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वाराणसी: जानिए कोरोना वायरस के बारे में क्या कहते हैं सितारे, कब मिलेगी इससे देश को मुक्ति - वाराणसी खबर

यूपी के वाराणसी के ज्योतिष शास्त्र के जानकार पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि निश्चित तौर पर ग्रहों की बिगड़ी चाल की वजह से इस खतरनाक महामारी कोरोना वायरस के पैदा होने की वजह स्पष्ट करती है. उन्होंने बताया कि सात ग्रहों के योग ने इस कोरोना वायरस की रूपरेखा तैयार की, जो आज पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिए हुए है.

कोरोना वायरस के बारे में क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य.
कोरोना वायरस के बारे में क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य.
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Published : Mar 19, 2020, 1:12 PM IST

वाराणासी: इन दिनों कोरोना का कहर पूरे विश्व पर टूटा हुआ है. चीन से शुरू हुई इस महामारी ने अब पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है. इन सबके बीच अब सवाल यह उठने लगा है कि आखिर ऐसी कौन सी स्थिति परिस्थिति थी, जब यह बीमारी पैदा हुई. क्योंकि भारत में कुछ भी अच्छा और बुरा ग्रहों की चाल के हिसाब से ही निर्धारित होता है, तो जरूरी है कि इस महामारी की जड़ तक जाने के लिए ज्योतिष शास्त्र की मदद से ग्रहों की चाल जानते हुए इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए. इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत ने वाराणसी के धर्म और ज्योतिष शास्त्र के जानकारों से बातचीत की. उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर ग्रहों की बिगड़ी चाल की वजह से इस खतरनाक महामारी के पैदा होने की वजह स्पष्ट होती है. शनि, राहु, केतु समेत सात ग्रहों के एक ऐसे योग ने इस महामारी की रूपरेखा तैयार की, जो आज पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिए हुए है.

कोरोना वायरस के बारे में क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य.

सूर्य ग्रहण में सप्त ग्रही योग का असर
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कोरोना जैसी महामारी के पीछे की असली कहानी ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताई. उन्होंने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में साफ तौर पर लिखा हुआ है कि सब कुछ ग्रहों के अधीन है. यही वजह है कि अब सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में ज्योतिषीय गणना के अनुसार चीजों को करने का चलन बन रहा है. जब हम इस खतरनाक महामारी की पड़ताल करते हैं तो कुछ महीने पीछे जाने की जरूरत पड़ेगी. पीछे यानी 2020 की शुरुआत की पूर्व संध्या जब सूर्य ग्रहण पड़ा था. यदि उस ग्रहण के दौर की बात करें तो धनु राशि पर 7 राशियों का प्रभाव एक साथ था. स्पष्ट तौर पर यह संहिता शास्त्र में वर्णित है यदि किसी एक राशि पर एक साथ 4 या उससे ज्यादा ग्रह अपना असर डालते हैं तो पूरे विश्व में इसका व्यापक असर देखने को मिलता है और यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी: कोरोना से बचाव के लिए जेल में कैदी बना रहे मास्क

संहिता शास्त्र में श्लोक से है स्पष्ट
पंडित पवन त्रिपाठी के मुताबिक ग्रहण काल 3 से 6 महीने तक अपना असर छोड़ता है या फिर जब तक दूसरा ग्रहण न पड़ जाए. संहिता शास्त्र में वर्णित बातों पर गौर करें तो इस दौरान बने सप्त ग्रही योग यानी 7 राशियों का एक ही स्थान पर होना संक्रमण काल को बढ़ावा देने वाला होता है. शास्त्रों में यदि श्लोक के जरिए जानने की कोशिश करें तो यह साफ है की 'पंच ग्रह धनतिसमस्त चतुष्पदा नाम' यानी जब किसी भी राशि पर 5 ग्रहों का एक साथ योग बने तो चार पैर वाले जीवों पर संकट आता है और ऐसा ही कुछ जनवरी महीने में ऑस्ट्रेलिया में आग लगने के बाद भी जानवरों की मौत ने स्पष्ट किया. उसके बाद अब चाइना समेत कई देशों में जानवरों को मारा जा रहा है. ताकि यह संक्रमण न फैले ज्योतिष शास्त्र में यह वर्णित है की 'सप्तग्रहा भंग समस्त देशा' यानी 7 ग्रहों का एक साथ इसी स्थान पर होना पूरे विश्व के लिए नुकसानदायक होता है और ऐसा ही कुछ इस वक्त हो रहा है. धनु राशि पर ग्रहण काल के दौरान शनि, केतु और राहु का एक साथ आना संक्रमण काल को बढ़ावा देना है. यह तो अच्छा था इन ग्रहों के साथ मंगल का योग नहीं था नहीं तो विश्वयुद्ध की प्रबल संभावनाएं थी.

14 अप्रैल बाद भारत में कम होगा असर
हालांकि इस बारे में ज्योतिष शास्त्र की गणना पर गौर करें तो भारत में 25 मार्च से शुरू हो रहे वसंत नवरात्र के बाद से इस संक्रमण काल के खत्म होने के संकेत भी हैं. क्योंकि ग्रहों की चाल बदलेगी और देवी स्थापना के साथ इस प्रकोप और महामारी का भी धीरे-धीरे अंत होगा. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक विश्व का पटल कर्क लग्न का है और चंद्रमा जनवरी में मकर राशि में गया है. यहां मंगल की दृष्टि पड़ने के कारण यह महामारी की स्थिति पैदा हो रही है. ऐसी स्थिति में हमारे देश भारत की कुंडली में सूर्य 15 मार्च को कुंभ राशि में चला गया है. जिसमें शनि की दृष्टि पड़ रही है और मीन राशि में यह आ चुका है. 14 अप्रैल को कुंभ राशि में इसका प्रवेश होगा और सूर्य मेष का हो जाएगा, जिसके बाद विश्व में इसका असर कम हो जाएगा.

वाराणासी: इन दिनों कोरोना का कहर पूरे विश्व पर टूटा हुआ है. चीन से शुरू हुई इस महामारी ने अब पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है. इन सबके बीच अब सवाल यह उठने लगा है कि आखिर ऐसी कौन सी स्थिति परिस्थिति थी, जब यह बीमारी पैदा हुई. क्योंकि भारत में कुछ भी अच्छा और बुरा ग्रहों की चाल के हिसाब से ही निर्धारित होता है, तो जरूरी है कि इस महामारी की जड़ तक जाने के लिए ज्योतिष शास्त्र की मदद से ग्रहों की चाल जानते हुए इस बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाए. इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत ने वाराणसी के धर्म और ज्योतिष शास्त्र के जानकारों से बातचीत की. उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर ग्रहों की बिगड़ी चाल की वजह से इस खतरनाक महामारी के पैदा होने की वजह स्पष्ट होती है. शनि, राहु, केतु समेत सात ग्रहों के एक ऐसे योग ने इस महामारी की रूपरेखा तैयार की, जो आज पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिए हुए है.

कोरोना वायरस के बारे में क्या कहते हैं ज्योतिषाचार्य.

सूर्य ग्रहण में सप्त ग्रही योग का असर
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कोरोना जैसी महामारी के पीछे की असली कहानी ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताई. उन्होंने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में साफ तौर पर लिखा हुआ है कि सब कुछ ग्रहों के अधीन है. यही वजह है कि अब सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में ज्योतिषीय गणना के अनुसार चीजों को करने का चलन बन रहा है. जब हम इस खतरनाक महामारी की पड़ताल करते हैं तो कुछ महीने पीछे जाने की जरूरत पड़ेगी. पीछे यानी 2020 की शुरुआत की पूर्व संध्या जब सूर्य ग्रहण पड़ा था. यदि उस ग्रहण के दौर की बात करें तो धनु राशि पर 7 राशियों का प्रभाव एक साथ था. स्पष्ट तौर पर यह संहिता शास्त्र में वर्णित है यदि किसी एक राशि पर एक साथ 4 या उससे ज्यादा ग्रह अपना असर डालते हैं तो पूरे विश्व में इसका व्यापक असर देखने को मिलता है और यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ.

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संहिता शास्त्र में श्लोक से है स्पष्ट
पंडित पवन त्रिपाठी के मुताबिक ग्रहण काल 3 से 6 महीने तक अपना असर छोड़ता है या फिर जब तक दूसरा ग्रहण न पड़ जाए. संहिता शास्त्र में वर्णित बातों पर गौर करें तो इस दौरान बने सप्त ग्रही योग यानी 7 राशियों का एक ही स्थान पर होना संक्रमण काल को बढ़ावा देने वाला होता है. शास्त्रों में यदि श्लोक के जरिए जानने की कोशिश करें तो यह साफ है की 'पंच ग्रह धनतिसमस्त चतुष्पदा नाम' यानी जब किसी भी राशि पर 5 ग्रहों का एक साथ योग बने तो चार पैर वाले जीवों पर संकट आता है और ऐसा ही कुछ जनवरी महीने में ऑस्ट्रेलिया में आग लगने के बाद भी जानवरों की मौत ने स्पष्ट किया. उसके बाद अब चाइना समेत कई देशों में जानवरों को मारा जा रहा है. ताकि यह संक्रमण न फैले ज्योतिष शास्त्र में यह वर्णित है की 'सप्तग्रहा भंग समस्त देशा' यानी 7 ग्रहों का एक साथ इसी स्थान पर होना पूरे विश्व के लिए नुकसानदायक होता है और ऐसा ही कुछ इस वक्त हो रहा है. धनु राशि पर ग्रहण काल के दौरान शनि, केतु और राहु का एक साथ आना संक्रमण काल को बढ़ावा देना है. यह तो अच्छा था इन ग्रहों के साथ मंगल का योग नहीं था नहीं तो विश्वयुद्ध की प्रबल संभावनाएं थी.

14 अप्रैल बाद भारत में कम होगा असर
हालांकि इस बारे में ज्योतिष शास्त्र की गणना पर गौर करें तो भारत में 25 मार्च से शुरू हो रहे वसंत नवरात्र के बाद से इस संक्रमण काल के खत्म होने के संकेत भी हैं. क्योंकि ग्रहों की चाल बदलेगी और देवी स्थापना के साथ इस प्रकोप और महामारी का भी धीरे-धीरे अंत होगा. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक विश्व का पटल कर्क लग्न का है और चंद्रमा जनवरी में मकर राशि में गया है. यहां मंगल की दृष्टि पड़ने के कारण यह महामारी की स्थिति पैदा हो रही है. ऐसी स्थिति में हमारे देश भारत की कुंडली में सूर्य 15 मार्च को कुंभ राशि में चला गया है. जिसमें शनि की दृष्टि पड़ रही है और मीन राशि में यह आ चुका है. 14 अप्रैल को कुंभ राशि में इसका प्रवेश होगा और सूर्य मेष का हो जाएगा, जिसके बाद विश्व में इसका असर कम हो जाएगा.

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