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काशी के निर्मित पंडालों में बंगाली विधि-विधान से हो रही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना

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Published : Oct 7, 2019, 7:27 PM IST

यूपी के मिनी बंगाल कहे जाने वाले काशी में निर्मित पंडालों में बंगाली विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जा रही है. वहीं पंडालों में मां की होने वाली आरती भी विशेष प्रकार से की जा रही है, जो अपने आप में अनोखी है. इस दौरान मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से आ रहे भक्तों का तांता लगा हुआ है.

बंगाली पंचांग और बंगाली रीति-रिवाज से होती है मां की पूजा

वाराणसी: अगर आप किन्ही कारणों से कोलकाता की दुर्गा पूजा नहीं देख पाए तो आपको बिल्कुल भी मायूस होने की जरूरत नहीं है क्योंकि धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को ऐसे ही नहीं मिनी बंगाल कहा जाता है. काशी में वैसे तो एक दो नहीं बल्कि 300 से ज्यादा पंडाल में आदि शक्ति का पूजन पूरे विधि विधान से 3 दिनों तक किया जा रहा है, लेकिन वहीं जिले में कुछ ऐसे भी पंडाल हैं, जहां पर मां आदिशक्ति की पूजा बांग्ला विधि से की जा रही है.

काशी में बंगाली रीति-रिवाज से हो रही है मां की पूजा.

पढ़ें: वाराणसी में है महिषासुर मर्दिनी का अद्भुत मंदिर, दिन में तीन बार बदलता है मां का स्वरूप

बंगाली पंचांग और रीति-रिवाज से होती है मां की पूजा
जिले का भेलूपुर जिम स्पोर्टिंग क्लब इस बार अपना गोल्डन जुबली मना रहा है, यहां मां जगत जननी की स्थापना से लेकर मां के विदाई तक का सारा धार्मिक अनुष्ठान बंगाली पंचांग और बंगाली रिवाज से होता है. मां की विशेष आरती और विशेष पूजा उसी तरह की जाती है, जिस तरह कोलकाता में मां की पूजा का अनुष्ठान किया जाता है. खास बात यह है कि महिलाएं विदाई, सिंदूर खेला आदि विभिन्न कार्यक्रमों को यहां पर करती है. दरअसल मां की विदाई के समय सिंदूर खेला केवल कोलकाता में ही होता है.

नवरात्र के खास दिन में बनारस के कोने-कोने से लोग इस बंगाली विधि से मां के पूजन पाठ और मां का दर्शन करने के लिए आते हैं. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण भी बांग्ला भाषा में ही किया जाता हैं. साथ ही मां का सारे अनुष्ठान के क्रम कोलकाता की तर्ज पर ही होते हैं.

आयोजक मंडल के सदस्य देवोन्दो मुखर्जी ने बताया कि
हम बंगाली लोग हैं और हम लोग पिछले 50 वर्षों से मां की प्रतिमा का पूजन करते हैं. ऐसे में हम बांग्ला पंचांग सेमा की स्थापना से लेकर विदाई तक के कार्यक्रम करते हैं. मां की विदाई से लेकर स्थापना तक के कार्यक्रम हम कोलकाता की तर्ज पर करते हैं. इस दौरान वाराणसी के सारे बंगाली समाज के लोग मां के दर्शन के लिए पंडाल में आते हैं.

वाराणसी: अगर आप किन्ही कारणों से कोलकाता की दुर्गा पूजा नहीं देख पाए तो आपको बिल्कुल भी मायूस होने की जरूरत नहीं है क्योंकि धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को ऐसे ही नहीं मिनी बंगाल कहा जाता है. काशी में वैसे तो एक दो नहीं बल्कि 300 से ज्यादा पंडाल में आदि शक्ति का पूजन पूरे विधि विधान से 3 दिनों तक किया जा रहा है, लेकिन वहीं जिले में कुछ ऐसे भी पंडाल हैं, जहां पर मां आदिशक्ति की पूजा बांग्ला विधि से की जा रही है.

काशी में बंगाली रीति-रिवाज से हो रही है मां की पूजा.

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बंगाली पंचांग और रीति-रिवाज से होती है मां की पूजा
जिले का भेलूपुर जिम स्पोर्टिंग क्लब इस बार अपना गोल्डन जुबली मना रहा है, यहां मां जगत जननी की स्थापना से लेकर मां के विदाई तक का सारा धार्मिक अनुष्ठान बंगाली पंचांग और बंगाली रिवाज से होता है. मां की विशेष आरती और विशेष पूजा उसी तरह की जाती है, जिस तरह कोलकाता में मां की पूजा का अनुष्ठान किया जाता है. खास बात यह है कि महिलाएं विदाई, सिंदूर खेला आदि विभिन्न कार्यक्रमों को यहां पर करती है. दरअसल मां की विदाई के समय सिंदूर खेला केवल कोलकाता में ही होता है.

नवरात्र के खास दिन में बनारस के कोने-कोने से लोग इस बंगाली विधि से मां के पूजन पाठ और मां का दर्शन करने के लिए आते हैं. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण भी बांग्ला भाषा में ही किया जाता हैं. साथ ही मां का सारे अनुष्ठान के क्रम कोलकाता की तर्ज पर ही होते हैं.

आयोजक मंडल के सदस्य देवोन्दो मुखर्जी ने बताया कि
हम बंगाली लोग हैं और हम लोग पिछले 50 वर्षों से मां की प्रतिमा का पूजन करते हैं. ऐसे में हम बांग्ला पंचांग सेमा की स्थापना से लेकर विदाई तक के कार्यक्रम करते हैं. मां की विदाई से लेकर स्थापना तक के कार्यक्रम हम कोलकाता की तर्ज पर करते हैं. इस दौरान वाराणसी के सारे बंगाली समाज के लोग मां के दर्शन के लिए पंडाल में आते हैं.

Intro:अगर आप किन्ही कारणों से कोलकाता की दुर्गा पूजा नहीं देख पाए तो आपको मायूस होने की जरूरत नहीं है क्योंकि धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को ऐसे ही नहीं मिनी बंगाल कहा जाता है काशी में वैसे तो एक दो नहीं बल्कि 300 से ज्यादा पंडाल में आदि शक्ति का पूजन पूरे विधि विधान से 3 दिनों तक किया जा रहा है। लेकिन बनारस में कुछ ऐसे पंडाल हैं जहां पर मां आदिशक्ति का पूजा बांग्ला विधि से मां का अनुष्ठान किया जाता है मां की आरती भी विशेष प्रकार से किया जाता है जो अपने आप में अनोखी है।


Body:वाराणसी के भेलूपुर जिम स्पोर्टिंग क्लब इस बार अपना गोल्डन जुबली मना रहा है यहां मां जगत जननी की स्थापना से लेकर मां के विदाई तक का सारा धार्मिक अनुष्ठान बंगाली पंचांग और बंगाली रिवाज से होता है। मां की विशेष आरती और विशेष पूजा उसी तरह की जाती है जिस तरह कोलकाता में मां का पूजन और वर्णन किया जाता है खास बात यह है कि महिलाएं भी अपने विभिन्न कार्यक्रमों को यहां पर करती है जैसे विदाई सिंदूर खेला क्योंकि मां के विदाई के समय सिंदूर खेला केवल कोलकाता में होता है। नवरात्रि की खास दिन में बनारस के कोने-कोने से लोग इस बंगाली विधि से मां के पूजन पाठ और मां का दर्शन करने के लिए आते हैं।जो उनके मंत्रों का उच्चारण होते हैं वह भी बांग्ला भाषा में होते हैं मां का सारे अनुष्ठान के क्रम कोलकाता के तर्ज पर होता है।


Conclusion:देवोन्दो मुखर्जी ने बताया हम बंगाली लोग हैं और हम लोग पिछले 50 वर्षों से मां की प्रतिमा का पूजन करते हैं ऐसे में हम बांग्ला पंचांग सेमा की स्थापना से लेकर विदाई तक के कार्यक्रम करते हैं हमारा जो भी विधि-विधान होता है वह बिल्कुल उसी तरह होता है जैसे कोलकाता में होता है मां की विदाई से लेकर मां की स्थापना तक के कार्यक्रम हम कोलकाता के तर्ज पर करते हैं। बनारस के सारे बंगाली समाज के लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं।

बाईट :--- देवोन्दो मुखर्जी, सदस्य आयोजक मंडल

आशुतोष उपाध्याय

9005099684
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