वाराणसी: देवों के देव महादेव की नगरी काशी को लेकर ऐसे तो अनेकों कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन आज हम शहर से करीब 27 किलोमीटर दूर स्थित एक ऐसे अनोखे व भव्य मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां स्वयं भगवान भक्त के नाम से पूजे जाते हैं. दरअसल, काशी का मार्कंडेय महादेव मंदिर शैव-वैष्णव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है और यहां हर सोमवार को भक्तों की भीड़ देखते बनती है. बात अगर महाशिवरात्रि व सावन माह की करें तो यहां श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद सबसे अधिक भक्तों की भीड़ जलाभिषेक को उमड़ती है. गोमती और गंगा के संगम स्थल पर बने इस सुप्रसिद्ध मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां स्नान करने के बाद जो भी भक्त पूरी श्रद्धा से बाबा का जलाभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
मंदिर से जुड़ी खास बातें: पुजारी संतोष कुमार गिरी ने बताया कि इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. इसका निर्माण महाभारतकाल से पहले का माना जाता है. वहीं, इस मंदिर को लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि जिस किसी के पास भी पुत्र न हो वो अगर यहां आकर पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है तो उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है और सभी ग्रहों का निवारण होता है. इतना ही नहीं पुजारी ने आगे बताया कि महाभारत के वन प्रणव के 84 अध्याय में इस मंदिर से संबंधित श्लोक मिलता है. जिसमें इस मंदिर का उल्लेख किया गया है. यहां गंगा और गोमती का पवित्र संगम होने के कारण देव ऋषि नारद पांडवों को लेकर आए थे, जहां आने के उपरांत युधिष्ठिर ने कहा था कि मार्कंडेय मंदिर जैसा तीर्थ अन्यत्र दुर्लभ है.
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खाली हाथ लौटे थे यमराज: संतोष कुमार गिरी ने बताया कि प्राचीनकाल में मृकण्ड ऋषि और उनकी पत्नी मरन्धती ने पुत्रहीन होने के तानों से परेशान होकर यहां तपस्या की थी. भगवान की कड़ी तपस्या के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन उन्हें यह बताया गया कि उनके पुत्र की केवल 16 वर्ष की आयु है. इसके बाद भक्त मार्कंडेय भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गए. वहीं, समय पूरा होने पर जब यमराज उन्हें लेने आए तो वो शिवलिंग से लिपट कर भगवान शिव को याद करने लगे. आखिर में शिव की कृपा से यमराज को वापस लौटना पड़ा.
यहां भक्त के नाम से पूजे जाते हैं भगवान: भक्त मार्कंडेय की उपासना और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी यमराज से रक्षा की थी. तभी से इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता रही है कि यहां सच्चे मन से पूजा व जलाभिषेक करने से पुत्रहीनों को भगवान पुत्र रत्न प्रदान करते हैं. साथ ही पुजारी गिरी ने बताया कि भगवान शिव अपने अनन्य भक्त मार्कंडेय की तपस्या से इतने प्रसन्न हुए थे कि उन्होंने भक्त मार्कंडेय को आशीर्वाद दिया कि इस मंदिर को उनके नाम से जाना जाएगा और यहां स्वयं भगवान भक्तों की रक्षा व मनोकामनाएं पूरी करने को विराजेंगे.
यहां सूर्योदय से पहले हर रोज आते हैं ऋषि मार्कंडेय: श्रद्धालु हिमांशु राज पांडेय बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है. सभी प्रकार के कष्टों का यहां निवारण होता है. यही कारण है कि हम नित्य बाबा का दर्शन करने आते हैं. उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि यहां गंगा और गोमती का संगम है, जो आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेगा. कहा जाता है कि मार्कंडेय ऋषि ने दुर्गा सप्तशती की रचना की थी और मान्यता है यहां सूर्योदय से पहले हर रोज मार्कंडेय ऋषि बाबा के जलाभिषेक के लिए आते हैं.
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