वाराणसी : ज्ञानवापी में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की रिपोर्ट आज आखिरकार दाखिल हो ही गई. रिपोर्ट दाखिल होने की खुशी साफ तौर पर इस मुकदमे से जुड़ी वादिनी महिलाओं के चेहरे पर दिख रही है. यह महिलाएं रिपोर्ट में क्या मिला, इसके लिए आने वाले 21 दिसंबर के फैसले का इंतजार कर रही हैं. उनका कहना है कि रिपोर्ट में क्या है, यह लोगों के बीच आना ही चाहिए. लगभग 1000 से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट दाखिल होने के बाद अब सरगर्मी बढ़ गई है. लगभग 250 से ज्यादा अवशेषों की लिस्ट कोर्ट में दाखिल है.
इस पूरे मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट दोनों फॉर्मेट में सबमिट हुई है. जिसमें तीन हार्ड डिस्क, 6 पेन ड्राइव और 1000 पन्नों की रिपोर्ट को एक साथ सबमिट किया गया है, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण रिपोर्ट है जीपीआर की, जो अलग-अलग लेवल पर हुई है. बताते हैं कि इसकी जांच के लिए भारत में व्यवस्था नहीं है. जिसके बाद लंदन की स्पेशल टीम की मदद लेनी पड़ी.
1000 पन्नों से ज्यादा की रिपोर्ट इस फॉर्मेट में तैयार की गई है कि उसे प्रेजेंटेशन के तौर पर बड़े प्रोजेक्टर पर भी चलाया जा सकता है. लगभग 1000 से ज्यादा तस्वीरें और 100 से 200 के बीच वीडियो की लिस्ट और फाइलें पेन ड्राइव और हार्ड डिस्क में भी रखी गई हैं. हालांकि इसको लेकर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन हुआ है और रिपोर्ट सील बंद लिफाफे में क्यों दाखिल हुई, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा है. इसके लिए उन्होंने कोर्ट से रिपोर्ट की कॉपी मांगी है. अगर 21 दिसंबर को उन्हें कॉपी मिल जाए तो ठीक, नहीं तो वह सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.
वहीं एएसआई की तरफ से केंद्र सरकार के वकील अमित श्रीवास्तव का कहना है कि रिपोर्ट तैयार करने में जो भी तकनीकी पहलू थे, उसका ध्यान रखा गया है. रिपोर्ट सबमिट कर दी गई है. अब कोर्ट का जो निर्णय होगा, उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी. बताया कि सोमवार को पांच सदस्यीय एएसआई की टीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करने पहुंची थी. जिसमें आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के सुपरिंटेंडेंट अविनाश मोहंती, भारत सरकार के वकील अमित श्रीवास्तव और उनके साथ तीन अन्य लोग मौजूद थे.
रिपोर्ट दाखिल करने के लिए पांच बार समय सीमा बढ़ाने वाली एएसआई को आखिर क्यों बार-बार समय लेना पड़ रहा था, इसके पीछे भी एक बड़ी वजह सामने आई है. इस पूरे मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ज्ञानवापी में जीपीआर तकनीक का प्रयोग तीन लेवल पर हुआ है. 400 मेगाहर्टज, 600 मेगाहर्ट्ज और 900 मेगाहर्टज पर जांच आगे बढ़ाई गई थी लेकिन 900 मेगाहर्ट्ज पर चीजें क्लियर करने की सुविधा सिर्फ विदेशों में ही उपलब्ध है. इसलिए लंदन की एक स्पेशल टीम की मदद रिपोर्ट बनाने में ली गई थी. जिस वजह से समय ज्यादा लगा. इस तकनीक के प्रयोग से लगभग 5 फीट से ज्यादा नीचे तक जमीन के अंदर की गतिविधियों और जमीन के अंदर मौजूद चीजों के बारे में भी जानकारियां उपलब्ध हो जाती हैं. जिसका प्रयोग ज्ञानवापी परिसर में किया गया है.
इस मामले से जुड़े तकनीकी एक्सपर्ट्स का कहना है कि ज्ञानवापी परिसर में जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार का प्रयोग करने के साथ ही कई अन्य तरह के डिजिटल तरीकों का भी प्रयोग किया गया था. जिसमें 3D फोटोग्राफी के लिए सैटेलाइट का प्रयोग हुआ था. इसके अलावा कलाकृतियों की जांच के लिए भी मशीनों का प्रयोग हुआ था और ऐसे हाईटेक कैमरे लगाए गए थे जो सेटेलाइट के जरिए ऊपर से भी तस्वीर लेने में डिजिटल साउंड थे.