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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस: व्हील चेयर पर होने के बाद भी सुमेधा अपने सपने को दे रही उड़ान

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Published : Oct 11, 2019, 2:48 PM IST

कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो मंजिल तक का सफर और भी आसान हो जाता है. ऐसा ही वाराणसी की बेटी सुमेधा ने कुछ कर दिखाया है. सुमेधा ने दिव्यांगता को मात देकर उस मुकाम को हासिल किया, जिसे पाना शायद एक नॉर्मल लाइफ जीने वाले व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष.

वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर बेटियों और उनके जज्बे को सलाम करना जरूरी है, जिन्होंने तमाम मुश्किलों और अपने खिलाफ चल रहे हालात पर काबू पाकर खुद की पहचान तो बनाया ही. साथ ही साथ समाज में अपने परिवार को भी फक्र से सिर ऊंचा करने का मौका दिया. आज जब हर तरफ 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे और स्लोगन लेकर लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं. ऐसे में काशी की इस होनहार बेटी को कोई कैसे भूल सकता हैस, जिसने दिव्यांगता को मात देकर उस मुकाम को हासिल किया, जिसे पाना शायद एक नॉर्मल लाइफ जीने वाले व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष.

नेशनल लेवल की शूटर सुमेधा खेल में जितनी होनहार हैं उतनी ही होनहार पढ़ाई में भी हैं. कई सालों से व्हीलचेयर पर होने के बाद भी सुमेधा ने सीबीएसई इंटरमीडिएट में विशेष वर्ग में टॉप किया, जिसके बाद प्रदेश सरकार की तरफ से सुमेधा को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

रीढ़ की हड्डी में फैक्चर
एक भाई और एक बहन में बड़ी सुमेधा सबकी लाडली हैं. परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया, लेकिन परिवार ने कभी सुमेधा का साथ नहीं छोड़ा. सुमेधा के पिता बृजेश चंद्र पाठक एक सफल बिजनेसमैन हैं. मां हाउस वाइफ हैं. सुमेधा के पिता बृजेश बताते हैं कि उनकी बेटी पैराप्लेजिक नाम की बीमारी की शिकार है. वे 2013 में जब इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी, तभी उसकी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हुआ, जिसकी वजह से उसके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया.

ये भी पढ़ें- पुष्पेंद्र यादव एनकाउंटर मामले पर बोले कानून मंत्री- मामले को गंभीरता से ले रही है सरकार

सुमेधा ने कभी हिम्मत नहीं हारी
पैराप्लेजिक पेशेंट के साथ सुमेधा के लोअर लिंबस में कोई मूवमेंट नहीं होता और इसकी ताकत धीरे-धीरे कम होने लगती है, लेकिन इन सबके बाद भी सुमेधा ने हिम्मत नहीं हारी है. लगातार वह अपनी पढ़ाई के साथ नेशनल लेवल पर शूटिंग का काम कर रही हैं. सुमेधा को राजभवन में राज्यपाल राम नाईक समेत कई अन्य लोगों ने भी सम्मानित किया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी के डीरेका ग्राउंड में सुमेधा से मुलाकात कर शाबाशी दी थी और सुमेधा ने भी उस वक्त शहीदों को अपनी जीती हुई धनराशि में से डोनेट भी किया था.

वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर बेटियों और उनके जज्बे को सलाम करना जरूरी है, जिन्होंने तमाम मुश्किलों और अपने खिलाफ चल रहे हालात पर काबू पाकर खुद की पहचान तो बनाया ही. साथ ही साथ समाज में अपने परिवार को भी फक्र से सिर ऊंचा करने का मौका दिया. आज जब हर तरफ 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे और स्लोगन लेकर लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं. ऐसे में काशी की इस होनहार बेटी को कोई कैसे भूल सकता हैस, जिसने दिव्यांगता को मात देकर उस मुकाम को हासिल किया, जिसे पाना शायद एक नॉर्मल लाइफ जीने वाले व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है.

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष.

नेशनल लेवल की शूटर सुमेधा खेल में जितनी होनहार हैं उतनी ही होनहार पढ़ाई में भी हैं. कई सालों से व्हीलचेयर पर होने के बाद भी सुमेधा ने सीबीएसई इंटरमीडिएट में विशेष वर्ग में टॉप किया, जिसके बाद प्रदेश सरकार की तरफ से सुमेधा को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

रीढ़ की हड्डी में फैक्चर
एक भाई और एक बहन में बड़ी सुमेधा सबकी लाडली हैं. परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया, लेकिन परिवार ने कभी सुमेधा का साथ नहीं छोड़ा. सुमेधा के पिता बृजेश चंद्र पाठक एक सफल बिजनेसमैन हैं. मां हाउस वाइफ हैं. सुमेधा के पिता बृजेश बताते हैं कि उनकी बेटी पैराप्लेजिक नाम की बीमारी की शिकार है. वे 2013 में जब इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी, तभी उसकी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हुआ, जिसकी वजह से उसके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया.

ये भी पढ़ें- पुष्पेंद्र यादव एनकाउंटर मामले पर बोले कानून मंत्री- मामले को गंभीरता से ले रही है सरकार

सुमेधा ने कभी हिम्मत नहीं हारी
पैराप्लेजिक पेशेंट के साथ सुमेधा के लोअर लिंबस में कोई मूवमेंट नहीं होता और इसकी ताकत धीरे-धीरे कम होने लगती है, लेकिन इन सबके बाद भी सुमेधा ने हिम्मत नहीं हारी है. लगातार वह अपनी पढ़ाई के साथ नेशनल लेवल पर शूटिंग का काम कर रही हैं. सुमेधा को राजभवन में राज्यपाल राम नाईक समेत कई अन्य लोगों ने भी सम्मानित किया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी के डीरेका ग्राउंड में सुमेधा से मुलाकात कर शाबाशी दी थी और सुमेधा ने भी उस वक्त शहीदों को अपनी जीती हुई धनराशि में से डोनेट भी किया था.

Intro:स्पेशल स्टोरी: कल वर्ल्ड गर्ल चाइल्ड डे है, यह स्पेशल स्टोरी है, जिसकी पैकेजिंग हेड ऑफिस में हो तो बेहतर होगा.

वाराणसी: आज अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस है, इस मौके पर उन बेटियों को और उनके जज्बे को सलाम करना जरूरी है. जिन्होंने तमाम मुश्किलों और अपने खिलाफ चल रहे हालात पर काबू पाकर खुद की पहचान तो बना ही साथ ही साथ समाज में अपने परिवार को भी फक्र से सिर ऊंचा कर चलने का मौका दिया. आज जब हर तरफ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारे और स्लोगन लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं. वैसे में बनारस की इस होनहार बेटी को कोई कैसे भूल सकता है. जिसमें दिव्यांगता को मात देकर उस मुकाम को हासिल किया, जिसे पाना शायद एक नॉर्मल लाइफ जीने वाले व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है इस बेटी का नाम है सुमेधा पाठक, नेशनल लेवल की शूटर सुमेधा खेल में जितनी होनहार है उतनी ही होनहार पढ़ाई में भी है. कई सालों से व्हीलचेयर पर होने के बाद भी सुमेधा ने सीबीएसई में इंटरमीडिएट में देश में विशेष वर्ग में टॉप किया. जिसके बाद प्रदेश सरकार की तरफ से उसे रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार भी मिल चुका है तो आइए हम बताते हैं कि होनहार बेटी की कहानी इस खास दिन पर.


Body:वीओ-01 एक भाई और एक बहन में बड़ी सुमेधा सबकी लाडली है. परिस्थितियों ने उसका साथ नहीं दिया लेकिन परिवार ने कभी उसका साथ छोड़ा ही नहीं. सुमेधा के पिता बृजेश चंद्र पाठक एक सफल बिजनेसमैन है. मां हाउसवाइफ है और भाई भी अभी पढ़ रहा है. सुमेधा के पिता बृजेश बताते हैं कि उनकी बेटी पेराप्लेजिक नाम की बीमारी का शिकार है. वे 2013 में जब इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी तभी उसकी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हुआ जिसकी वजह से उसके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया. इसलिए वह अब खुद से ना चल सकती है न ही उठ और बैठ भी सकती है, इसलिए उसे दिन में चार बार फिजियोथेरेपी करवानी पड़ती है. उसके शरीर के निचले हिस्सों की ताकत खत्म हो गई है. इस स्थिति में आने के बाद भी सुमेधा ने हिम्मत नहीं हारी. पहले उसने इंटरमीडिएट में विशेष वर्ग में देश में 91.4% अंक लाकर टॉप किया और उसके बाद बीएचयू में भी ओपन एंट्रेंस में टॉप कर एडमिशन लिया. बीकॉम कंप्लीट करने के बाद एमकॉम कर रही सुमेधा अब नेशनल शूटर भी है. उसमें स्टेट लेवल के साथ नेशनल लेवल पर मेडल जीते हैं. दो गोल्ड स्टेट लेवल और एक ब्रांज मेडल नेशनल लेवल पर लाने के बाद उसने अब पैरा ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड मेडल लाने का सपना सच हो रखा है. पिता ने घर पर ही शूटिंग रेंज बनाई है व्हीलचेयर पर चलने वाली सुविधा दिन रात यहां पर ही प्रैक्टिस कर भारत के लिए गोल्ड मेडल लाने के सपने को पूरा करने में जुटी हुई है.

बाईट- बृजेश चंद्र पाठक, सुमेधा के पिता
बाईट- सुमेधा पाठक, नेशनल शूटर,


Conclusion:वीओ-02 सुमेधा के पिता बृजेश पाठक बताते हैं कि पेराप्लेजिक पेशेंट के साथ उनके लोअर लिंबस में कोई मूवमेंट नहीं होता और इसकी ताकत धीरे-धीरे कम होने लगती है, लेकिन इन सबके बाद भी सुमेधा ने हिम्मत नहीं हारी है. लगातार वह अपनी पढ़ाई के साथ नेशनल लेवल पर शूटिंग का काम कर रही है. जिसकी वजह से सुमेधा पढ़ाई में अव्वल होने के वजह से 2016 में देश में विशेष वर्ग में टॉप करने के बाद तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार की तरफ से रानी लक्ष्मीबाई सम्मान से नवाजी जा चुकी है. इतना ही नहीं तो मेरा को राजभवन में राज्यपाल राम नायक समेत कई अन्य लोगों ने भी सम्मानित किया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारस में डीरेका ग्राउंड में सुमेधा से मुलाकात कर उसे शाबाशी दी थी और सुमेधा ने भी उस वक्त शहीदों को अपनी जीती हुई धनराशि में से धनराशि डोनेट भी की थी. फिलहाल आज के दौर में जब बेटियां बेटों से कहीं से पीछे नहीं है उनमें इस स्थिति के बाद भी जिस तरह से सुमेधा ने व्हील चेयर पर होने के बाद भी हौसला नहीं हारा है वह अपने आप में काबिले तारीफ है.

बाईट- अर्चना पाठक, सुमेधा की माँ

गोपाल मिश्र

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