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अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस: उम्र का अंतिम पड़ाव फिर भी पढ़ने की हसरतें अपार, बुढ़ापे में सीखा ककहरा ताकि कोई न कहे अनपढ़ - रोहनियां वाराणसी न्यूज

अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस के मौके पर आज हम बात करेंगे एक ऐसी महिला के बारे में, जो कभी डाकघर से पैसा निकालते समय अंगूठा लगाया करती थी, लेकिन अब वे हस्ताक्षर करती हैं. वाराणसी की ये बुजुर्ग महिलाएं मातृशक्ति का सशक्त उदाहरण हैं.

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अन्तर्राष्ट्रीय मातृ दिवस
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Published : May 8, 2022, 12:20 PM IST

वाराणसी: रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की 95 वर्षीया शांति देवी अब डाकघर से पैसा निकालते समय अंगूठा नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं. दो वर्ष पूर्व उन्होंने ककहरा सीखा था. इसके बाद तो उन्हें ऐसी पढ़ने की लगन लगी कि रात-दिन एक कर उन्होंने शब्दों को लिखना और पढ़ना सीखा. कांपते हाथों से वह छोटे-छोटे वाक्य भी लिख लेती हैं. जैसा कि हर साल मई के दूसरे रविवार को अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस मनाया जाता है. वाराणसी की ये बुजुर्ग महिलाएं मातृशक्ति का सशक्त उदाहरण हैं.

गौरतलब हो कि 70 वर्ष की तपेसरा देवी को भी कभी अंगूठा छाप के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब वह भी जरूरी कागजातों पर अपना हस्ताक्षर कर लेती हैं. घर में आई हुई खाद्य सामाग्रियों और अन्य सामानों के पैकेट पर छपे नाम को पढ़ लेती हैं. घरेलू खर्च भी वह डायरी में दर्ज कर लेती हैं. रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की रहने वाली सिर्फ शांति देवी और तपेसरा ही नहीं, इसी गांव की ललदेई, जड़ावती, सुगुना, लालती देवी जैसे दर्जनों वह नाम हैं, जो अब जरूरी कागजातों पर अपने अंगूठे का निशान नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं.

हाल ही में अक्षर ज्ञान हसिल कर उन्होंने अपना हस्ताक्षर करना तो सीखा ही, थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना भी शुरू कर दिया है. उम्र के आखिरी पड़ाव में भी इन बुजुर्ग महिलाओं में शिक्षा हासिल करने की हसरतें अपार हैं. घरेलू काम-काज से फुर्सत मिलते ही यह सभी लिखने-पढ़ने के अभ्यास में जुट जाती हैं. यह सब कुछ संभव हुआ है, इस गांव की रहने वाली बीना सिंह की मेहनत के चलते जो गांव में शिक्षा की अलख जगा रही हैं.

महिलाओं को साक्षर बनाने का उठाया बीड़ा

बीना सिंह बताती हैं कि उनका मायका मिर्जापुर में है. बचपन से ही उनके मन में समाजसेवा की इच्छा थी. वह महिलाओं और बेटियों को पढ़ाना चाहती थीं. ससुराल आने पर ससुर और पति से मिले प्रोत्साहन से उनके सपनों को पंख लग गए. घर की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ ही उन्होंने पास-पड़ोस की महिलाओं को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया, खासकर उनकों जो निरक्षर थीं. दो वर्ष के भीतर अबतक सिर्फ भूल्लनपुर गांव समेत पड़ोसी गांवों की दो सौ से अधिक महिलाओं को वह साक्षर बना चुकी हैं.

यह भी पढ़ें: ज्ञानवापी परिसर के श्रृंगार गौरी प्रकरण में कमीशन की कार्रवाई इस वजह से हुई स्थगित

तीन पीढ़ियां एक साथ लेती हैं शिक्षा

बीना सिंह शुरू में अपने घर के एक कमरे में ही इन महिलाओं को पढ़ाने का काम करती थीं. साक्षर हुईं बुजुर्ग महिलाओं ने जब अपनी बहुओं और उनकी बेटियों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, तब यह जगह छोटी पड़ने लगी. ऐसे में पड़ोसी लॉन संचालक ने मदद की और अपने लॉन का एक हिस्सा शिक्षा के इस अभियान के लिए उपलब्ध कराया. अब यहां तीन पीढ़ियां एक साथ पढाई करती हैं.

जड़ावती देवी बताती हैं कि गांव के अधिकतर पुरुष मेहनत-मजदूरी करते हैं. महिलाओं की शिक्षा पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया था. पर अब ऐसा नहीं है. हर शाम वह खुद तो यहां लिखना-पढ़ना सीखती ही हैं. साथ ही बहू अनिता को भी साथ लाती हैं, ताकि वह भी पढ़ना सीख ले. जड़ावती की ही तरह सुगुना भी अपनी बहू फूला देवी के साथ पढ़ाई करती हैं. यहां शिक्षा ले रहीं लीलावती अपनी बहू के साथ उसकी बेटियों को भी अक्षर ज्ञान करा रही हैं. लीलावती बताती हैं कि वह चाहती हैं कि उसकी पोतिया यहां से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर अब विद्यालय जाना शुरू कर दें.

यह भी पढ़ें: पिता ने मासूम की गला दबाकर कर दी हत्या, पैसे के लिए पति-पत्नी में चल रहा था विवाद

सभी का सपना, हर घर हो साक्षर अपना

भूल्लनपुर गांव में शिक्षा की जो अलख जगी है, उससे यहां की सभी महिलाएं काफी उत्साहित हैं. सभी का बस यहीं सपना है कि गांव की हर महिला साक्षर हो जाए, ताकि कोई उन्हें अंगूठा छाप न कह सके. इतना ही नहीं, अपने बच्चों की शिक्षा पर भी सभी का पूरा ध्यान है. शिक्षित कर वे उन्हें अपने पैर पर खड़ा कराना चाहती हैं.

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वाराणसी: रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की 95 वर्षीया शांति देवी अब डाकघर से पैसा निकालते समय अंगूठा नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं. दो वर्ष पूर्व उन्होंने ककहरा सीखा था. इसके बाद तो उन्हें ऐसी पढ़ने की लगन लगी कि रात-दिन एक कर उन्होंने शब्दों को लिखना और पढ़ना सीखा. कांपते हाथों से वह छोटे-छोटे वाक्य भी लिख लेती हैं. जैसा कि हर साल मई के दूसरे रविवार को अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस मनाया जाता है. वाराणसी की ये बुजुर्ग महिलाएं मातृशक्ति का सशक्त उदाहरण हैं.

गौरतलब हो कि 70 वर्ष की तपेसरा देवी को भी कभी अंगूठा छाप के रूप में जाना जाता था, लेकिन अब वह भी जरूरी कागजातों पर अपना हस्ताक्षर कर लेती हैं. घर में आई हुई खाद्य सामाग्रियों और अन्य सामानों के पैकेट पर छपे नाम को पढ़ लेती हैं. घरेलू खर्च भी वह डायरी में दर्ज कर लेती हैं. रोहनियां के भूल्लनपुर गांव की रहने वाली सिर्फ शांति देवी और तपेसरा ही नहीं, इसी गांव की ललदेई, जड़ावती, सुगुना, लालती देवी जैसे दर्जनों वह नाम हैं, जो अब जरूरी कागजातों पर अपने अंगूठे का निशान नहीं लगातीं, बल्कि हस्ताक्षर करती हैं.

हाल ही में अक्षर ज्ञान हसिल कर उन्होंने अपना हस्ताक्षर करना तो सीखा ही, थोड़ा-बहुत लिखना पढ़ना भी शुरू कर दिया है. उम्र के आखिरी पड़ाव में भी इन बुजुर्ग महिलाओं में शिक्षा हासिल करने की हसरतें अपार हैं. घरेलू काम-काज से फुर्सत मिलते ही यह सभी लिखने-पढ़ने के अभ्यास में जुट जाती हैं. यह सब कुछ संभव हुआ है, इस गांव की रहने वाली बीना सिंह की मेहनत के चलते जो गांव में शिक्षा की अलख जगा रही हैं.

महिलाओं को साक्षर बनाने का उठाया बीड़ा

बीना सिंह बताती हैं कि उनका मायका मिर्जापुर में है. बचपन से ही उनके मन में समाजसेवा की इच्छा थी. वह महिलाओं और बेटियों को पढ़ाना चाहती थीं. ससुराल आने पर ससुर और पति से मिले प्रोत्साहन से उनके सपनों को पंख लग गए. घर की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ ही उन्होंने पास-पड़ोस की महिलाओं को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया, खासकर उनकों जो निरक्षर थीं. दो वर्ष के भीतर अबतक सिर्फ भूल्लनपुर गांव समेत पड़ोसी गांवों की दो सौ से अधिक महिलाओं को वह साक्षर बना चुकी हैं.

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तीन पीढ़ियां एक साथ लेती हैं शिक्षा

बीना सिंह शुरू में अपने घर के एक कमरे में ही इन महिलाओं को पढ़ाने का काम करती थीं. साक्षर हुईं बुजुर्ग महिलाओं ने जब अपनी बहुओं और उनकी बेटियों को भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, तब यह जगह छोटी पड़ने लगी. ऐसे में पड़ोसी लॉन संचालक ने मदद की और अपने लॉन का एक हिस्सा शिक्षा के इस अभियान के लिए उपलब्ध कराया. अब यहां तीन पीढ़ियां एक साथ पढाई करती हैं.

जड़ावती देवी बताती हैं कि गांव के अधिकतर पुरुष मेहनत-मजदूरी करते हैं. महिलाओं की शिक्षा पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया था. पर अब ऐसा नहीं है. हर शाम वह खुद तो यहां लिखना-पढ़ना सीखती ही हैं. साथ ही बहू अनिता को भी साथ लाती हैं, ताकि वह भी पढ़ना सीख ले. जड़ावती की ही तरह सुगुना भी अपनी बहू फूला देवी के साथ पढ़ाई करती हैं. यहां शिक्षा ले रहीं लीलावती अपनी बहू के साथ उसकी बेटियों को भी अक्षर ज्ञान करा रही हैं. लीलावती बताती हैं कि वह चाहती हैं कि उसकी पोतिया यहां से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर अब विद्यालय जाना शुरू कर दें.

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सभी का सपना, हर घर हो साक्षर अपना

भूल्लनपुर गांव में शिक्षा की जो अलख जगी है, उससे यहां की सभी महिलाएं काफी उत्साहित हैं. सभी का बस यहीं सपना है कि गांव की हर महिला साक्षर हो जाए, ताकि कोई उन्हें अंगूठा छाप न कह सके. इतना ही नहीं, अपने बच्चों की शिक्षा पर भी सभी का पूरा ध्यान है. शिक्षित कर वे उन्हें अपने पैर पर खड़ा कराना चाहती हैं.

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