वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भी आते हैं तो कुछ नया और तकनीकी तौर पर अनोखा तोहफा बनारस को देकर जाते हैं. बीते 9 सालों में पीएम मोदी ने बनारस को 35,000 करोड़ रुपये की सौगात दी है. इनमें कई ऐसे प्रोजेक्ट शामिल रहे हैं, जो भविष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने जाते थे, लेकिन इनमें से कुछ प्रोजेक्ट ऐसे रहे जो आए और कहां लापता हो गए, उनका कुछ अता-पता ही नहीं है. ऐसा ही एक प्रोजेक्ट 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई के महीने में भी बनारस में लांच किया था.
यह प्रोजेक्ट देश में पहली बार किसी नदी में ई बोट संचालित करने से जुड़ा था. उस वक्त पीएम मोदी ने वाराणसी में 11 ई बोट का वितरण करने के साथ ही इस देश की पहली सोलर सिस्टम पर आधारित ई बोट पर सवार होकर गंगा की सैर भी की थी, लेकिन समय बीतने के साथ अब प्रधानमंत्री की तरफ से मिला यह तोहफा गंगा से गायब हो चुका है. इस वक्त यह ई बोट कहां है, किस हाल में है और दावे के अनुरूप क्यों नहीं संचालित हो रही है, इसका जवाब देने वाला कोई नहीं है.
दरअसल, 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब वाराणसी के दौरे पर आए थे तो उन्होंने बनारस को सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले प्रोजेक्ट के साथ ही प्रदूषण कम करने के लिए शहर में ई रिक्शों का वितरण किया था. इन दो प्रोजेक्ट को एक साथ लांच करने का उद्देश्य बनारस में आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधाओं के साथ पॉल्यूशन फ्री माहौल में बनारस को जीने और बनारस में घूमने के मकसद से इस प्रोजेक्ट को लांच करना था. पीएम मोदी ने अस्सी घाट पर इन्हीं बोर्ड का वितरण अलग-अलग मांझी समाज से जुड़े लोगों को किया था, जिनमें वीरेंद्र मांझी, भरत मांझी समेत कुछ अन्य लोग शामिल रहे.
उस वक्त प्रधानमंत्री ने 11 ई बोट का वितरण करके 2016 संचालित ई बोट पर सैर भी की थी और पीएम मोदी ने खुद कहा भी था कि पर्यटकों को डीजल वाले इंजन की तेज आवाज अच्छी नहीं लगती और वह जल्द से उतर जाना चाहते हैं. इतना ही नहीं डीजल का खर्च भी नाविकों के ऊपर पड़ता है. इसलिए ई बोट बनारस में अब पर्यटकों को भी अच्छी तरीके से घुमाएगी और नाविक भाइयों का भी पैसा बचाएगी, लेकिन प्रधानमंत्री के इन दावों के उलट आज उनका यह तोहफा गंगा से गायब हो चुका है.
जिन्हें तोहफा मिला था वह और उनके परिवार के लोग खुद कह रहे हैं कि वह वोट किसी काम की चीज ही नहीं. गंगा की तेज लहर और बहाव में दो इंजन और एक हैंडल के साथ संचालित होने वाली इस बोट को चलाना मुश्किल था. स्पीड इतनी धीमी थी कि पर्यटक बैठने के बाद इसका आनंद ही नहीं ले पाते थे, जिसकी वजह से इन ई बोट्स का इस्तेमाल बंद हो गया और जब इस्तेमाल बंद हुआ तो इनका मेंटेनेंस धीरे-धीरे डाउन होता है और कंपनी जिसने इन बोट्स की जिम्मेदारी ली थी उनका कोई प्रतिनिधि भी यहां तक नहीं आया. इसके बाद इन बोट्स का इस्तेमाल नाविकों ने बंद करके इसे गंगा से बाहर कर दिया.
नाविकों का कहना है कि बनारस में तेज रफ्तार और पानी को काटने वाली बोट की जरूरत है, लेकिन इतनी स्लो और इतनी हल्की नाव हमें दी गई थी, उनका संचालन मुश्किल था. वहीं, जब इस बारे में बीजेपी के जिला मीडिया प्रभारी से बातचीत की गई तो उनका कहना था प्रधानमंत्री हर बार अपने संसदीय क्षेत्र को तोहफे देते हैं, लेकिन उन लोगों को संभाल कर रखने की जिम्मेदारी तो बनारस के लोगों की है. वहीं, जब इस बारे में वाराणसी नगर निगम अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की तो पूरे विभाग में किसी को इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी.
वोट का लाइसेंस जारी करने वाले विभाग के अधिकारी अनुपम त्रिपाठी का कहना था कि 2016 का मामला है. उस वक्त कौन अधिकारी थे यह देखना होगा, लेकिन बोट का संचालन कैसे हो रहा है, संचालित हो रही है तो इसका लाइसेंस है या नहीं इसकी जांच के बाद ही चीजें स्पष्ट होंगी. फिलहाल पीएम मोदी का खास तोहफा अब गंगा से गायब हो चुका है और इनमें आ रही दिक्कतों ने पीएम मोदी के सपने को भी तोड़ दिया है, जो उन्होंने देखते हुए बनारस के पर्यटन कारोबार को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का प्लान तैयार किया था.