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काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी केस में कोर्ट का आदेश, पुरातत्व विभाग करेगा सर्वे

वाराणसी में सिविल कोर्ट ने आज काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले पर केंद्र सरकार को निर्देश दिए. लंबे वक्त से चले आ रहे प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार को इस पूरे मामले की जिम्मेदारी सौंपी है. साथ ही अपने खर्च पर 5 लोगों की टीम बनाकर प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं.

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Published : Apr 8, 2021, 4:15 PM IST

Updated : Apr 8, 2021, 10:54 PM IST

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी केस
काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी केस

वाराणसी: राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद अब काशी और मथुरा को लेकर भी उम्मीद बढ़ गई है, लेकिन वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष आमने-सामने हैं. हिन्दू पक्ष वहां पहले मंदिर होने का दावा कर रहा है तो मुस्लिम पक्ष दावे को खारिज करते हुए अपना पक्ष रख रहा है. वहीं, आज सिविल कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए लंबे वक्त से चले आ रहे प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार को इस पूरे मामले की जिम्मेदारी सौंपी है और अपने खर्च पर 5 लोगों की टीम बनाकर प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं.

इसमें मुस्लिम पक्ष से भी दो लोगों को शामिल किया जाएगा. सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के सिविल जज आशुतोष तिवारी ने ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए सर्वे का फैसला सुनाया. विस्तृत निर्देश देकर के कोर्ट ने उस स्थान का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने व खुदाई कराने और उसकी आख्या न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित किया है. 1991 से सर्वेक्षण को लेकर चले आ रहे मामले पर ऑर्डर जारी किया है. कोर्ट ने केंद्र को पुरातत्व विभाग के 5 विद्वानों की टीम बनाकर पूरे परिसर का अध्धयन कराने के लिए निर्देश दिया. साथ ही कहा कि इसका पूरा खर्चा सरकार उठाएगी.

सिविल कोर्ट ने सुनाया फैसला.

हिन्दू पक्ष के वकील का बयान

हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि 1669 में गिराया गया विवादित ढांचा खड़ा कर दिया गया था. बाकी सारे अवशेष वहां मौजूद हैं. इस ढांचे के नीचे 100 फीट का स्वयंभू शिवलिंग विद्धमान हैं. उन्होंने कहा कि यही मांग की गई थी कि पुरातात्विक विभाग उसका सर्वे करके उत्खनन करे. न्यायालय ने हमारे पक्ष को स्वीकार कर लिया है. आदेशित किया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अपने खर्चे पर सर्वे कर आख्या प्रस्तुत करे.

वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में वादी पक्ष की तरफ से वर्ष 2019 से ही प्रार्थना पत्र देकर इस बात की प्रार्थना की गई है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण केंद्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग और उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग से कराया जाए. उन्होंने कहा कि इस बात का मौके पर सबूत लिया जाए कि 15 अगस्त सन 1947 को उस स्थान पर मंदिर का धार्मिक स्वरूप था या मस्जिद का. पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लिया जाए. उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करा लिया जाए.

मुस्लिम पक्ष के वकील का बयान

मुस्लिम पक्ष का कहता है कि अभी फैसले की कॉपी पढ़ेंगे. उनका कहना है कि जिस तरह से फैसला दिया गया है, ऐसे नहीं दिया जाना चाहिए था. एविडेंस को आधार पर यह फैसला दिया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि हम आगे लीगल कार्यवाही करेंगे.

भगवान विश्वेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामियां मसाजिद आमने-सामने

प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामियां मसाजिद दो पक्षकार आमने-सामने हैं. इससे पहले 11 दिसंबर को सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत ने आज 9 जनवरी सुनवाई और मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दी जाने वाली आपत्ति के लिए तारीख मुकर्रर की थी. ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से अपील सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थनापत्र देकर की गई थी. इस बीच मुस्लिम पक्षकारों की ओर से एएसआई और उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर पक्षकार की ओर से की गई सर्वेक्षण की मांग के बाबत आपत्ति भी दर्ज कराई गई थी.

ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित

काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है. इसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत में चल रहा है. पिछले एक साल से सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्टे हटने के नियम के बाद एक बार फिर से वाराणसी न्यायालय में इस मामले की सुनवाई शुरू हो चुकी है. मौजूदा स्तिथि पर लगातार तारीख पड़ती जा रही थी और हिन्दू पक्ष इस पूरे इलाके को आर्कोलॉजी ऑफ सर्वे ऑफ इंडिया से सर्वे कराने की मांग कर रहा है.

1991 में दायर मुकदमे में की गई थी यह मांग

1991 में दायर मुकदमा में मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ और दर्शन का अधिकार है. कोर्ट से यह मांग करते हुए प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने मुकदमा दायर किया था. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद और अन्य विपक्षी हैं. मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है. इसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थनापत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है. यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है.

15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था

15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खोदाई कराकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की. इस पर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है. वादी विजय शंकर रस्तोगी बताते हैं कि मुस्लिम पक्ष की ओर से ये विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानि ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए. इसके विरुद्ध हिंदू पक्ष की ओर से अपने पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि पूरा विश्वनाथ मंदिर परिसर का ज्ञानवापी मस्जिद एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति के निर्धारण के लिए साक्ष्यों के आधार पर फैसला होना चाहिए.

साक्ष्य लेने के लिए प्रथम अपर जनपद न्यायाधीश ने दिया था आदेश

पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लेने के लिए प्रथम अपर जनपद नयायाधीश द्वारा 1998 में आदेशित किया गया था. उसके विरुद्ध मुस्लिम पक्ष की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस कारण से इसकी कार्रवाई स्थगित हो गई थी. अब स्थगत आदेश समाप्त होने के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक तरीके से साक्ष्य लेने के लिए आर्कियोलॉजिकल सोसाइटी आफ इंडिया न्यू दिल्ली और पुरातत्व विभाग यूपी सरकार को रिट जारी कराकर न्यायालय के माध्यम से यह निवेदन किया गया है कि पुरातत्व विभाग रडार के जरिए और खुदाई करके स्वयंभू विशेश्वर ज्योतिर्लिंग के विवादित स्थल के मध्य के गुंबद के स्थान के नीचे विराजमान हैं, उसको परिलक्षित कराएं और पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लें. इसी के लिए प्रार्थनापत्र सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में दाखिल किया गया था.

'कोर्ट का यह फैसला काशी और मथुरा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा'

आज सिविल कोर्ट की तरफ से ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने का फैसला सुनाए जाने को लेकर संत समिति ने इस पर खुशी जाहिर की है. केंद्रीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने इस मामले की सुनवाई में आए फैसले के बाद कहा है कि लंबे वक्त से चले आ रहे विवाद के बाद कोर्ट का यह फैसला अयोध्या के बाद काशी और मथुरा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा.

स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती का बयान.


'देर से सही पर उचित फैसला'

संत समिति के महामंत्री का कहना है कि कोर्ट ने देर सही, लेकिन उचित फैसला दिया है. उन्होंने कहा कि लगातार आदि विशेश्वर के गर्भगृह को लेकर सवाल उठते रहे हैं. अब जब कोर्ट ने फैसला दिया है तो निश्चित तौर पर दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और जो सच्चाई है वह सर्वे के बाद सामने आ जाएगी.

वाराणसी: राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद अब काशी और मथुरा को लेकर भी उम्मीद बढ़ गई है, लेकिन वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष आमने-सामने हैं. हिन्दू पक्ष वहां पहले मंदिर होने का दावा कर रहा है तो मुस्लिम पक्ष दावे को खारिज करते हुए अपना पक्ष रख रहा है. वहीं, आज सिविल कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए लंबे वक्त से चले आ रहे प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार को इस पूरे मामले की जिम्मेदारी सौंपी है और अपने खर्च पर 5 लोगों की टीम बनाकर प्रकरण में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश जारी किए हैं.

इसमें मुस्लिम पक्ष से भी दो लोगों को शामिल किया जाएगा. सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के सिविल जज आशुतोष तिवारी ने ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए सर्वे का फैसला सुनाया. विस्तृत निर्देश देकर के कोर्ट ने उस स्थान का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने व खुदाई कराने और उसकी आख्या न्यायालय में प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट ने विस्तृत आदेश पारित किया है. 1991 से सर्वेक्षण को लेकर चले आ रहे मामले पर ऑर्डर जारी किया है. कोर्ट ने केंद्र को पुरातत्व विभाग के 5 विद्वानों की टीम बनाकर पूरे परिसर का अध्धयन कराने के लिए निर्देश दिया. साथ ही कहा कि इसका पूरा खर्चा सरकार उठाएगी.

सिविल कोर्ट ने सुनाया फैसला.

हिन्दू पक्ष के वकील का बयान

हिन्दू पक्ष के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि 1669 में गिराया गया विवादित ढांचा खड़ा कर दिया गया था. बाकी सारे अवशेष वहां मौजूद हैं. इस ढांचे के नीचे 100 फीट का स्वयंभू शिवलिंग विद्धमान हैं. उन्होंने कहा कि यही मांग की गई थी कि पुरातात्विक विभाग उसका सर्वे करके उत्खनन करे. न्यायालय ने हमारे पक्ष को स्वीकार कर लिया है. आदेशित किया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अपने खर्चे पर सर्वे कर आख्या प्रस्तुत करे.

वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में वादी पक्ष की तरफ से वर्ष 2019 से ही प्रार्थना पत्र देकर इस बात की प्रार्थना की गई है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण केंद्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग और उत्तर प्रदेश के पुरातत्व विभाग से कराया जाए. उन्होंने कहा कि इस बात का मौके पर सबूत लिया जाए कि 15 अगस्त सन 1947 को उस स्थान पर मंदिर का धार्मिक स्वरूप था या मस्जिद का. पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लिया जाए. उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करा लिया जाए.

मुस्लिम पक्ष के वकील का बयान

मुस्लिम पक्ष का कहता है कि अभी फैसले की कॉपी पढ़ेंगे. उनका कहना है कि जिस तरह से फैसला दिया गया है, ऐसे नहीं दिया जाना चाहिए था. एविडेंस को आधार पर यह फैसला दिया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि हम आगे लीगल कार्यवाही करेंगे.

भगवान विश्वेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामियां मसाजिद आमने-सामने

प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर बनाम अंजुमन इंतजामियां मसाजिद दो पक्षकार आमने-सामने हैं. इससे पहले 11 दिसंबर को सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट की अदालत ने आज 9 जनवरी सुनवाई और मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दी जाने वाली आपत्ति के लिए तारीख मुकर्रर की थी. ज्ञानवापी मस्जिद सहित विश्वनाथ मंदिर परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की ओर से अपील सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में प्रार्थनापत्र देकर की गई थी. इस बीच मुस्लिम पक्षकारों की ओर से एएसआई और उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर पक्षकार की ओर से की गई सर्वेक्षण की मांग के बाबत आपत्ति भी दर्ज कराई गई थी.

ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित

काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में ज्ञानवापी मस्जिद भी स्थित है. इसका मुकदमा 1991 से स्थानीय अदालत में चल रहा है. पिछले एक साल से सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्टे हटने के नियम के बाद एक बार फिर से वाराणसी न्यायालय में इस मामले की सुनवाई शुरू हो चुकी है. मौजूदा स्तिथि पर लगातार तारीख पड़ती जा रही थी और हिन्दू पक्ष इस पूरे इलाके को आर्कोलॉजी ऑफ सर्वे ऑफ इंडिया से सर्वे कराने की मांग कर रहा है.

1991 में दायर मुकदमे में की गई थी यह मांग

1991 में दायर मुकदमा में मांग की गई थी कि मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का एक अंश है, जहां हिंदू आस्थावानों को पूजा-पाठ और दर्शन का अधिकार है. कोर्ट से यह मांग करते हुए प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के पक्षकार पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने मुकदमा दायर किया था. मुकदमे में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद और अन्य विपक्षी हैं. मुकदमा दाखिल करने वाले दो वादियों डॉ. रामरंग शर्मा और पंडित सोमनाथ व्यास की मौत हो चुकी है. इसके बाद वादी पंडित सोमनाथ व्यास की जगह पर प्रतिनिधित्व कर रहे वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थनापत्र में कहा है कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है. यह देश के बारह ज्योतिर्लिंग में से है और मंदिर परिसर पर कब्जा करके मुसलमानों ने मस्जिद बना दी है.

15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था

15 अगस्त 1947 में विवादित परिसर का स्वरूप मंदिर का ही था. अब वादी ने कोर्ट से भौतिक और पुरातात्विक दृष्टि से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा रडार तकनीक से सर्वेक्षण और परिसर की खोदाई कराकर रिपोर्ट मंगाने की अपील की. इस पर कोर्ट ने विपक्षियों से आपत्ति भी मांगी है. वादी विजय शंकर रस्तोगी बताते हैं कि मुस्लिम पक्ष की ओर से ये विवाद उठाया गया था कि विवादित स्थल यानि ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाए. इसके विरुद्ध हिंदू पक्ष की ओर से अपने पक्ष रखते हुए कोर्ट में बताया गया कि पूरा विश्वनाथ मंदिर परिसर का ज्ञानवापी मस्जिद एक विवादित अंश है और धार्मिक स्थिति के निर्धारण के लिए साक्ष्यों के आधार पर फैसला होना चाहिए.

साक्ष्य लेने के लिए प्रथम अपर जनपद न्यायाधीश ने दिया था आदेश

पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लेने के लिए प्रथम अपर जनपद नयायाधीश द्वारा 1998 में आदेशित किया गया था. उसके विरुद्ध मुस्लिम पक्ष की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस कारण से इसकी कार्रवाई स्थगित हो गई थी. अब स्थगत आदेश समाप्त होने के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक तरीके से साक्ष्य लेने के लिए आर्कियोलॉजिकल सोसाइटी आफ इंडिया न्यू दिल्ली और पुरातत्व विभाग यूपी सरकार को रिट जारी कराकर न्यायालय के माध्यम से यह निवेदन किया गया है कि पुरातत्व विभाग रडार के जरिए और खुदाई करके स्वयंभू विशेश्वर ज्योतिर्लिंग के विवादित स्थल के मध्य के गुंबद के स्थान के नीचे विराजमान हैं, उसको परिलक्षित कराएं और पूरे ज्ञानवापी परिसर का साक्ष्य लें. इसी के लिए प्रार्थनापत्र सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में दाखिल किया गया था.

'कोर्ट का यह फैसला काशी और मथुरा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा'

आज सिविल कोर्ट की तरफ से ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने का फैसला सुनाए जाने को लेकर संत समिति ने इस पर खुशी जाहिर की है. केंद्रीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने इस मामले की सुनवाई में आए फैसले के बाद कहा है कि लंबे वक्त से चले आ रहे विवाद के बाद कोर्ट का यह फैसला अयोध्या के बाद काशी और मथुरा की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा.

स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती का बयान.


'देर से सही पर उचित फैसला'

संत समिति के महामंत्री का कहना है कि कोर्ट ने देर सही, लेकिन उचित फैसला दिया है. उन्होंने कहा कि लगातार आदि विशेश्वर के गर्भगृह को लेकर सवाल उठते रहे हैं. अब जब कोर्ट ने फैसला दिया है तो निश्चित तौर पर दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा और जो सच्चाई है वह सर्वे के बाद सामने आ जाएगी.

Last Updated : Apr 8, 2021, 10:54 PM IST
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