वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर बेटियों और उनके जज्बे को सलाम करना जरूरी है, जिन्होंने तमाम मुश्किलों और अपने खिलाफ चल रहे हालात पर काबू पाकर खुद की पहचान तो बनाया ही. साथ ही साथ समाज में अपने परिवार को भी फक्र से सिर ऊंचा करने का मौका दिया. आज जब हर तरफ 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे और स्लोगन लेकर लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं. ऐसे में काशी की इस होनहार बेटी को कोई कैसे भूल सकता हैस, जिसने दिव्यांगता को मात देकर उस मुकाम को हासिल किया, जिसे पाना शायद एक नॉर्मल लाइफ जीने वाले व्यक्ति के लिए भी मुश्किल है.
नेशनल लेवल की शूटर सुमेधा खेल में जितनी होनहार हैं उतनी ही होनहार पढ़ाई में भी हैं. कई सालों से व्हीलचेयर पर होने के बाद भी सुमेधा ने सीबीएसई इंटरमीडिएट में विशेष वर्ग में टॉप किया, जिसके बाद प्रदेश सरकार की तरफ से सुमेधा को रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
रीढ़ की हड्डी में फैक्चर
एक भाई और एक बहन में बड़ी सुमेधा सबकी लाडली हैं. परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया, लेकिन परिवार ने कभी सुमेधा का साथ नहीं छोड़ा. सुमेधा के पिता बृजेश चंद्र पाठक एक सफल बिजनेसमैन हैं. मां हाउस वाइफ हैं. सुमेधा के पिता बृजेश बताते हैं कि उनकी बेटी पैराप्लेजिक नाम की बीमारी की शिकार है. वे 2013 में जब इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी, तभी उसकी रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हुआ, जिसकी वजह से उसके शरीर के निचले हिस्से के अंगों ने काम करना बंद कर दिया.
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सुमेधा ने कभी हिम्मत नहीं हारी
पैराप्लेजिक पेशेंट के साथ सुमेधा के लोअर लिंबस में कोई मूवमेंट नहीं होता और इसकी ताकत धीरे-धीरे कम होने लगती है, लेकिन इन सबके बाद भी सुमेधा ने हिम्मत नहीं हारी है. लगातार वह अपनी पढ़ाई के साथ नेशनल लेवल पर शूटिंग का काम कर रही हैं. सुमेधा को राजभवन में राज्यपाल राम नाईक समेत कई अन्य लोगों ने भी सम्मानित किया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी के डीरेका ग्राउंड में सुमेधा से मुलाकात कर शाबाशी दी थी और सुमेधा ने भी उस वक्त शहीदों को अपनी जीती हुई धनराशि में से डोनेट भी किया था.