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वाराणसीः धर्म की नगरी में आयोजित हुआ कष्टहरिया मेला

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Published : Jul 17, 2019, 8:46 PM IST

धर्म की नगरी काशी में हर दिन पर्व होता है. ऐसे में शंकु धारा पोखरे पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश के प्राचीन मंदिर में कष्टहरिया मेले का आयोजन किया गया. पुराणों की मानें तो मान्यता यह है कि इस मेले में भगवान द्वारकाधीश के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

वाराणसी में कष्टहरिया मेले का आयोजन.

वाराणसीः धर्म की नगरी काशी में हर दिन पर्व होता है. शंकु धारा पोखरे पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश के प्राचीन मंदिर में कष्टहरिया मेले का आयोजन हुआ. कालांतर में इस मेले का नाम कटरिया मेला हो गया है. इस मेले की खास बात यह है कि मेले में कटहल के कोवें की बिक्री प्रसाद के रूप में होती है. साथ ही मेले में दंगल कुश्ती की प्रतियोगिता भी कराई जाती है.

वाराणसी में कष्टहरिया मेले का आयोजन.

मेले में बेचा जाता है कटहल का कोवाः

  • शंकुधारा पोखरे के पास स्थित प्राचीन भगवान द्वारिकाधीश भगवान के मंदिर में मेले का आयोजन हुआ.
  • मेले में पके हुए कटहल के कोवों को बेचा गया, जो कि यह मेले की परंपरा है.
  • भगवान की आरती के बाद मेला का शुभारंभ किया गया.
  • मेले में दंगल, कुश्ती और कबड्डी की भी प्रतियोगिता आयोजित की गई.

मेले के बारे में कई पुराणों में वर्णित है. काशी में स्नान, ध्यान और दान से मुक्ति की प्राप्ति होती है. कर्क राशि में जब भगवान भास्कर आते हैं, तब इस तीर्थ की महिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है. यह पुराणों में वर्णित है. द्वापर युग के अंतिम चरण में भगवान भोलेनाथ के आवाहन से द्वारकाधीश के नाम पर इस मेले का आयोजन किया गया था. तब से लेकर आज तक के कष्टहरिया पर्व अपने आप में काशी के इतिहास, भूगोल और धार्मिकता को बढ़ा रहा है.
-स्वामी रामादास आचार्य, महंत

वाराणसीः धर्म की नगरी काशी में हर दिन पर्व होता है. शंकु धारा पोखरे पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश के प्राचीन मंदिर में कष्टहरिया मेले का आयोजन हुआ. कालांतर में इस मेले का नाम कटरिया मेला हो गया है. इस मेले की खास बात यह है कि मेले में कटहल के कोवें की बिक्री प्रसाद के रूप में होती है. साथ ही मेले में दंगल कुश्ती की प्रतियोगिता भी कराई जाती है.

वाराणसी में कष्टहरिया मेले का आयोजन.

मेले में बेचा जाता है कटहल का कोवाः

  • शंकुधारा पोखरे के पास स्थित प्राचीन भगवान द्वारिकाधीश भगवान के मंदिर में मेले का आयोजन हुआ.
  • मेले में पके हुए कटहल के कोवों को बेचा गया, जो कि यह मेले की परंपरा है.
  • भगवान की आरती के बाद मेला का शुभारंभ किया गया.
  • मेले में दंगल, कुश्ती और कबड्डी की भी प्रतियोगिता आयोजित की गई.

मेले के बारे में कई पुराणों में वर्णित है. काशी में स्नान, ध्यान और दान से मुक्ति की प्राप्ति होती है. कर्क राशि में जब भगवान भास्कर आते हैं, तब इस तीर्थ की महिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है. यह पुराणों में वर्णित है. द्वापर युग के अंतिम चरण में भगवान भोलेनाथ के आवाहन से द्वारकाधीश के नाम पर इस मेले का आयोजन किया गया था. तब से लेकर आज तक के कष्टहरिया पर्व अपने आप में काशी के इतिहास, भूगोल और धार्मिकता को बढ़ा रहा है.
-स्वामी रामादास आचार्य, महंत

Intro:धर्म की नगरी काशी में हर दिन पर्व होता है ऐसे में शंकु धारा पोखरे पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश के प्राचीन मंदिर मैं आज प्राचीन मेला कष्टहरिया मेला लगा। पुराणों की मानें तो मान्यता यह है कि इस मेले में भगवान द्वारकाधीश के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सारे कष्ट भगवान हर लेते है।


Body:कालांतर में इस मेले का नाम कटरिया मेला हो गया यहां पर खास बात यह है कि मेले में पके हुए कटहल का कोवा बेचा जाता है जो केवल बनारस में आज ही के दिन बिकता है।

शंकुधारा पोखरे के पास स्थित प्राचीन भगवान द्वारिकाधीश भगवान का पूरी विधि विधान से पूजा किया जाता है भोग लगाया जाता है और मंगला आरती के साथ एवं मेला शुरू होता है मेले की खास बात यह है कि मेले में दंगल कुश्ती की प्रतियोगिता कराई जाती है कबड्डी के प्रतियोगिता होती है।


Conclusion:महंत स्वामी रामादासचार्य मेले के बारे में कई पुराणों में वर्णित है काशी के शव को धारा क्षेत्र में स्नान ध्यान और दान से मुक्ति की प्राप्ति होती है कर्क राशि में जब भगवान भास्कर आते हैं तब इस तीर्थ का महिमा और महत्व और भी बढ़ जाता है यह पुराणों में वर्णित है द्वापर युग के अंतिम चरण में भगवान भोलेनाथ के आवाहन में द्वारकाधीश के पास इस मेले का आवाहन किया गया था तब से लेकर आज तक के कष्टहरी पर्व अपने आप में काशी इतिहास भूगोल और धार्मिकता को बढ़ रहा है।


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