वाराणसी: जिले के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में श्रीमद्भागवत के पंच प्राणस्वरुप रासपंचाध्यायी पर व्याख्यान आयोजित किया गया. कार्यक्रम में आचार्य पराशर महाराज ने कहा कि भगवान शब्द से ही महारासलीला का शुभारंभ हुआ. भगवान शब्द का मतलब है जो ऐश्वर्य से समर्थ हो, जो षडेश्वर से संपन्न हो, जिसमें छह भाग पूर्णत:विराजमान हो वह षडेश्वर भगवान हैं.
उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण जी केवल योगी नहीं हैं और न ही योगेश्वर हैं, बल्कि योगेश्वरेश्वर हैं. इसलिए जहां-जहां रासलीला में श्रीकृष्ण की चर्चा हुई है वहां पर योगेश्वरेश्वर स्वरुप ही कहा गया है. ऐसे स्वरुप को ही भगवान श्रीकृष्ण का समझना चाहिए. आचार्य श्यामसुन्दर ने कहा कि राधा का मतलब जो सबकी आधार हैं. जैसे कि हम सबकी आधार धरा है, धरा का आधार जल है, जल का आधार अग्नि है, अग्नि का आधार वायु है और वायु का आधार आकाश है. इस तरह से किसी न किसी पर सभी कुछ आधारित है.
आचार्य श्यामसुन्दर पराशर ने कहा कि कोरोना महाकाल से बचाने और बचने के लिए श्रीमाधव के चरणों और शरण में नत हों. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि ज्ञानचर्चा के माध्यम से समय-समय पर अनेक सन्त-महात्मा, विभिन्न विषयों पर जनसामान्य के लिए अपने विचारों के प्रवाह को गति देते रहे हैं.