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काशी में जुटे किन्नर महामंडलेश्वर और पीठाधीश्वर, पिशाच मोचन कुंड पर किया सामूहिक पिंडदान

काशी में किन्नर महामंडलेश्वर व पीठाधीश्वरों ने विधि-विधान से पिशाच मोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान किया. 2016 से हर 2 साल में सामूहिक पिंडदान किया जाता है.

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पिशाच मोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान
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Published : Dec 6, 2022, 10:54 PM IST

वाराणसी: सनातन धर्म में मृत्यु उपरांत आत्मा को मोक्ष और मुक्ति देने के लिए पिंडदान की परंपरा अनिवार्य मानी जाती है. इसी कड़ी में काशी में 2016 से किन्नर महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी(Kinnar Mahamandaleshwar Acharya Laxmi Narayan Tripathi) के नेतृत्व में हर 2 वर्ष में किन्नर समुदाय अपने समाज के मृत लोगों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पिंडदान का आयोजन करता है. इस सामूहिक पिंडदान का आयोजन मंगलवार को वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर किया गया. जहां बड़ी संख्या में किन्नर समुदाय से जुड़े लोगों की मृत आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान का कार्यक्रम संपन्न हुआ.

पिशाच मोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान
किन्नर समुदाय में आत्मा की मुक्ति का विधान सही तरीके से नहीं पालन किया जाता है. लेकिन किन्नर महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने 2016 से किन्नर समुदाय के मृत लोगों की आत्मा शांति के लिए इस सामूहिक पिंडदान को शुरू किया था. तब से हर 2 साल में किन्नर समाज के द्वारा पिशाचमोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान किया जाता है. इस बारे में आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि दो ऐसे स्थान भारतवर्ष में मौजूद हैं. जहां सामूहिक पिंडदान किया जाता है, पहला काशी का पिशाच मोचन कुंड और दूसरा बद्रीधाम में है. इन दोनों स्थानों पर सामूहिक पिंडदान का विधान है. यही वजह है कि हम 2016 से हर 2 वर्ष बाद काशी के इसी स्थान पर विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कर्म और तर्पण कर पिंडदान संपन्न करते हैं.

किन्नर समाज अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए आयोजन करता आ रहा है. किन्नर महामंडलेश्वर का कहना है कि हमारे समाज में मृत्यु उपरांत सिर्फ मृत आत्मा का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. लेकिन उसका पिंडदान संपन्न नहीं होता. जिसकी वजह से उसकी आत्मा को सद्गति नहीं मिलती और सनातन धर्म में आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म अनिवार्य है. यही वजह है कि हम हर 2 वर्ष बाद काशी पिशाच मोचन कुंड पर पहुंचकर अपने समुदाय से जुड़े लोगों की आत्मा की शांति और पितरों के लिए श्राद्ध कर्म का आयोजन करते हैं.

यह भी पढ़ें:एकतरफा प्यार में पागल युवक ने महिला के घर भेजी पुलिस और एम्बुलेंस

वाराणसी: सनातन धर्म में मृत्यु उपरांत आत्मा को मोक्ष और मुक्ति देने के लिए पिंडदान की परंपरा अनिवार्य मानी जाती है. इसी कड़ी में काशी में 2016 से किन्नर महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी(Kinnar Mahamandaleshwar Acharya Laxmi Narayan Tripathi) के नेतृत्व में हर 2 वर्ष में किन्नर समुदाय अपने समाज के मृत लोगों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पिंडदान का आयोजन करता है. इस सामूहिक पिंडदान का आयोजन मंगलवार को वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर किया गया. जहां बड़ी संख्या में किन्नर समुदाय से जुड़े लोगों की मृत आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान का कार्यक्रम संपन्न हुआ.

पिशाच मोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान
किन्नर समुदाय में आत्मा की मुक्ति का विधान सही तरीके से नहीं पालन किया जाता है. लेकिन किन्नर महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने 2016 से किन्नर समुदाय के मृत लोगों की आत्मा शांति के लिए इस सामूहिक पिंडदान को शुरू किया था. तब से हर 2 साल में किन्नर समाज के द्वारा पिशाचमोचन कुंड पर सामूहिक पिंडदान किया जाता है. इस बारे में आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि दो ऐसे स्थान भारतवर्ष में मौजूद हैं. जहां सामूहिक पिंडदान किया जाता है, पहला काशी का पिशाच मोचन कुंड और दूसरा बद्रीधाम में है. इन दोनों स्थानों पर सामूहिक पिंडदान का विधान है. यही वजह है कि हम 2016 से हर 2 वर्ष बाद काशी के इसी स्थान पर विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कर्म और तर्पण कर पिंडदान संपन्न करते हैं.

किन्नर समाज अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए आयोजन करता आ रहा है. किन्नर महामंडलेश्वर का कहना है कि हमारे समाज में मृत्यु उपरांत सिर्फ मृत आत्मा का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. लेकिन उसका पिंडदान संपन्न नहीं होता. जिसकी वजह से उसकी आत्मा को सद्गति नहीं मिलती और सनातन धर्म में आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर्म अनिवार्य है. यही वजह है कि हम हर 2 वर्ष बाद काशी पिशाच मोचन कुंड पर पहुंचकर अपने समुदाय से जुड़े लोगों की आत्मा की शांति और पितरों के लिए श्राद्ध कर्म का आयोजन करते हैं.

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