वाराणसी: महान दार्शनिक और विश्व में भारत के अध्यात्म का डंका बजाने वाले स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि के मौके पर पूरा देश उनको नमन कर रहा है. पूरे देश में जहां जहां स्वामी जी गए थे, वहां स्मारक बना कर उनकी यादों को संजोने का काम किया जा रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित गोपाल लाल विला के हाल बेहाल हैं. गोपाल लाल विला में स्वामी विवेकानंद ने अपने अंतिम दिनों में लगभग सवा महीने तक प्रवास किया था. ईटीवी भारत ने युवा दिवस यानी स्वामी विवेकानंद की जयंती के मौके पर इस गोपाल लाल विला की हालत दिखाई थी. स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन के मौके पर 12 जनवरी 2021को स्थानीय विधायक और कैबिनेट मंत्री रविंद्र जायसवाल ने आनन-फानन में इस विला के जीर्णोद्धार के लिए शिलान्यास किया था, मगर उसके बाद अब तक एक इंत भी सीमेंट नहीं लगवाई गई है. इतने दिन बीतने के बाद भी इसके हाल जस के तस हैं. आज गोपाल लाल विलास खंडहर में तब्दील हो गया है. यहां पर शराबी का जमावड़ा होता है, परंतु किसी ने भी इसके संरक्षण का बीड़ा नहीं उठाया है.
सवा महीने किया था प्रवास
स्वामी विवेकानंद की इस विरासत को संरक्षित रखने की लड़ाई लड़ रहे अधिवक्ता नित्यानंद राय बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने वाराणसी की अंतिम यात्रा 1902 में की थी, जब वह बीमार थे. उन्होंने वाराणसी के अर्दली बाजार स्थित गोपाल लाल विला में लगभग सवा महीने तक रहकर स्वास्थ्य लाभ लिया था. 4 मार्च को उन्होंने अपने लिखे पत्र में अपनी बीमारी का जिक्र भी किया था. उन्होंने लिखा था कि मुझे अभी भी सांस की तकलीफ है, यहां पर आम अमरूद के बड़े-बड़े पेड़ है. गुलाब का खूबसूरत बगीचा है. तालाब में सुंदर कमल खिले रहते हैं. यह जगह मेरे स्वास्थ्य लाभ के लिए उत्तम है. स्वास्थ्य लाभ के बाद वह बैलूर मठ चले गए. जहां पर 4 जुलाई 1902 को उन्होंने महासमाधि ली.
खंडहर में तब्दील हो चुकी है विरासत
नित्यानंद राय बताते हैं कि आज यह खंडहर बन चुका है. उन्होंने बताया बीते 15 सालों से वह इस विरासत को संजोने की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन अब तक उनकी मदद किसी ने नहीं की. गोपाल लाल विला के जीर्णोद्धार के लिए वह सभी नेता,अधिकारियों और पत्र लिखा है, इसके बावजूद भी किसी ने इस विरासत को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी नहीं उठाई.
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बने स्वामी विवेकानंद का प्रेरणा स्त्रोत
उन्होंने कहा कि सरकार से हमारी मांग है कि यहां पर इस इमारत को संरक्षित कर विरासत के रूप में रखा जाए. अगर यह नहीं हो सकता तो फिर यहां पर स्वामी विवेकानंद के नाम से एक बड़ा स्कूल कॉलेज खोला जाए. जहां पर उनके बारे में अध्ययन हो सके.
बनाया जाना था हज हाउस
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां इस स्थान पर हज हाउस निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन विवेकानंद की यादों के कारण हज हाउस बनाने का विरोध हुआ. जिसके बाद उस प्रस्ताव को टाल दिया गया और फिर किसी ने भी इस विला को संरक्षित करने की जिम्मेदारी नहीं उठाई. वर्तमान समय में यह विला जंगल में तब्दील हो गया है.