वाराणसी: 15 दिन तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति और ज्ञात-अज्ञात मृत आत्माओं की शांति के लिए वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करते आ रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि गया के अलावा काशी में पिशाच मोचन कुंड पर किए जाने वाले त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद उन आत्माओं को भी मुक्ति मिलती है जिनकी या तो अकाल मृत्यु हुई हो या जिनकी तिथि ज्ञात न हो. यही वजह है कि आज काशी में किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की मौजूदगी में देशभर के किन्नरों का जमावड़ा हुआ.
यूपी से लेकर बंगाल, असम और दक्षिण भारत के अलग-अलग जिलों से दो दर्जन से ज्यादा किन्नर समुदाय के लोग काशी पहुंचे और महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में त्रिपिंडी श्राद्ध व पिंडदान संपन्न कराया. सबसे अलग और खास यह रहा कि इस बार किन्नर समुदाय ने ज्ञात-अज्ञात लोगों की आत्मा की शांति के साथ ही कोरोना की वजह से मृत लोगों की आत्मा की शांति के लिए भी श्राद्ध कर्म व पिंडदान किया. पिछले दिनों किन्नर गुरु एकता जोशी की दिल्ली में हत्या कर दी गई थी. उनकी आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए उनका भी पिंडदान किया गया.
किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना था कि किन्नर समाज ने काशी के पिशाच मोचन कुंड पर अपने पूर्वजों का सामूहिक पिंडदान करने के अलावा कोरोना की वजह से मृत उन लोगों की आत्मा की शांति के लिए भी श्राद्ध व पिंडदान किया है, जिनका विधिवत दाह संस्कार संपन्न नहीं हो पाया है. हिंदू मान्यताओं में पिंडदान और श्राद्ध कर्म को मोक्ष की अंतिम सीढ़ी माना जाता है. यही वजह है कि उन सभी के साथ किन्नर समुदाय के ज्ञात अज्ञात लोगों की आत्मा की शांति के लिए काशी में यह पिंडदान किन्नर समुदाय के लोगों द्वारा संपन्न कराया गया है, ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके.
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महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का कहना है कि महाभारत में शिखंडी के बाद 2016 से किन्नर समुदाय के लोगों को यह अधिकार काशी के पिशाचमोचन कुंड के पंडा समाज के लोगों ने दिया. काशी आकर पिशाच मोचन कुंड पर हर 2 साल बाद हम सभी अपने पितरों का पिंडदान संपन्न कराते हैं. वहीं पिशाच मोचन कुंड के पुरोहितों का कहना है किन्नर का जन्म ही समाज के कल्याण के लिए हुआ है. इसलिए ये काशी में यह पूजन करते हैं.