काशीः काशी में इस वक्त ASI ज्ञानवापी में मंदिर होने के प्रमाण तलाश रही है. वहीं, बीएचयू का पुरातात्विक विभाग वाराणसी समेत आसपास के क्षत्रों व पूर्वी उत्तर प्रदेश में खोदाई कर शिवलिंग और उसके पूजा पद्दति का तलाश कर रहा है, जिसमें कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. विभाग द्वारा किए जा रहे शोध में अब तक दर्जनों शिवलिंग और बनारस में 500 ईसा पूर्व फूलों के कारोबार से रहस्य का पर्दा उठा है. बीएचयू के इस शोध में काशी की महत्वपूर्ण भूमिका के तथ्य सामने आए हैं. यह शोध कार्य दो साल में पूरा कर लिया जाएगा.
भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी में बड़े पैमाने पर मिले शिवलिंग
उन्होंने बताया कि हम यह भी शोध कर रहे हैं कि वह कौन सा काल था जिसमें बड़ी संख्या में शिवलिंग बनाकर बनारस के आसपास के क्षेत्रों में उनकी पूजा होती थी. इनसे संबंधित अन्य कई चीजों का पता लगाने की कोशिश की जा रही है. अभी तक भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी में काफी बड़े पैमाने पर शिवलिंग का पता लगाया गया है. उसमें से एक स्थान है भोरकला. वहां से हमें मिट्टी की बनी हुई एक मोहर मिली है, जिसपर पुष्प गृह के मालिक जय स्वामी का नाम लिखा हुआ है. वह आसपास के खेतों से फूलों को इकट्ठा करता था. यह गुप्तकाल के समय की मोहर है.
गुप्तकाल में काशी थी महत्वपूर्ण शिव नगरी
प्रो. एके सिंह ने बताया कि लगभग 300 ई. से लेकर 500 ई. के बीच में यह काम किया जाता था. इसमे जय स्वामी फूलों को संग्रहित करता था और वहां से वाराणसी में मंदिरों को फूल भेजा था. इसका हमें प्रमाण मिला है. हमें अभी तक गुप्त काल और गुप्तोत्तर काल यानी पूर्वमध्यकाल के पहले सबसे अधिक बनारस और उसके आसपास के क्षेत्र में बने हैं. कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां 10 से 15 की संख्या में हमें शिवलिंग मिले हैं. इसे लेकर हमें अपना शोध कार्य 2 साल के अंदर पूरा करना है. इस कार्य में जो हमें प्रमाण मिले हैं उससे यह पता चलता है कि गुप्त और गुप्तोत्तर काल में काशी एक महत्वपूर्ण शिव नगरी थी.
फूलों की खेती होने के मिले प्रमाण
वाराणसी में हो रही फूलों की खेती के प्रमाण भी मिले हैं. उन्होंने बताया कि आज काशी और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फूलों की खेती होती है. भोरकला में हमें एक पुष्प गृह के मालिक जय स्वामी का नाम और उनके फूलों के संग्रह करने का उल्लेख मिला है. वहां पर आज भी वर्तमान में बड़े पैमाने पर गेंदे का फूल उगाया जाता है. वाराणसी में फूलों की खेती का काम गुप्तकाल में इसका प्रारंभ हुआ होगा. तब से लेकर आज तक वाराणसी में फूल मंडी में फूलों की बिक्री का काम होता है. यहां से मंदिरों में भेजा जाता है.
गुप्तकाल था स्वर्ण युग
प्रो. एके सिंह ने उस समय को स्वर्ण युग बताया है. उन्होंने कहा कि गुप्तकाल एक ऐसा काल है जिसे स्वर्णयुग माना जाता है. न केवल आर्थिक आधार पर बल्कि धार्मिक आधार पर भी गुप्तकाल एक महत्वपूर्ण काल था. उस काल में लोगों में धार्मिकता बहुत थी. शिव के प्रति लोगों का प्रेम आज भी दिखता है. हमने शोध में पाया है उस कालखंड में भी भगवान शिव के प्रति लोगों का कितना प्रेम था. हमें खोदाई में अबतक सैकड़ों शिवलिंग मिल चुके हैं. फूलों की खेती भी इस बात का प्रमाण है उस समय लोग कितने धार्मिक थे और पुष्प गृह के माध्यम से मंदिरों पर फूलों को भेजा जाता था.
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