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दीपों के महापर्व का आगाज, जानिए कब करें लक्ष्मी पूजन

वाराणसी में दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश के स्वागत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. धनतेरस के साथ ही दीपों के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. मां अन्नपूर्णा से अन्न धन का आशीष पाकर श्रद्धालु अब घर-घर महालक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां कर रहे हैं.

laxami pooja in varansi
वाराणसी में लक्ष्मी पूजा
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Published : Nov 13, 2020, 8:21 PM IST

वाराणसीः दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश के स्वागत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. धनतेरस के साथ ही दीपों के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. मां अन्नपूर्णा से अन्न धन का आशीष पाकर श्रद्धालु अब घर-घर महालक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां कर रहे हैं. शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी का आह्वान करके घरों की चौखट से गंगा घाट तक दीप रोशन होंगे.

दिवाली को लेकर क्या कहते हैं ज्योतिषी

काशी विद्वत परिषद के मंत्री डॉक्टर रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि इस बार 14 नवंबर को अमावस्या दिन में 9 बजकर 49 मिनट से लग रही है. जो प्रदोष काल में मिल रही है. दूसरे दिन यानि 15 नवंबर को अमावस्या दिन में 11 बजकर 27 मिनट तक है. लेकिन प्रदोष काल में नहीं मिल रही. इसलिए दीपावली 14 नवंबर को ही मनाई जाएगी.

गजाभिषिक्त लक्ष्मी की पूजा क्यों है जरूरी

डॉक्टर द्विवेदी ने बताया कि दिवाली में गजाभिषिक्त लक्ष्मी की आराधना से इष्ट सिद्धि होती है. वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों में पूजा के लिए गजाभिषिक्त लक्ष्मी की प्रतिमा बनवाकर घर या देवालय में पूजन करने का विधान है. यह प्रतिमा 11 अंगुल से कम होनी चाहिए.

निश्चला लक्ष्मी की पूजा से घर में रहता है वैभव

कमल के आसन पर विराजित और दोनों ही ओर हाथियों द्वारा जलाभिषेक वाली निश्चला लक्ष्मी की पूजा करने से घर में स्थायी वैभव की प्रतिष्ठा होती है. इसके लिए आगमोक्त विधान को स्वीकार किया जाना चाहिए. इसके साथ ही लक्ष्मी गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है. भागवत में कहा गया है कि कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा से इन्द्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था.

वाराणसीः दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश के स्वागत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं. धनतेरस के साथ ही दीपों के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. मां अन्नपूर्णा से अन्न धन का आशीष पाकर श्रद्धालु अब घर-घर महालक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां कर रहे हैं. शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी का आह्वान करके घरों की चौखट से गंगा घाट तक दीप रोशन होंगे.

दिवाली को लेकर क्या कहते हैं ज्योतिषी

काशी विद्वत परिषद के मंत्री डॉक्टर रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि इस बार 14 नवंबर को अमावस्या दिन में 9 बजकर 49 मिनट से लग रही है. जो प्रदोष काल में मिल रही है. दूसरे दिन यानि 15 नवंबर को अमावस्या दिन में 11 बजकर 27 मिनट तक है. लेकिन प्रदोष काल में नहीं मिल रही. इसलिए दीपावली 14 नवंबर को ही मनाई जाएगी.

गजाभिषिक्त लक्ष्मी की पूजा क्यों है जरूरी

डॉक्टर द्विवेदी ने बताया कि दिवाली में गजाभिषिक्त लक्ष्मी की आराधना से इष्ट सिद्धि होती है. वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों में पूजा के लिए गजाभिषिक्त लक्ष्मी की प्रतिमा बनवाकर घर या देवालय में पूजन करने का विधान है. यह प्रतिमा 11 अंगुल से कम होनी चाहिए.

निश्चला लक्ष्मी की पूजा से घर में रहता है वैभव

कमल के आसन पर विराजित और दोनों ही ओर हाथियों द्वारा जलाभिषेक वाली निश्चला लक्ष्मी की पूजा करने से घर में स्थायी वैभव की प्रतिष्ठा होती है. इसके लिए आगमोक्त विधान को स्वीकार किया जाना चाहिए. इसके साथ ही लक्ष्मी गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है. भागवत में कहा गया है कि कमलासन पर विराजित लक्ष्मी की पूजा से इन्द्र ने देवाधिराज होने का गौरव प्राप्त किया था.

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