वाराणसी: आज घर-घर में बप्पा का आगमन हो रहा है. गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों से हर कोई बप्पा का स्वागत करके उन्हें 3 दिन 7 दिन या 11 दिन के लिए अपने घरों पर स्थापित करने वाला है. पूजा पाठ का सिलसिला सुबह से ही शुरू है, जो लगातार जारी रहेगा. इन सबके बीच आज हम वाराणसी मैं तैयार होने वाली उन खास मूर्तियों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मुंबई के सिद्धिविनायक की तर्ज पर तैयार की जाती हैं.
पानी में 20 मिनट में घुल जाती है पूरी मूर्तिः इन मूर्तियों की डिमांड सिर्फ वाराणसी ही नहीं बल्कि उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत के तमाम हिस्सों में होती है. इन मूर्तियों की खासियत यही है कि यह किसी भी कुंड तालाब सरोवर या घर पर बनाए गए कृत्रिम कुंड में महज 20 मिनट के अंदर पूरी तरह से घुल जाती हैं और वह भी बिना पानी को खराब किए.
वाराणसी में कई साल से बप्पा का हो रहा स्वागतः वाराणसी में हर त्योहार को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. भोलेनाथ की नगरी में गणपति उत्सव उतने ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है, जैसे महाशिवरात्रि और सावन का पर्व. एक तरफ जहां भोलेनाथ की पूजा होती है, तो दूसरे तरफ उनके पुत्र का आगमन भी धूमधाम से किया जाता है. बनारस में ऐसी छोटी बड़ी दर्जनों पूजा समितियां हैं, जो बप्पा का पूजन कई सालों से कर रही है. इसके अलावा अब घर-घर पर भी गणपति विराजमान होने लगे हैं.
कोलकाता की मूर्तियों को दे रही टक्करः जिसकी वजह से वाराणसी में गणपति मूर्तियों का बड़ा कारोबार फैल रहा है, लेकिन आज भी कोलकाता से आने वाली हाई-फाई मूर्तियों को बनारस में तैयार होने वाली पूरे मिट्टी और लोहे की तार लगी मूर्तियों करारी टक्कर देती हैं. इन मूर्तियों को बनाने वाले कारीगर कुछ गिने-चुने ही बचे हैं. वाराणसी के लक्सा क्षेत्र में प्रजापति परिवार इन मूर्तियों को कई पीढियां से बना रहा है.
मिट्टी और तारों से तैयार होती है गणेश मूर्तिः सबसे खास बात यह है कि भगवान गणेश की यह प्रतिमाएं हू-ब-हू मुंबई के सिद्धिविनायक की तर्ज पर तैयार की जाती हैं. जिस तरह से सिध्दीविनायक की मूर्ति तारों और मिट्टी से तैयार होती हैं वैसे ही ये मूर्ति भी तैयार होती है. जिसको देखने से ही सिद्धिविनायक का ख्याल आपके मन में आ जाएगा. इन मूर्तियों को तैयार करने वाले कारीगरों का कहना है कि ऑर्डर के हिसाब से यह मूर्तियां तैयार की जाती हैं.
दक्षिण भारत में भी मूर्तियों की डिमांडः इन मूर्तियों की डिमांड वाराणसी के कोने-कोने में तो होती ही है. इसके अलावा दक्षिण भारत के हैदराबाद, तेलंगाना और तमिल के हिस्सों में भी मूर्तियां जाती हैं. इसके अतिरिक्त गाजीपुर, चंदौली और पूर्वांचल के कई जिलों में भी मूर्तियों को विशेष ऑर्डर पर भेजा जाता है. सबसे बड़ी बात यह है की सबसे छोटी साइज से लेकर बड़ी साइज तक की यह मूर्तियां 100 रुपए से लेकर 10000 रुपए तक की लागत से तैयार होती हैं और विसर्जन में उनके कोई दिक्कत भी नहीं आती, क्योंकि इन मूर्तियों में जो रंग लगाए जाते हैं वह बिल्कुल प्राकृतिक होते हैं.