ETV Bharat / state

भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला विद्रोह, जानें कहां रखी गई आजादी की नींव ! - india first time rebel against british government

15 अगस्त यानी एक ऐसा दिन जब हर भारतीय खुद को गौरवान्वित महसूस करता है. ऐसे में ईटीवी भारत आज आपको बताएगा कि 1857 के विद्रोह के पहले भारत में किस नगरी में और कब अंग्रेजों का विरोध हुआ था, जिसमें कई अंग्रेजी अधिकारी समेत लगभग 200 जवान मारे गए थे.

etv bharat
गुलामी की बेड़ियों से आजाद होने के लिए 1781 में किया गया पहला विद्रोह.
author img

By

Published : Aug 14, 2020, 3:33 PM IST

Updated : Aug 16, 2020, 12:19 AM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी का आजादी की लड़ाई में शुरू से ही बड़ा योगदान रहा है. धार्मिक नगरी होने के कारण देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु यहां पर आते थे. उन श्रद्धालुओं के साथ क्रांतिकारी यहां पर आकर देश की आजादी की रणनीति बनाते थे. यही वजह है कि देश में हर बड़े आंदोलन के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बनारस का योगदान रहा. सन् 1781 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को यहां से भागना पड़ा और देश की आजादी के नींव भी इसी दिन रखी गई.

गुलामी की बेड़ियों से आजाद होने के लिए 1781 में किया गया पहला विद्रोह.

हम सब यह जानते हैं कि 1857 में प्रथम विद्रोह हुआ, जिसे हम आजादी की लड़ाई की शुरुआत मानते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता है कि आजादी की पहली लड़ाई अंग्रेजों से काशी में हुई. इसमें गवर्नर जनरल को यहां से भागना पड़ा. काशी में मौजूद इसके निशान और दस्तावेज आज भी इस लड़ाई की कहानी खुद बयां करती है.
शिलालेख बयां करती हैं कहानी
जिले के भेलूपुर थाना अंतर्गत मां गंगा के तट चेत सिंह का किला आज भी उस लड़ाई की दास्तां बयां करता है. किला पर बकायदा आज भी वह शीलापट्ट लगा हुआ है, जिसमें 1781 की लड़ाई का पूरा विवरण दिया है. उसके साथ ही शिवाला घाट पर स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलालेख उस समय हुई लड़ाई की गवाही देता है. शिलालेख पर अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे. आज भी कब्रिस्तान यहां मौजूद है. इस क्षेत्र को और संरक्षित घोषित कर दिया गया है.
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने टैक्स मांगा
प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया आध्यात्मिक केंद्र के साथ शुरू से ही बनारस आंदोलनकारियों का गढ़ रहा है. भारत को आजादी दिलाने के लिए बनारस का प्रमुख योगदान रहा. उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी. बक्सर युद्ध के बाद बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था. महाराजा चेत सिंह लगातार अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे. ईस्ट इंडिया कंपनी महाराज चेत सिंह से बहुत अधिक टैक्स की मांग कर रही थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ही अधिक था. टैक्स को वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आए.
1781 में बागी हुआ बनारस
प्रोफेसर पांडे ने कहा कि आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे, लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. काशी वासियों ने वारेन हेस्टिंग पर आक्रमण कर दिया. वारेन हेस्टिंग को यहां से भागना पड़ा. बाद में वह चुनार चले गए. उसके बाद कोलकाता से सेना मंगवाकर अंग्रेजों ने किले पर कब्जा किया, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि अंग्रेजों का विद्रोह सबसे पहले काशी की जनता ने 1781 में किया. अंग्रेजी अधिकारी को भगाकर स्वतंत्रा आंदोलन की नींव रखी और बनारस बागी हो गया.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी का आजादी की लड़ाई में शुरू से ही बड़ा योगदान रहा है. धार्मिक नगरी होने के कारण देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु यहां पर आते थे. उन श्रद्धालुओं के साथ क्रांतिकारी यहां पर आकर देश की आजादी की रणनीति बनाते थे. यही वजह है कि देश में हर बड़े आंदोलन के पीछे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बनारस का योगदान रहा. सन् 1781 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को यहां से भागना पड़ा और देश की आजादी के नींव भी इसी दिन रखी गई.

गुलामी की बेड़ियों से आजाद होने के लिए 1781 में किया गया पहला विद्रोह.

हम सब यह जानते हैं कि 1857 में प्रथम विद्रोह हुआ, जिसे हम आजादी की लड़ाई की शुरुआत मानते हैं, लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता है कि आजादी की पहली लड़ाई अंग्रेजों से काशी में हुई. इसमें गवर्नर जनरल को यहां से भागना पड़ा. काशी में मौजूद इसके निशान और दस्तावेज आज भी इस लड़ाई की कहानी खुद बयां करती है.
शिलालेख बयां करती हैं कहानी
जिले के भेलूपुर थाना अंतर्गत मां गंगा के तट चेत सिंह का किला आज भी उस लड़ाई की दास्तां बयां करता है. किला पर बकायदा आज भी वह शीलापट्ट लगा हुआ है, जिसमें 1781 की लड़ाई का पूरा विवरण दिया है. उसके साथ ही शिवाला घाट पर स्थित कब्रिस्तान के पास लगा शिलालेख उस समय हुई लड़ाई की गवाही देता है. शिलालेख पर अंकित है कि इस जगह पर ड्यूटी करते हुए तीन अंग्रेज अधिकारी करीब 200 अंग्रेजी सैनिक मारे गए थे. आज भी कब्रिस्तान यहां मौजूद है. इस क्षेत्र को और संरक्षित घोषित कर दिया गया है.
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने टैक्स मांगा
प्रोफेसर राकेश पांडेय ने बताया आध्यात्मिक केंद्र के साथ शुरू से ही बनारस आंदोलनकारियों का गढ़ रहा है. भारत को आजादी दिलाने के लिए बनारस का प्रमुख योगदान रहा. उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपना विस्तार कर रही थी. बक्सर युद्ध के बाद बनारस ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन था. महाराजा चेत सिंह लगातार अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे. ईस्ट इंडिया कंपनी महाराज चेत सिंह से बहुत अधिक टैक्स की मांग कर रही थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ही अधिक था. टैक्स को वसूलने के लिए कोलकाता से गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग बनारस आए.
1781 में बागी हुआ बनारस
प्रोफेसर पांडे ने कहा कि आजादी के लिए महाराजा चेत सिंह लड़ रहे थे, लेकिन अपने राजा को गुलाम बनता देख काशी की जनता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ. काशी वासियों ने वारेन हेस्टिंग पर आक्रमण कर दिया. वारेन हेस्टिंग को यहां से भागना पड़ा. बाद में वह चुनार चले गए. उसके बाद कोलकाता से सेना मंगवाकर अंग्रेजों ने किले पर कब्जा किया, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि अंग्रेजों का विद्रोह सबसे पहले काशी की जनता ने 1781 में किया. अंग्रेजी अधिकारी को भगाकर स्वतंत्रा आंदोलन की नींव रखी और बनारस बागी हो गया.
Last Updated : Aug 16, 2020, 12:19 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.