वाराणसी: दीपावली को लेकर देश उत्साह है. ऐसे में धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी भला पीछे कैसे रह सकती है. दीपावली के इस महापर्व पर बनारस में मां गंगा की शुद्ध मिट्टी से बनने वाली सिंदूरी मूर्तियां किसी भी पहचान की मोहताज नहीं हैं. बनारस के कुम्हार ही इन खास मूर्तियों को तैयार करते हैं. यह मूर्तियां देखने में प्रचीनकाल की मूर्तियों की तरह ही दिखती हैं. यही कारण है कि पूरे देश में इन मूर्तियों की खासी मांग रहती है.
दीपावली का पर्व नजदीक आने के साथ ही बाजारों में रौनक लौटने लगी है. दीपों के इस पर्व में प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. यही वजह है कि बनारस के कुम्हार परिवार मां गंगा की मिट्टी से बन रहीं श्रीगणेश और मां लक्ष्मी की मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं. आधुनिकता के इस युग में भी बनारस सहित देश के कोने-कोने में यह सिंदूरी मूर्तियां जाती हैं. इनके माध्यम से बनारस के व्यापारी स्वदेशी को भी बढ़ावा दे रहे हैं.
कोविड-19 ने बढ़ाई दिक्कत
बनारस का कुम्हार परिवार कई वर्षों से सिंदूरी मूर्ति बनाता है. इस बार मूर्तियां तो समय पर तैयार हो गईं, लेकिन उनका पेंट महंगा होने के कारण कलाकारों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसीलिए मूर्तियों की कीमत में भी इजाफा किया है.
परंपराओं का कर रहे निर्वहन
दीपावली की बजारे सजने लगी है. ऐसे में बनारस की सिंदूरी मूर्ति के अलावा बाजार में बहुत सी मूर्ति है, लेकिन आज भी लोग घरों में पूजा करने के लिए दुकान में पूजा करने के लिए बनारस में बनने वाली सिंदूरी मूर्ति को ही ले जाते हैं. लोगों का यह मानना है कि शुरू से मूर्ति का पूजन होता आया है. इसीलिए हम इसी मूर्ति को पसंद करते हैं. यही वजह है कि आज भी बनारस सहित पूर्वांचल के बाजारों में यह मूर्ति वर्षों जगह बनाए हुए हैं.
बिहार, मुंबई, दिल्ली तक जाती हैं मूर्तियां
मूर्तिकार सोमनाथ प्रजापति ने बताया गणेश और लक्ष्मी की तार वाली सिंदूरी मूर्ति हम लोग बनाते हैं. छोटे से लेकर बड़ी तक मूर्ति रहती है. हम लोग फैंसी मूर्ति भी बनाते हैं. हमारी मूर्ति ज्यादातर सिंदूरी रंग की होती है. यह मूर्ति बिल्कुल शुद्ध होती है. मां गंगा की मिट्टी से बनाई जाती है. यही कारण है कि लोग दूर-दूर से इस मूर्ति को लेने के लिए आते है. मूर्ति को लेने के लिए उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोग आते हैं. साथ ही मुंबई और दिल्ली तक यह मूर्ति जाती हैं. बिहार में भी मूर्ति की मांग है. मुख्य रूप से जौनपुर, बलिया, आजमगढ़, आरा, पटना, बक्सर, मुबारकपुर और दिल्ली तक ये मूर्तियां जाती हैं.
परिवार का हर सदस्य बनाता है मूर्ति
आशा देवी ने बताया कि पूरा परिवार मिलकर ये मूर्तियां बनाता है. सब लोगों का अलग-अलग काम बटा है. बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक अपना कार्य करते हैं. मूर्ति को बनाने में लगभग 6 महीने तक का समय लग जाता है. गंगा की शुद्ध मिट्टी से मूर्ति को बनाया जाता है. गंगा की मिट्टी को लाकर उसे बढ़िया से साफ करके हाथों से गूथ कर मिट्टी को मुलायम करते हैं. इस दौरान मिट्टी को सांचे में डालकर सुखाया जाता है. इसके बाद मिट्टी को सिंदूरी रंग से रंगा जाता है. परिवार के हर एक सदस्य अपना कार्य करता है. कोई मिट्टी की मूर्ति को रखता है तो कोई उस पर नक्काशी बनाता है. घर की बच्चियां मिलकर मूर्ति को विभिन्न प्रकार के कपड़े पहनाती हैं. यह कार्य पूर्वजों के समय से करते आ रहे हैं. यही हम लोगों का कार्य है.
शुद्ध होती है मूर्ति
मूर्तियों को लेने के लिए आरा बिहार से पहुंचे लखन लाल बिहारी ने बताया हम तार वाली सिंदूरी मूर्ति लेने आए हैं. यह मूर्ति केवल बनारस में ही मिलती है. इस मूर्ति की बिहार में भी बहुत मांग है या मूर्ति शुद्ध होती है. इसीलिए लोग इस मूर्ति की ज्यादा मांग करते हैं. यही वजह है कि हम इस मूर्ति को लेने बिहार से प्रतिवर्ष आते हैं.कोरोना काल में मूर्तियां पहले से महंगी हुई हैं. कलाकार का कहना है कि पेंट और मटेरियल महंगा हुआ है.
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