वाराणसी: महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती मनाने के क्रम में 'काशी गौरव सम्मान' का आयोजन किया गया. इस दौरान देश की आजादी की लड़़ाई में शामिल उन महानायकों को याद किया गया, जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी दी थी. इस दौरान आजादी के मतवालों के परिजनों को एक मंच पर लाया गया और उन्हें सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में शामिल हुए 11 आजादी के महानायकों के परिवार के लोगों ने अपनी-अपनी दिल की बात रखी. इसके साथ ही सभी ने कहा कि देश के गुलामी के प्रतीकों के सामने आज भी सिर झुका रहे हैं. उनमें सुधार की जरूरत है. इस कार्यक्रम के माध्यम से इन शहीदों के परिवार के लोग एक साथ मंच पर आए. इस दौरान सरदार भगत सिंह की यादों पर लिखी गई किताब का भी विमोचन हुआ.
इन महानायकों के परिजनों को बुलाया गया: इस कार्यक्रम में सरदार भगत सिंह के भतीजे किरनजीत, अशफाक उल्ला खान के प्रपौत्र अशफाक, राजगुरु के पौत्र सत्यशील, शहीद ठाकुर रोशन सिंह के पौत्र जितेंद्र प्रताप सिंह, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के प्रपौत्र शैलेष, क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गावती (दुर्गा भाभी) के प्रपौत्र जगदीश, झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की छठवीं पीढ़ी से योगेश राव अरुण राव, शहीद मंगल पांडे की चौथी पीढ़ी से रघुनाथ पांडेय, सुखदेव के प्रपौत्र अनुज थापर और राम प्रसाद बिस्मिल के भतीजे राजबहादुर, ऊधम सिंह जी के नवासा मलकीत सिंह शामिल थे. इन्हें 'काशी गौरव सम्मान' में सम्मान दिया गया.
भगत सिंह, सुखदेव सहित 11 वीर सपूतों के परिवार सम्मानित इंडिया गेट देश की गुलामी का प्रतीक: सुखदेव के पौत्र अनुज थापर ने इंडिया गेट को लेकर सवाल किया. उन्होंने कहा कि इंडिया गेट देश की गुलामी का प्रतीक है, जिसे अंग्रेजों ने बनवाया था। इंडिया गेट पर जिन 13300 सिपाहियों और अधिकारियों के नाम लिखे हैं, वे ब्रिटिश आर्मी के भारतीय सैनिक थे. इन सैनिकों ने अंग्रेजों की सेवा की थी. ये बात किसी को पता नहीं है, लेकिन लोगों को इसके सामने सिर झुकाना है. इंडिया गेट के बगल एक भारत द्वार बनाया जाना चाहिए, जिसमें गांधीजी से लेकर बोस तक के नाम लिखे हों. वहीं, राजगुरु के पौत्र सत्यशील राजगुरु ने कहा कि शहीद शिवराम हरी राजगुरु 17 साल की उम्र में वाराणसी आए थे.
5 साल वाराणसी में रहे राजगुरु, सीखी लाठी-कुश्ती: उन्होंने बताया कि वाराणसी आने के बाद राजगुरु ने यहां पर गंगा किनारे सांग्वेद कॉलेज में संस्कृत की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने 5 साल काशी में रहकर लाठी चलाना और कुश्ती सीखी. यहां पर उन्हें बाबा रॉव सावरकर और चंद्रशेखर आजाद मिले. वाराणसी से ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ठानी थी. राजगरु के पौत्र ने दुख जताते हुए कहा कि आज काशी में शहीद शिवराम हरी राजगुरु की कोई भी याद सहेजकर नहीं रखी गई है. उनके रहने या आने की कोई जगह संरक्षित नहीं की गई. पुणे में उनकी पुश्तैनी हवेली महाराष्ट्र सरकार को दे दी गई है.
सुनाई अश्फाक और बिस्मिल की दोस्ती की कहानी: शहीद भगत सिंह के भतीजे किरणजीत ने कहा कि उनके परिवार के प्रेरणास्त्रोत स्वामी दयानंद सरस्वती थे, जिन्होंने स्वराज्य की अलख जगायी थी. शहीद भगत सिंह के यज्ञोपवीत संस्कार के समय दादा सरदार अर्जुन सिंह ने भगत सिंह और दूसरे पुत्र जगत सिंह को गोद में लेकर प्रण किया था, 'मैं अपने दोनों पौत्रों को देश सेवा के लिए अर्पित करता हूं.' वहीं शहीद अश्फ़ाक उल्ला ख़ान के पोते अश्फ़ाक ने बिस्मिल और अश्फ़ाक की दोस्ती का किस्सा सुनाया. उन्होंने कहा कि दोनों घर से निकलकर आर्यसमाज शाहजहांपुर के भवन में मिला करते और भारत मां को आज़ाद करवाने की योजना बनाते थे.
अभिनेत्री फलक खान को किया गया सम्मानित: इसके साथ ही ऑस्कर अवार्ड के सेमीफाइनल तक का कामयाबी भरा सफर तय करने वाली फिल्म "चम्पारण मटन" की मशहूर अभिनेत्री फलक खान को भी सम्मानित किया गया. सांसद मनोज तिवारी ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए इसके आयोजकों को बधाई दी. इसके साथ ही अलगोल फिल्म्स के अजय जायसवाल ने कहा कि इस आयोजन के पीछे हमारा उद्देश्य देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले विभूतियां को याद करना है. इसके साथ ही आने वाली युवा पीढ़ी को उनकी वीर गाथा से परिचित कराना है.
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