वाराणसीः धर्म की नगरी काशी में हर दिन पर्व होता है. शंकु धारा पोखरे पर स्थित भगवान द्वारिकाधीश के प्राचीन मंदिर में कष्टहरिया मेले का आयोजन हुआ. कालांतर में इस मेले का नाम कटरिया मेला हो गया है. इस मेले की खास बात यह है कि मेले में कटहल के कोवें की बिक्री प्रसाद के रूप में होती है. साथ ही मेले में दंगल कुश्ती की प्रतियोगिता भी कराई जाती है.
मेले में बेचा जाता है कटहल का कोवाः
- शंकुधारा पोखरे के पास स्थित प्राचीन भगवान द्वारिकाधीश भगवान के मंदिर में मेले का आयोजन हुआ.
- मेले में पके हुए कटहल के कोवों को बेचा गया, जो कि यह मेले की परंपरा है.
- भगवान की आरती के बाद मेला का शुभारंभ किया गया.
- मेले में दंगल, कुश्ती और कबड्डी की भी प्रतियोगिता आयोजित की गई.
मेले के बारे में कई पुराणों में वर्णित है. काशी में स्नान, ध्यान और दान से मुक्ति की प्राप्ति होती है. कर्क राशि में जब भगवान भास्कर आते हैं, तब इस तीर्थ की महिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है. यह पुराणों में वर्णित है. द्वापर युग के अंतिम चरण में भगवान भोलेनाथ के आवाहन से द्वारकाधीश के नाम पर इस मेले का आयोजन किया गया था. तब से लेकर आज तक के कष्टहरिया पर्व अपने आप में काशी के इतिहास, भूगोल और धार्मिकता को बढ़ा रहा है.
-स्वामी रामादास आचार्य, महंत