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जानिए कैसे कर सकते हैं अपने मानवाधिकार का संरक्षण - uttar pradesh news

10 दिसंबर को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने मानवाधिकार के बारे में जाने के लिए मानवाधिकार के विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह से खास बातचीत की.

प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह
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Published : Dec 10, 2020, 6:08 PM IST

Updated : Dec 10, 2020, 8:01 PM IST

वाराणसी: मानवाधिकार हर साल अलग-अलग थीम पर मनाया जाता है. इस साल की थीम है स्टैंड अप ऑफ ह्यूमन राइट्स यानी कि मानव अधिकारियों के लिए खड़े हो. जाहिर तौर पर वर्तमान समय में जिस तरीके से मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, वह सर्वविदित है. मानवाधिकार को फिर से मजबूत बनाने के लिए हर तरफ एक लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन धरातल पर बात कर ले तो आज भी आम जनमानस में मानवाधिकार को लेकर कोई भी जागरूकता देखने को नहीं मिलती. अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि आखिर मानवाधिकार क्या है और वह किस तरीके से उसका उपयोग कर सकते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने मानव अधिकार के बारे में जाने के लिए मानवाधिकार के विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह से खास बातचीत की.

प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह से ईटीवी भारत की खास बातचीत
प्राकृतिक अधिकार है मानवाधिकारडॉ. विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि मानवाधिकार हमारे वह प्राकृतिक अधिकार हैं, जो हमें जन्म से मिलते हैं और भारत में उन्हें संवैधानिक अधिकारों की सूची में भी शामिल किया गया है. भारत के संविधान के भाग 3 व 4 में मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व में मानवाधिकार को सम्मिलित किया गया है. उन्होंने बताया कि मानवाधिकार में स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के संग तमाम अधिकार शामिल हैं. जो मनुष्य की उम्र के साथ-साथ बढ़ते जाते हैं. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार हमारे वह मूलभूत अधिकार है जो व्यक्ति की नस्ल, जाति, धर्म,लिंग,राष्ट्रीयता इत्यादि से परे हैं. हर व्यक्ति के पास मानव अधिकार होता है. वह चाहे आमजन हो या फिर अपराधी वर्ग सभी इसका प्रयोग कर सकते हैं.

इस तरह कर सकते हैं मानवाधिकार का दावा
डॉ. सिंह ने बताया कि यदि हम मानवाधिकार को प्राप्त करने की बात करें तो इसके लिए हमारे संविधान में अलग प्रावधान बनाए गए हैं. जो कि मानवाधिकार मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों में सम्मिलित हैं. इसलिए यदि किसी का मानवाधिकार का हनन किया जाता है, तो वह सीधे तौर पर उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में एक अर्जी दाखिल कर अपने अधिकारों के संरक्षण की मांग कर सकते हैं. इसके साथ ही देश में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मानव आयोग कमेटी का भी गठन किया गया है. जहां भी एक प्रोफार्मा भर के आमजन अपने मानव अधिकार का संरक्षण कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार के शुल्क को देने की आवश्यकता नहीं होती है.

साकेंतिक तस्वीर
साकेंतिक तस्वीर

मानवाधिकार क्या है?

  • मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है. इसके दायरे में जीवन, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है. इसके अलावा गरिमामय जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमें शामिल हैं.
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए मानवाधिकार संबंधी घोषणापत्र में भी कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि से इतर होते हैं. रही बात मौलिक अधिकारों की तो ये देश के संविधान में उल्लिखित अधिकार है. ये अधिकार देश के नागरिकों को और किन्हीं परिस्थितियों में देश में निवास कर रहे सभी लोगों को प्राप्त होते हैं.
  • यहां पर एक बात और स्पष्ट कर देना उचित है कि मौलिक अधिकार के कुछ तत्त्व मानवाधिकार के अंतर्गत भी आते हैं जैसे- जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार.
    साकेंतिक तस्वीर
    साकेंतिक तस्वीर

1993 में भारत में बनाया गया कानून
बातचीत में डॉ. सिंह ने कहा कि 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया और 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का भी गठन किया गया. उन्होंने बताया कि आमजन के साथ-साथ अपराधियों के पास भी मानव अधिकार के तहत संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है. क्योंकि अपराधी भी एक मानव होता है. कई बार बिना किसी प्रक्रिया के अपराधी का एनकाउंटर कर दिया जाता है, या उन्हें फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाता है, जो कि मानव अधिकार का उल्लंघन माना जाता है. यदि वह अपराधी है तो उसे संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सजा देनी चाहिए, क्योंकि हमारे संविधान में इन बातों को सम्मिलित किया गया है. यदि उनके मूल अधिकारों के संरक्षण के साथ उन्हें सजा दी जाती है तो यही हमारा संविधान है और यही मानवाधिकार के संवैधानिक प्रक्रिया है.

साकेंतिक तस्वीर
साकेंतिक तस्वीर

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन की व्यवस्था करके मानवाधिकारों के उल्लंघनों से निपटने के लिए एक मंच प्रदान किया है.

लोगों में हैं जागरूकता का अभाव
असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि "यदि हम मानवाधिकार की बात करें तो भारत में आज भी काफी संख्या में ऐसे लोग हैं. जो इन अधिकारों को नहीं जानते इस वजह से उनके साथ शोषण होता है और इससे वह अपना भाग्य समझते हैं. उन्होंने बताया कि जागरूकता के अभाव के कारण ही अधिकांश जनसंख्या शोषण की भेंट चढ़ती है. इसलिए वर्तमान समय में जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को जागरूक किया जाए और मानवाधिकार दिवस मनाने के पीछे भी यही मंशा होती है कि लोग इसको जान ले.क्योंकि जब तक जानकारी नहीं होगी तब तक वह इस अधिकार का लाभ नहीं उठा पाएंगे."

वाराणसी: मानवाधिकार हर साल अलग-अलग थीम पर मनाया जाता है. इस साल की थीम है स्टैंड अप ऑफ ह्यूमन राइट्स यानी कि मानव अधिकारियों के लिए खड़े हो. जाहिर तौर पर वर्तमान समय में जिस तरीके से मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, वह सर्वविदित है. मानवाधिकार को फिर से मजबूत बनाने के लिए हर तरफ एक लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन धरातल पर बात कर ले तो आज भी आम जनमानस में मानवाधिकार को लेकर कोई भी जागरूकता देखने को नहीं मिलती. अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि आखिर मानवाधिकार क्या है और वह किस तरीके से उसका उपयोग कर सकते हैं. ईटीवी भारत की टीम ने मानव अधिकार के बारे में जाने के लिए मानवाधिकार के विशेषज्ञ असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह से खास बातचीत की.

प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह से ईटीवी भारत की खास बातचीत
प्राकृतिक अधिकार है मानवाधिकारडॉ. विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि मानवाधिकार हमारे वह प्राकृतिक अधिकार हैं, जो हमें जन्म से मिलते हैं और भारत में उन्हें संवैधानिक अधिकारों की सूची में भी शामिल किया गया है. भारत के संविधान के भाग 3 व 4 में मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व में मानवाधिकार को सम्मिलित किया गया है. उन्होंने बताया कि मानवाधिकार में स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के संग तमाम अधिकार शामिल हैं. जो मनुष्य की उम्र के साथ-साथ बढ़ते जाते हैं. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार हमारे वह मूलभूत अधिकार है जो व्यक्ति की नस्ल, जाति, धर्म,लिंग,राष्ट्रीयता इत्यादि से परे हैं. हर व्यक्ति के पास मानव अधिकार होता है. वह चाहे आमजन हो या फिर अपराधी वर्ग सभी इसका प्रयोग कर सकते हैं.

इस तरह कर सकते हैं मानवाधिकार का दावा
डॉ. सिंह ने बताया कि यदि हम मानवाधिकार को प्राप्त करने की बात करें तो इसके लिए हमारे संविधान में अलग प्रावधान बनाए गए हैं. जो कि मानवाधिकार मूल अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों में सम्मिलित हैं. इसलिए यदि किसी का मानवाधिकार का हनन किया जाता है, तो वह सीधे तौर पर उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में एक अर्जी दाखिल कर अपने अधिकारों के संरक्षण की मांग कर सकते हैं. इसके साथ ही देश में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मानव आयोग कमेटी का भी गठन किया गया है. जहां भी एक प्रोफार्मा भर के आमजन अपने मानव अधिकार का संरक्षण कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार के शुल्क को देने की आवश्यकता नहीं होती है.

साकेंतिक तस्वीर
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मानवाधिकार क्या है?

  • मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है. इसके दायरे में जीवन, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है. इसके अलावा गरिमामय जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमें शामिल हैं.
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए मानवाधिकार संबंधी घोषणापत्र में भी कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि से इतर होते हैं. रही बात मौलिक अधिकारों की तो ये देश के संविधान में उल्लिखित अधिकार है. ये अधिकार देश के नागरिकों को और किन्हीं परिस्थितियों में देश में निवास कर रहे सभी लोगों को प्राप्त होते हैं.
  • यहां पर एक बात और स्पष्ट कर देना उचित है कि मौलिक अधिकार के कुछ तत्त्व मानवाधिकार के अंतर्गत भी आते हैं जैसे- जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार.
    साकेंतिक तस्वीर
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1993 में भारत में बनाया गया कानून
बातचीत में डॉ. सिंह ने कहा कि 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया और 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का भी गठन किया गया. उन्होंने बताया कि आमजन के साथ-साथ अपराधियों के पास भी मानव अधिकार के तहत संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार है. क्योंकि अपराधी भी एक मानव होता है. कई बार बिना किसी प्रक्रिया के अपराधी का एनकाउंटर कर दिया जाता है, या उन्हें फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाता है, जो कि मानव अधिकार का उल्लंघन माना जाता है. यदि वह अपराधी है तो उसे संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सजा देनी चाहिए, क्योंकि हमारे संविधान में इन बातों को सम्मिलित किया गया है. यदि उनके मूल अधिकारों के संरक्षण के साथ उन्हें सजा दी जाती है तो यही हमारा संविधान है और यही मानवाधिकार के संवैधानिक प्रक्रिया है.

साकेंतिक तस्वीर
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन की व्यवस्था करके मानवाधिकारों के उल्लंघनों से निपटने के लिए एक मंच प्रदान किया है.

लोगों में हैं जागरूकता का अभाव
असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल विक्रम सिंह ने बताया कि "यदि हम मानवाधिकार की बात करें तो भारत में आज भी काफी संख्या में ऐसे लोग हैं. जो इन अधिकारों को नहीं जानते इस वजह से उनके साथ शोषण होता है और इससे वह अपना भाग्य समझते हैं. उन्होंने बताया कि जागरूकता के अभाव के कारण ही अधिकांश जनसंख्या शोषण की भेंट चढ़ती है. इसलिए वर्तमान समय में जरूरत है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को जागरूक किया जाए और मानवाधिकार दिवस मनाने के पीछे भी यही मंशा होती है कि लोग इसको जान ले.क्योंकि जब तक जानकारी नहीं होगी तब तक वह इस अधिकार का लाभ नहीं उठा पाएंगे."

Last Updated : Dec 10, 2020, 8:01 PM IST
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