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भीषण गर्मी और पॉल्यूशन से राहत दिलाएगा जापान का मियावाकी जंगल, तय किये गये 8 स्थान - pollution control board

तेजी से बढ़ रहे कंक्रीट के जंगल के बीच अगर जंगल डेवलप होने लगे वह भी हरा-भरा तो सोचिए क्या नजारा होगा. ऐसा ही कुछ नजारा जल्द ही बनारस के अलग-अलग इलाकों में देखने को मिलेगा. पढ़िए पूरी खबर..

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जापान का मियावाकी जंगल
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Published : Jun 13, 2022, 4:44 PM IST

वाराणसी: बनारस के अलग-अलग इलाके में जल्द ही कंक्रीट के जंगल के बीच हरा-भरा नजारा देखने को मिलेगा. जंगल की बात सुनकर आपको आश्चर्य जरूर हो रहा होगा, लेकिन जापान की तकनीक पर मियावाकी पद्धति से शहरी क्षेत्र में जंगल डेवलप कर पॉल्यूशन के लेवल को कम कर गर्मी से राहत दिलाने के लिए एक नई योजना है. इस योजना को बनारस के अलग-अलग लगभग 16 इलाकों में इंप्लीमेंट भी कराया जा रहा है, जिसमें वन विभाग सहित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

वन विभाग की मानें तो मियावाकी पद्धति एक ऐसी तकनीक है, जिसमें खाली पड़ी पड़ी भूमि पर अलग-अलग तरह के पौधों को लगाकर कम समय और कम पानी में इनको डेवलप करने की प्लानिंग की जाती है. ऐसे वाराणसी में वन विभाग ने 8 स्थान चयनित किए हैं, जहां पर खाली पड़ी 3 हेक्टेयर की जमीन पर लगभग 30,000 पौधे रोपित करने का कार्य शुरू किया जा रहा है.

प्रशासनिक अधिकारी मोहन लाल

वन विभाग के प्रशासनिक अधिकारी मोहनलाल की माने तो वन विभाग ने वाराणसी के केंद्रीय कारागार भूमि, बेनियाबाग पार्क स्मार्ट सिटी, शिक्षा संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय, डोमरी रेल भूमि, जय नारायण इंटर कॉलेज, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज मलदहिया, पीएसी रामनगर, शिक्षा संकाय बीएचयू और वाराणसी बाईपास रिंग रोड फेज वन में मियावाकी पद्धति से जंगल डिवेलप करने का काम शुरू किया है.

पढ़ेंः विश्वनाथ मंदिर जाने वाले पक्के महाल मार्ग को खोलने की उठी मांग

इसके अतिरिक्त प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा भी रामनगर इंडस्ट्रियल एस्टेट समय कई अलग-अलग इलाके में इस तरह से आर्टिफिशियल जंगल तैयार करने का काम किया जा रहा है. वन विभाग का कहना है कि यह वह पद्धति होती है, जिसमें नगरीय क्षेत्र के वातावरण को बदलने और प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से मियावाकी तकनीक के जरिए यह कार्य आगे बढ़ाया जाता है. इसमें कम से कम एक हेक्टेयर भूमि की जरूरत होती है और ज्यादा से ज्यादा जितनी मिल जाए कम समय में कम जल की मात्रा के साथ जो पहुंचे डेवलप हो सके, उनको यहां पर लगाने का कार्य किया जाता है. जिसकी देखरेख के लिए प्रॉपर लोगों को लगाया जाता है.

एक साल के अंदर में यह डेवलप करते हुए काफी घनत्व वाला क्षेत्र बनाते हैं और एक आर्टिफिशियल जंगल तैयार होने के साथ आसपास की आबोहवा के साथ ही शहर के शहरी क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण को भी नियंत्रित करने का काम करते हैं. यही वजह है कि इस मियावाकी तकनीक के जरिए बनारस की आबोहवा को सुधारने का काम शुरू किया गया है, जो तेजी से अलग-अलग क्षेत्रों में डेवलप करने का काम भी किया जा रहा है.

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वाराणसी: बनारस के अलग-अलग इलाके में जल्द ही कंक्रीट के जंगल के बीच हरा-भरा नजारा देखने को मिलेगा. जंगल की बात सुनकर आपको आश्चर्य जरूर हो रहा होगा, लेकिन जापान की तकनीक पर मियावाकी पद्धति से शहरी क्षेत्र में जंगल डेवलप कर पॉल्यूशन के लेवल को कम कर गर्मी से राहत दिलाने के लिए एक नई योजना है. इस योजना को बनारस के अलग-अलग लगभग 16 इलाकों में इंप्लीमेंट भी कराया जा रहा है, जिसमें वन विभाग सहित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

वन विभाग की मानें तो मियावाकी पद्धति एक ऐसी तकनीक है, जिसमें खाली पड़ी पड़ी भूमि पर अलग-अलग तरह के पौधों को लगाकर कम समय और कम पानी में इनको डेवलप करने की प्लानिंग की जाती है. ऐसे वाराणसी में वन विभाग ने 8 स्थान चयनित किए हैं, जहां पर खाली पड़ी 3 हेक्टेयर की जमीन पर लगभग 30,000 पौधे रोपित करने का कार्य शुरू किया जा रहा है.

प्रशासनिक अधिकारी मोहन लाल

वन विभाग के प्रशासनिक अधिकारी मोहनलाल की माने तो वन विभाग ने वाराणसी के केंद्रीय कारागार भूमि, बेनियाबाग पार्क स्मार्ट सिटी, शिक्षा संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय, डोमरी रेल भूमि, जय नारायण इंटर कॉलेज, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज मलदहिया, पीएसी रामनगर, शिक्षा संकाय बीएचयू और वाराणसी बाईपास रिंग रोड फेज वन में मियावाकी पद्धति से जंगल डिवेलप करने का काम शुरू किया है.

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इसके अतिरिक्त प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा भी रामनगर इंडस्ट्रियल एस्टेट समय कई अलग-अलग इलाके में इस तरह से आर्टिफिशियल जंगल तैयार करने का काम किया जा रहा है. वन विभाग का कहना है कि यह वह पद्धति होती है, जिसमें नगरीय क्षेत्र के वातावरण को बदलने और प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से मियावाकी तकनीक के जरिए यह कार्य आगे बढ़ाया जाता है. इसमें कम से कम एक हेक्टेयर भूमि की जरूरत होती है और ज्यादा से ज्यादा जितनी मिल जाए कम समय में कम जल की मात्रा के साथ जो पहुंचे डेवलप हो सके, उनको यहां पर लगाने का कार्य किया जाता है. जिसकी देखरेख के लिए प्रॉपर लोगों को लगाया जाता है.

एक साल के अंदर में यह डेवलप करते हुए काफी घनत्व वाला क्षेत्र बनाते हैं और एक आर्टिफिशियल जंगल तैयार होने के साथ आसपास की आबोहवा के साथ ही शहर के शहरी क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण को भी नियंत्रित करने का काम करते हैं. यही वजह है कि इस मियावाकी तकनीक के जरिए बनारस की आबोहवा को सुधारने का काम शुरू किया गया है, जो तेजी से अलग-अलग क्षेत्रों में डेवलप करने का काम भी किया जा रहा है.

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