप कालरात्रि की पूजा का विधान है. शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्‍टों का संहार करने वाला है. मान्यता है कि मां काली के दर्शन मात्र से भय और बाधाओं का नाश होता है.

मां कालरात्रि की पूजा से दूर होता है भय.

वाराणसी: आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. नौ दिन की पूजा-पाठ के क्रम में आज देवी के सातवें स्वरूप यानी माता कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है. माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र रूप से भरा हुआ है. आज की रात को महानिशा पूजन के लिए भी जाना जाता है. महानिशा पूजा यानी रात्रि में सिद्धियां प्राप्ति करने के लिए किया जाने वाला पूजन.

राक्षसों के वध के लिए मां कालरात्रि का स्वरूप हुआ था उत्पन्न
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता कालरात्रि का सातवें दिन दर्शन-पूजन करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. सातवें दिन महासप्तमी होती है. मार्कंडेय पुराण के मुताबिक माता के स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था. देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है. चंड-मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा कहा जाता है.

मां कालरात्रि की पूजा से दूर होता है भय.

रात के समय करें मां काली का पूजन
पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि कालरात्रि के सातवें स्वरूप के साथ इस दिन का भी नवरात्र में विशेष महत्व है. क्योंकि रात्रि तीन प्रकार की होती है. महारात्रि जिसे शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. मोह रात्रि जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है और कालरात्रि जिसे महाकाली की रात्रि के रूप में जाना जाता है. यह रात्रि तंत्र साधना के साथ ही समस्त सिद्धियों को प्राप्त करने की सबसे बड़ी रात्रि होती है. इसलिए मां काली का पूजन रात्रि के वक्त में किया जाना सबसे उत्तम बताया गया है.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी: नवरात्र के छठवें दिन करें देवी कात्यायनी की पूजा, अविवाहित कन्याओं को मिलेगा मनचाहा वर

मां के रौद्र रूप के दर्शन से दूर होता है भय
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि महाकाली का स्वरूप बहुत ही रौद्र है. विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है. अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में कटी हुई राक्षस की मुंडी, हाथ में अस्त्र-शस्त्र लिए. मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है. माता का वाहन गधा है. माता काली को लाल रंग बेहद पसंद है. उन्हें पान का भोग लगाना चाहिए. क्योंकि माता काली को पान खाना बेहद पसंद है. पान चढ़ाने मात्र से जीवन की सारी कठिनाइयां दूर होती हैं और मुरादें भी पूरी होती हैं.


इन मंत्र से करें आरधना
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।


अन्य मंत्र
एकवेणीजपाकर्णपुरानना खरास्थिता ।
लम्बोष्टिकर्णीका कर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धमामूर्धजा कृष्णा कालरात्रिर्भयडकरी ।।

वाराणसी: आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. नौ दिन की पूजा-पाठ के क्रम में आज देवी के सातवें स्वरूप यानी माता कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है. माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र रूप से भरा हुआ है. आज की रात को महानिशा पूजन के लिए भी जाना जाता है. महानिशा पूजा यानी रात्रि में सिद्धियां प्राप्ति करने के लिए किया जाने वाला पूजन.

राक्षसों के वध के लिए मां कालरात्रि का स्वरूप हुआ था उत्पन्न
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता कालरात्रि का सातवें दिन दर्शन-पूजन करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. सातवें दिन महासप्तमी होती है. मार्कंडेय पुराण के मुताबिक माता के स्वरूप को चंड-मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था. देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है. चंड-मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा कहा जाता है.

मां कालरात्रि की पूजा से दूर होता है भय.

रात के समय करें मां काली का पूजन
पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि कालरात्रि के सातवें स्वरूप के साथ इस दिन का भी नवरात्र में विशेष महत्व है. क्योंकि रात्रि तीन प्रकार की होती है. महारात्रि जिसे शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. मोह रात्रि जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है और कालरात्रि जिसे महाकाली की रात्रि के रूप में जाना जाता है. यह रात्रि तंत्र साधना के साथ ही समस्त सिद्धियों को प्राप्त करने की सबसे बड़ी रात्रि होती है. इसलिए मां काली का पूजन रात्रि के वक्त में किया जाना सबसे उत्तम बताया गया है.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी: नवरात्र के छठवें दिन करें देवी कात्यायनी की पूजा, अविवाहित कन्याओं को मिलेगा मनचाहा वर

मां के रौद्र रूप के दर्शन से दूर होता है भय
पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि महाकाली का स्वरूप बहुत ही रौद्र है. विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है. अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडों की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में कटी हुई राक्षस की मुंडी, हाथ में अस्त्र-शस्त्र लिए. मान्यता है कि मां कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय, डर और बाधाओं का नाश होता है. माता का वाहन गधा है. माता काली को लाल रंग बेहद पसंद है. उन्हें पान का भोग लगाना चाहिए. क्योंकि माता काली को पान खाना बेहद पसंद है. पान चढ़ाने मात्र से जीवन की सारी कठिनाइयां दूर होती हैं और मुरादें भी पूरी होती हैं.


इन मंत्र से करें आरधना
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ।।


अन्य मंत्र
एकवेणीजपाकर्णपुरानना खरास्थिता ।
लम्बोष्टिकर्णीका कर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धमामूर्धजा कृष्णा कालरात्रिर्भयडकरी ।।

Intro:वाराणसी: आज शारदीय नवरात्र का सातवां दिन है. 9 दिन की पूजा पाठ के क्रम में आज देवी के सातवें स्वरूप यानी माता कालरात्रि के दर्शन पूजन का विधान है. माता कालरात्रि का दर्शन करने मात्र से समस्त भय और बाधाओं का नाश होता है. माता कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और रौद्र रूप से भरा हुआ है. आज की रात्रि को महानिशा पूजन के लिए भी जाना जाता है महानिशा पूजा यानी रात्रि में सिद्धियां प्राप्ति करने के लिए किया जाने वाला पूजन. माता दुर्गा के क्रोध से उत्पन्न हुए माता काली कैसे करें पूजन, किन मंत्रों से करें मां को खुश जानिए आप.


Body:वीओ-01 इस बारे में पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता कालरात्रि का सातवें दिन दर्शन पूजन करने का विधान शास्त्रों में बताया जाए मार्कंडेय पुराण के मुताबिक माता के स्वरूप को चंड मुंड और रक्तबीज सहित अनेकों राक्षसों का वध करने के लिए उत्पन्न किया गया था. देवी को कालरात्रि और काली के साथ चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है. चंड मुंड के संघार की वजह से मां के इस रूप को चामुंडा कहा जाता है. उनका कहना है कि कालरात्रि के सातवें स्वरूप के साथ इस दिन का भी नवरात्रि में विशेष महत्व है क्योंकि रात्रि या तीन प्रकार की होती हैं महारात्रि जिसे शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. मोह रात्रि जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है और कालरात्रि जिसे महाकाली की रात्रि के रूप में जाना जाता है. यह रात्रि तंत्र साधना के साथ ही समस्त सिद्धियों को प्राप्त करने की सबसे बड़ी रात्रि होती है. इसलिए मां काली का पूजन रात्रि के वक्त में किया जाना सबसे उत्तम बताया गया है.


Conclusion:वीओ-02 पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि महाकाली का स्वरूप बहुत ही रौद्र है विकराल रूप में महाकाली की जीभ बाहर है, अंधेरे की तरह काला रंग, बाल खुले हुए गले में मुंडो की माला एक हाथ में खून से भरा हुआ पात्र, दूसरे में कटी हुई राक्षस की मुंडी हाथ में अस्त्र-शस्त्र लिए माता काली के स्वरूप के दर्शन से सभी भय और डर का नाश होता है. माता का वाहन गधा है. माता काली को लाल रंग के कुछ बेहद पसंद है और उन्हें पान भोग लगाया जाना चाहिए, क्योंकि माता काली को पान खाना बेहद पसंद है पान चढ़ाने मात्र से जीवन की सारी कठिनाइयां दूर होती है की मुराद भी पूरी होती है.

इन मंत्र से करें आरधना

जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

अन्य मंत्र
एकवेणीजपाकर्णपुरानना खरास्थिता।
लम्बोष्टिकर्णीका कर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धमामूर्धजा कृष्णा कालरात्रिर्भयडक़री।।
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